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अनेकान्त
यदि उस समय उनकी उम्र १५-१६ वर्षकी रही हो तो उनका जन्म वि० सं० १२३५ के आसपास हुआ होगा । उनका अन्तिम उपलब्ध ग्रन्थ (अनगार-धर्म-टीका ) वि० सं० १३०० का है। उसके बाद वे और कब तक जीवित रहे, यह पता नहीं । फिर भी निदान ६५ वर्षकी उम्र तो उन्होंने अवश्य पाई थी और उनके पिता तो उनसे भी अधिक दीर्घजीवि रहे ।
अपने समयमें उन्होंने धाराके सिंहासन पर पाँच राजाओं को देखा -
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समकालीन राजा
१ विन्ध्यवर्मा – जिस समय में वे धारामें आये उस समय यही राजा थे । ये बड़े वीर और विद्यारसिक थे । कुछ विद्वानोंने इनका समय वि० सं० १२१७ से १२३७ तक माना है । परन्तु हमारी समझमें वे १२४६ तक अवश्य ही राज्यासीन रहे हैं जब कि शहाबुद्दीन गोरीके त्रास से पण्डित
शाघरका परिवार धारामें आया था। अपनी प्रशस्ति में इसका उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किया है ।
२ सुभटवर्मा - यह विन्ध्य वर्माका पुत्र था और बड़ा वीर था । इसे सोहड़ भी कहते हैं । इसका राज्यकाल वि० सं १२३७ से १२६७ तक माना जाता है | परन्तु वह १२४९ के बाद १२६७ तक होना चाहिए । पण्डित आशाधरके उपलब्ध ग्रन्थ में इस राजा का कोई उल्लेख नहीं है ।
३ अर्जुनवर्मा – यह सुभटवर्माका पुत्र था और बड़ा विद्वान् कवि और गान - विद्या में निपुण था । इसकी 'अमरुशतक' पर 'रससंजीविनी' नामकी टीका बहुत प्रसिद्ध है जो इसके पांडित्य और
[ भाद्रपद, वीर निर्वाण सं० २४६६
काव्यमर्मज्ञताको प्रकट करती है । इसीके समय में महाकवि मदनकी 'पारिजातमंजरी' नाटिका बसन्तोत्सव के मौके पर खेली गई थी । इसीके राज्य काल में पं० आशाधर नालछा में जाकर रहे थे । इसके समय में तीन दान-पत्र मिले हैं। एक मांडू में वि०सं०१२६७ का, दूसरा भरोंच में १२७० का और तीसरा मान्धाता में १२७२ का । इसने गुजरातनरेश जयसिंहको हराया था ।
४ देवपाल-अर्जुन वर्मा के निस्संतान मरने पर यह गद्दी पर बैठा । इसकी उपाधि साहसमल्ल थी । इसके समय के सं० १२७५, १२८६ और १२८९ के तीन शिलालेख और १२८२ का एक दानपत्र मिला है। इसीके राज्यकाल में वि० सं० १२८५ में जिनयज्ञ- कल्पकी रचना हुई थी ।
५ जैतुगिदेव - ( जयसिंह द्वितीय ) यह देवपाल का पुत्र था । इसके समय के १३१२ और १३१४ के दो शिलालेल मिले हैं। पं० आशाधर ने इसीके राज्य काल में १२९२ में त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र १२९६ में सागारधर्मामृत टीका और १३०० में अनगारधर्मामृत टीका लिखी ।
ग्रन्थ-रचना
वि० सं० १३०० तक पं० आशा धरजीने जितने ग्रन्थोंकी रचना की उनका विवरण नीचे दिया जाता है
१ प्रमेयरत्नाकर – इसे स्याद्वाद विद्याका निर्मल प्रसाद बतलाया है । यह गद्य ग्रन्थ है और बीच
+ विन्ध्यवर्मा जिसकी गद्दीपर बैठा था, उस अजयवर्मा के भाई लक्ष्मीवर्मा का यह पौत्र था ।