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________________ १८४ १७ द्वादशभाव-जन्मप्रदीप १८ वसुदेवहिडी * अनेकान्त * यह ग्रन्थ मूल प्राकृत भाषा में रचा हुआ सवा लाख श्लोक प्रमाण था ऐसा सुप्रसिद्ध हेमचन्द्राचार्य के गुरुदेव देवचन्द सूरि बतलाते हैं कि वंदामि भद्दवाहुँ जेण य अइर सिधबहुक हाक लियं । रइयं सवायलक्खं चरियं वसुदेवरायस्स ॥ शान्तिनाथचरित्र, मंगलाचरण [ आश्विन, वीर निर्वाण सं० २४६६ इन सब ग्रन्थोंमें नियुक्तियाँ मुख्यस्थान रखती हैं। इनका जन्म, दीक्षा, अवसानसमय तथा शिष्या दिसंतति जानने के लिये मेरी दृष्टिमें आने वाले ग्रन्थों में कोई स्थल या साधन प्राप्त नहीं होते । श्रागमके अभ्यासी और इतिहास के बेता . कोई नवीन तत्र बाहर लावेंगे तो हम जैसों क ऊपर उनका महान् उपकार होगा, ऐसी आशा रखकर विराम लेता हूँ । तथा श्री हंस विजयजी जैन लायब्रेरीकी ग्रंथमाला तरफ से छपाई हुई नर्मदा सुंदरीकथा के अन्त में -- इति हरिपितृहिण्डेर्भद्रबाहुप्रणीविरचितमिह लोकश्रोत्रपात्रैकपेय चरितममलमेतन्तमदासुन्दरीयं भवतु शिवनिवासप्रापकं भक्तिभाजाम् ॥ २४६ ॥ हाल में उपलब्ध वसुदेवहिण्डी तो संघदासक्षमाश्रमणने आरंभ की थी और धर्मसेनगणी महत्तरने पूरी की थी, उससे यह भिन्न होगी ।
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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