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अनेकान्त
[भाद्रपद, वीर निर्वाण सं०२४६६
६ सांस्यमतपरीक्षा-इसके पूर्वपक्षमें पच्चीस तत्वों- १.१० भादृ:प्रभाकरमतपरीक्षा-पूर्वपक्षमें भाटी के ज्ञानकी महत्ता बताते हुए माठरवृत्ति (१० ३८) द्वारा ग्यारह पदार्थोंका स्वीकार करनेका स्पष्ट कथन है, में दिया गया यह श्लोक उद्धृत किया है
जो किसी प्राचीन तर्कग्रन्थमें नहीं देखा जातापंचविंशतितत्त्वज्ञो यत्र कुत्राश्रमे रतः।
___ "मीमांसकेषु तावद् भाट्टा भणन्ति-पृथिव्यतेजो जटी मुंडी शिखी केशी मुच्यते नात्र संशयः॥ वायुविकालाकाशात्ममनःशब्दतमांसि इत्येकादशैव पदा
र्थाः ।" खंडन ठीक अष्टसहस्री-जैसा ही है ।
प्रभाकर नव पदार्थ ही मानते हैं-"द्रन्यं गुणः ७ वैशेषिकमतपरीक्षा-इसके पूर्वपक्षमें मोक्षके
क्रिया जातिः संख्या सादृश्यशक्तयः । समवायक्रमश्चेति साधन बताते हुए लिखा है कि-शैव पाशुपतादिदीक्षा
नव स्युः गुरुदर्शने" भट्टगुण क्रिया आदिको स्वतंत्र ग्रहण-जटाधारण-त्रिकालभस्मोद्धूलनादितपोऽनुष्ठानवि
पदार्थ नहीं मानते। शेषश्च ।”
__भाट जातिका और व्यक्तिमें सर्वथा तादात्म्य मान वैशेषिकके अवयवीका खंडन करते हुए उसे
___ कर भी जातिको नित्य और एक मानते हैं। इसका 'अमूल्यदानक्रयी'-बिना कीमत दिए खरीदने वाला
बाला- खंडन करते हुए हेतुबिन्दुकी अर्चटकृत टीकामें उद्धृत लिखा है । यह पद धर्मकीर्तिके ग्रंथोंमें पाया जाता है।
निम्न कारिकाएँ भी प्रमाणरूपमें पेश की गई हैं:इसका समवायके खंडन वाला प्रकरण 'श्राप्तपरीक्षा'
तादाम्यं चेन्मतं जातेयक्तिजन्मन्यजातता । के साथ विशेष सादृश्य रखता है। और इसीका प्रति- नाशेऽनाशश्व केनेष्टेः तच्चानन्वयो न किम् ॥ इत्यादि बिम्ब प्रमेयकमलमार्तण्ड तथा न्यायकुमुदचन्द्र के समवाय बस सामान्यका खंडन अधरा ही है । अागेका खंडनमें स्पष्ट देखा जाता है।
ग्रंथ नहीं मिलता। ___८ नैयायिकमतपरीक्षा-वैशेषिक और नैयायिकों इसमें आगे भट्ट जयराशिसिंहकृत 'तत्त्वोपप्लवसिंह में कोई खास भेद न बताते हुए वैशेषिकमतके साथ ग्रंथमें प्ररूपित तत्वोपप्लव सिद्धान्तकी परीक्षा होगी । ही साथ इसकी भी लगे हाथ परीक्षा कीगई है । इसके अष्टसहस्री आदिकी तरह ही इसमें यह परीक्षा अत्यन्त पूर्वपक्ष में भक्तियोग, क्रियायोग तथा ज्ञानयोगका वर्णन विशद होनी चाहिए । है । भक्तियोगसे सालोक्य मुक्ति, क्रियायोगसे सारूप्य यहां तक तो ग्रंथका खंडनात्मक भाग ही है।
और सामीप्य मुक्ति, तथा ज्ञानयोगसे सायुज्य मुक्तिका आगेका 'अनेकाम्तशासनपरीक्षा' भाग, जो ग्रन्थका प्राप्त होना बहुत विस्तारसे बताया है। उत्तरपक्षमें मंडनात्मक भाग है और काफी विस्तारसे लिखा गया विपर्यय, अनध्यवसाय पदार्थों को सोलहसे अतिरिक्त मानने होगा, इसमें उपलब्ध ही नहीं है । का प्रसंग दिया है । सोलह पदार्थोंके खंडनका यही तर्कग्रन्थोंके अभ्यासी विद्यानन्दके अतुल पाण्डित्य, प्रकार प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि ग्रंथोंमें भी देखा जाता तलस्पर्शी विवेचन, सूक्ष्मता तथा गहराईके साथ किए है । अन्तमें, उपसंहार करते हुए लिखा है कि- जाने वाले पदार्थों के स्पष्टीकरण एवं प्रसन्न भाषामें गंथे "संसर्गहाने सर्वार्थहानेयॊगवचोऽखिजम् । भवेत्प्रलाप..." गए युक्ति जालसे परिचित होंगे। उनके प्रमाणपरीक्षा,