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________________ ६७४ चुका है । परन्तु उसकी स्वोपज्ञ टीका अभी तक अप्राप्य है । बम्बई के सरस्वती भवनमें इस सहस्र. नामकी एक टीका है परन्तु वह श्रुतसागरसूरिकृत है। १४जिनयज्ञकल्प- सटीक — जिनयज्ञकल्पका दूसरा नाम प्रतिष्ठासारोद्धार है । यह मूल मात्र तो पंडित मनोहरलालजी शास्त्री द्वारा सं० १९७२ में प्रका शित हो चुका है । परन्तु इसकी स्वोपज्ञ टीका अप्राप्य है । इस ग्रंथको पण्डितजीने अपने धर्मा मृतशास्त्रका एक अंग बतलाया 1 १५ त्रिषटिस्मृतिशास्त्र सटीक - यह ग्रंथ कुछ समय पूर्व माणिकचन्द्र-ग्रन्थमाला में मराठी अनु वादसहित प्रकाशित हो चुका है । संस्कृत टीकाके टिप्पणी के तौरपर नीचे दे दिये गये हैं । नित्यमहोद्योत - यह स्नानशास्त्र या जिनाभिषेक अभी कुछ समय पहले पण्डित पन्नालालजी सोनीद्वारा संपादित “अभिषेक पाठ-संग्रह " में श्री श्रुतसागरसूरिकी संस्कृत टीकासहित प्रकाशित हो चुका हैं। १७ रत्नत्रय-विधान– यह ग्रंथ बम्बई के ऐ० प० सरस्वती-भवन में है । छोटासा ८ पत्रोंका ग्रंथ है । इसका मंगलाचरण श्रीवर्द्धमानमानम्य गौतमादीश्च सद्गुरून् । रत्नत्रयविधि वच्ये यथाम्नायां विमुक्तये ॥ १८ अष्टांगहृदयोद्योतिनी टीका - यह आयुर्वेदा चार्य वाग्भटके सुप्रसिद्ध ग्रंथ वाग्भट या अष्टांग हृदयकी टीका है और अप्राप्य है । अनेकान्त [ भाद्रपद, वीर निर्वाण सं० २४६६ गार और अनगार दोनोंकी टीका पृथक् पृथक् दो जिल्दों में प्रकाशित हो चुकी है। इन २० ग्रन्थों में से मूलाराधना टीका, इष्टोपदेश टीका, सहस्रनाम मूल (टीका नहीं), जिनयज्ञकल्प मूल ( टीका नहीं ), त्रिषष्टिस्मृति, धर्मामृत के सागार अनगार भागों की भव्य कुमुदचन्द्रिका टीका और नित्यमहोद्योत मूल (टीका नहीं ) ये ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं और क्रियाकलाप उपलब्ध है । भरताभ्युदय और प्रमेयरत्नाकर के नाम सोनागिरके भट्टारकजीके भण्डार की सूची में अब से लगभग २८ वर्ष पहले मैंने देखे थे । संभव है वे वहांके भण्डारोंमें हों । शेष ग्रन्थोंकी खोज होनी चाहिए। हमारे खयाल में आशाधरजीका साहित्य नष्ट नहीं हुआ है । प्रयत्न करनेसे वह मिल सकता है । ११ – २० सागार और अनगार - धर्मामृतकी भव्यकुमुदचन्द्रिका टीका - माणिकचन्द्रग्रन्थमाला में सा रचनाका समय पहले लिखा जा चुका है कि पण्डित आशाधरजीकी एक ही प्रशस्ति है जो कुछ पद्योंकी न्यूनाधिकता के साथ उनके तीन मुख्य ग्रंथों में मिलती है। जिनयज्ञकल्प वि० सं० १२८५ में, सागार 'शाधरविरचित पूजापाठ' नामसे लगभग चारसौ पेजका एक ग्रन्थ श्री नेमीशा आदप्पा उपाध्ये, उद्गांव ( कोल्हापुर ) ने कोई २० वर्ष पहले प्रकाशित किया था । परन्तु उसमें प्रशाधरकी मुश्किलसे दो चार छोटी छोटी रचनायें होंगी, शेष सब दूसरोंकी हैं। और जो हैं वे उनके प्रसिद्ध ग्रंथोंसे ली गई जान पड़ती हैं ।
SR No.527165
Book TitleAnekant 1940 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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