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शिक्षित महिलाओं में अपव्यय
[लेखिका-श्री ललिताकुमारी जैन विदुषी 'प्रभाकर' ]
बरे बड़े अर्थ शास्त्रवेत्ता कहते हैं कि एक कौड़ी भी कभी अपने कर्तव्य और हितकी भोर विचार नहीं 7 निरर्थक खर्च करना अपने प्रात्मा, कुटुम्ब, देश करेगा। उसे ऐसा करनेकी फुरसत ही कहाँ है ? फिजून व समाजसे विद्रोह करना है। असज में यह है भी खर्च करते करते जब उसके पास अपनी और अपने बिल्कुल सस्य और स्पष्ट । अपव्यय (फिजल खर्च ) कुटुम्बकी अनिवार्य ज़रूरतोंके लिए भी पैसा न बचा जहाँ तक इसका सासाँरिक धन-सम्पति और रुपये पैसे रहा तो अन्याय पर उतर पड़ता है । वह दाव जग से सम्बन्ध है अपने और समाज दोनों ही के लिए एक जाने पर दूसरोंका माल हड़प करने में भी नहीं चूकता अभिशाप है । अपव्ययसे मनुष्य अनावश्यक भोग- और यदि कुछ चालाक हुमा तो विविध छल कपट व विनासकी ओर प्रवृत्ति करता है, खोटो खोटी आदते षड्यन्त्रोंसे दूसरेकी सम्पत्ति हरण करनेकी चेष्टा करता डाल लेता है, इन्द्रियोंको बेलगाम घोड़ेकी तरह निर- है। वह चोरीके लिए चित्त चलायमान करता है और र्थक विषयोंकी ओर दौड़ने के लिए विवश करता है उसके प्रयत्न करनेमें पकड़ा जाकर धर्म, समाज व तथा पाप और वासनाके लिए नये नये रास्ते खोजता कानून तीनों ही का अपराधी ठहरता है । लोकमें रहता है।
निन्दा होती है और परलोकमें बड़ी बड़ी यातनाएँ अपव्ययी मनुष्य ज़रूरतके लिए खर्च नहीं करता सहनेको मिलती हैं। बल्कि खर्च करने के लिए नयी नयी अनावश्यक जरूरतें इसी तरह समाजके लिये भी अपव्यय बड़ा अनिष्टपैदा करता है । ऐसा देखा गया है कि फिजल खर्च कर है । एकको अपव्यय करते हुए देखकर तथा करने वाला जब किसी समय अपनी एक ज़रूरतको फिजूलखर्चीसे नानावाहियात विनोद एवं रंगरेलियाँ पूर्ण हुई देखता है तो तुरन्त उसके मनमें यह खयाल करते हुए देखकर समाजके दूसरे व्यक्तिके मनमें भी पैदा होता है कि खर्च करनेके लिए अब वह कौनसी वैसी ही चाह पैदा होती है । एक दूसरेके मनमें ईष्या जरूरत पैदा करे । इस तरह वह सदा कुछ न कुछ खर्च और जलनके भाव पैदा होते हैं। बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ करने ही की धुनमें रहता है । वह कभी अपने आपको हो जाती हैं । पार्टीबन्दियाँ हो जाती हैं। एक दूसरेके शान्त एवं स्वस्थ अनुभव नहीं करेगा । उसके दिमाग़में घमंड को चूर चूर करनेकी चेष्टा करता है और दूसरा नयी नयी इच्छाएं और उनको पूरा करनेके लिए अप- अपने बड़प्पन और शान शौकतको सुरक्षित रखनेके व्ययकी चालें चलित हुआ करेंगी । वह स्थिर होकर लिए चिन्तित रहता है । तथा इसी कसाकसीमें रुपया