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वष३, किरण१२]
श्रीभद्रबाहुस्वामी पूरा ग्रन्थ कोई रचे (बनावे ) और बीचमें ऋषिकाषित नियुक्ति*. प्रकरण अन्य जोड़े तथा उसके लिये उल्लेख तीसरा ८ पिंड + , व्यक्ति करे तो यह क्या सम्भवित मालूम होता ९ ओघ , है ? इसलिये मेरी धारणाके अनुमार तो मूल ग्रंथ १० संसक्त ,
और उसकी अन्य गाथा तक स्थविरावली यह सब नियुक्ति तथैव मूल ग्रन्थ भी खुदके बनाये हुएहैंएक ही व्यक्ति ( दूसरे भद्रबाहु ) की रचना है। · ११ बृहत्कल्प :
- ग्रन्थकार उपयुक्त गाथा लिखकर पट्टावलीकी १२ व्यवहार समाप्ति करता है, इस कारण वह स्वयं श्रीदेवर्द्धि- १३ दशाश्रुतस्कंध x गणि क्षमाश्रमण का शिष्य है, सतानीय है या अन्य १४ भद्रबाहुसंहिता ® वंशका है, इसके लिये अधिक ऊहापोह करनेकी १५ ग्रहशान्ति स्तोत्र आवश्यकता है।
१६ उवसग्गहरं स्तोत्र * . इनके रचे हुए ग्रन्थ
* इस समय उपलब्ध नहीं। १ आचारांग नियुक्ति ।
येनैषा पिण्डनियुक्तियुक्तिरम्याकिनिर्मिता । २ सूत्रकृतांग ,
द्वादशांगविदेतस्मै नमःश्रीभद्रबाहवे ।। ३ दशवकालिक ,,
-मलयगिरि, पि० नि० वृ० ४ उत्तराध्ययन ,,
* श्रीकल्पसूत्रममृत विबुधोपभोगयोग्यं५ श्रावश्यक
जरामरणदारुण दुःखहारि। ६ सूर्यप्रज्ञप्ति ,,
येनोद्धृतंमतिमतामथितात् श्रुताब्धेः अपनी रची हुई नियुक्तियों के नाम ग्रन्थकार श्रीभद्रबाहुगुरवे प्रणतोऽ स्म तस्मै । स्वय इसप्रकार बतलाते हैं
-क्षेमकीर्ति वृहत्कल्पटीका श्रावस्सय दसकालियस्स तह उत्तरज्झमायारे। - हाल में जो मंगल के निमित्तपयषण पर्वमें वाँचा सुयगडे निज्जुत्तिं वोच्छामि तहा दसाणं च ।। जाता है वह कल्पसूत्र इस ग्रन्थका अाठवां अध्ययन है, कप्पस्स य निज्जुत्ति ववहारस्स य परमणिउणस्स। इस विषयमें निश्चित प्रमाण नहीं। सूरियपन्न तीए वोच्छं इसिभासियाण च ॥
तथान्यां भगवाँश्च के सहिता भद्रबाहवीम् । आवश्यक निगा० ८२, ८३ इत्यादि कथन होनेसे इन्होंने स्पष्ट संहिता रची है यह + यह नियुक्ति इस समय उपलब्ध नहीं । देखो, ठीक, परन्तु हाल में जो भद्रबाहुसंहिता नामकी पुस्तक निम्नलिखित उल्लेख
छपी है वह इन भद्रबाहुकी बनाई हुई नहीं है । अस्या नियुक्तिरभूत् पूर्वे श्रीभद्रबाहुसूरिकृता। के यह ग्रंथ संस्कृत पद्यबद्ध है, इसका त्रुटित कलिदोषात् साऽनेशत् व्याचक्षे केवलं सूत्रम् ॥ भाग हमारे देखने में आया है, सम्पर्ण ग्रन्थ कितने
, मलयगिरि -सूर्यप्रज्ञप्ति । श्लोकप्रमाण होगा यह नहीं कहा जा सकता।