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________________ ६८० अनेकान्त नियुक्तिको २३० वीं गाथा में श्री वज्रस्वामीका# और २३२ वीं गाथा में अनुयोगपृथक्करण सम्बन्ध में कारक्षितका उल्लेख आता है । इसके बाद निन्हवपरक बन करते हुए महावीर निर्वाण ४०९ वर्ष पीछे बोटिक ( दिगम्बर) मतकी उत्पत्ति बतलाई है। वह इस प्रकार हैः बहुरय पएस अन्वत्त सामुच्छा दुग तिगे अबद्धियाँ चैव एएसि निग्गमणं वोच्छं हाणुपुत्र्वी ॥ २३५ ॥ बहुरय जमालिपभवा जीवपएसा य तीसगुताओ । अव्वत्तासाढ़ाओ सामुच्छे अस्समिताओ ॥ २३६॥ गंगा दोकिरिया छल्लुग्ग तेरासियाण उपत्ती | थेराय गोट्ठमाहिल पुट्ठमबद्धं परूविति ॥ २३७ ॥ सावत्थी उसभपुरं सेयंबिया मिहिल उल्लुग्गतीरं । पुरिमंतर जिया दसरह वीरपुर च नगराई || २३८ ॥ [प्राश्विन, वीर निर्वाण सं० २४६३ चौदस सोलसवासा चोद्दसवी सुत्तरा य दुणिसया । अट्ठावीसा य दुवे पंचेव सया य चोआला ॥ २३६ ॥ पंचे सया चुलसीओ छच्चेव सया नवुत्तरा हुंति । नागुप्पत्तीए दुवे उप्पन्ना निव्वए सेसा ॥ २४० ॥ - गाथा इत्यादि अर्थ - ( १ ) भगवान महावीर को केवलज्ञान उत्पन्न होने से १४ वर्ष पीछे श्रावस्ती नगरी में जमाली । आचार्य में बहुरत निन्हत हुआ । ( २ ) भगवान की ज्ञानोत्पत्ति के पश्चात् १६ वें वर्ष में ऋषभपुर नगर में तिष्यगुप्त आचार्य से छेल्ला प्रदेशमें जीवत्व मानने वाला निन्हव हुआ । ( ३ ) भगवान के निर्वाण के २१४ वर्ष पीछे श्वेताम्बिका नगरी में आषाढाचार्य से अव्यक्तवादी निन्हव हुआ । ( ४ ) भगवान के निर्वाण के २२० वर्ष पीछे मिथिला नगरी में अश्वमित्राचार्य से सामुच्छेदिक निन्हव हुआ । ( ५ ) निर्वाण से २२ वर्ष में उल्लूका के तट पर गंगाचार्य से द्विक्रिय निन्हव हुआ । ( ६ ) निर्वाण मे ५४४ वर्ष पीछे अंतरंजिका नगरी में षडुल्ल काचार्य से त्रैराशिक निन्हव हुआ । ( ७ ) निर्वाण ने ५८४ वर्ष पीछे दशपुर नगर में स्पृष्टकर्म के प्ररूपक स्थविर गोष्ठामाहिल से अवद्धिक निन्हव हुआ । ( ८ ) और आठवा बोटिक ( दिगम्बर) निन्हव रथवीरपुर नगर में भगवान के निर्वाणके ६०९ वर्ष पीछे हुमा । इस प्रकार भगवानके केवलज्ञान उत्पन्न होने के पीछे दो, और निर्वाण के पीछे छह ऐसे आठ निन्हव हुए । इससे भी नियुक्तिकार भद्रबाहुस्वामी के पंचमश्रुतकेवली मे भिन्न होनेका निश्चय होता है, क्योंकि पूर्व समय में हुआ व्यक्ति भविष्य में होने वाले के वास्ते 'अमुक वर्ष में अमुक हुआ' ऐसा प्रयोग नहीं ( विक्रम सं० २६) ५०४ ( वि० सं० * वीर निर्वाण संवत् ४६६ वज्रका जन्म, वीर नि० [सं० ३४ ) में दीक्षा, वी० निर्वाण सं० ५४८ ( वि० सं० ७८) में युगप्रधानपद और वी० नि० स० ५८४ ( वि० सं० ११४ में स्वर्गवास हुआ था । + वीर नि० सं० ५२२ (वि० सं०५२) में जन्म, वीर नि० सं० ५४४ (वि० सं० ७४ ) में दीक्षा, वीर नि० सं० ५८४ – ( वि० सं० ११४ में युग प्रधानपद और वी० नि० सं० ५६७ ( वि० सं १२७ ) में स्वर्गस्थ हुए थे । माथुरी वाचनानुसार वी० नि० सं० ५८४ में स्वर्गवास माना जाता है । * आगमोदय समिति द्वारा मलयगिरिकृत टीकासहित मुद्रित प्रतिमें ये गाथाएँ क्रमशः ७६६, ७७३ नं० पर पाई जाती । ——अनुवादक
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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