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अनेकान्त
[भाद्रपद, वीर निर्वाण सं०२४५६
सर्वोपि जीवलोकः श्रोतुं कामो वृषं हिसुगमोक्त्या। दानवीर धनिकोंका भी हमारे समाजमें टोटा नहीं है । विज्ञसौ तस्य कृते तत्रायमुपक्रमः श्रेयान् ॥ ६॥ अब शेष रहे विद्वान् लोग । सो-आजका जमाना ___ अर्थ-ग्रन्थ बनानेमें यद्यपि अन्तरंग कारण कविका उपयोगितावादका है । किसी बातकी उपयोगिता (श्रावअति विशुद्ध भाव है तथापि उस कारणका भी कारण श्यकता) विज्ञानीपकरणोंके द्वारा सिद्ध कर देने पर ही सब जीवोंका उपकार करने वाली साधुस्वभाव वाली लोग उसे अधिकांशमें अपनानेको तैयार होते हैं । हमारे बुद्धि है ॥ ५॥ सम्पूर्ण जनसमूह धर्मको सरलरीतिसे समाजमें ऐसे पंडित हैं जो जिनसिद्धांत शास्त्रके जानकार सुनना चाहता है, यह बात सर्व विदित है । उसके लिए हैं.और ऐसे प्रोफेसर भी हैं जो विज्ञानोपकरणोंके जानकार यह प्रयोग (ग्रंथावतार-योजना) श्रेष्ठ है। हैं, परन्तु ये दोनों महानुभाव मिलकर ही ऐसे ग्रंथका
इसी प्रकार पं० टोडरमल जी मोक्षमार्गप्रकाशकमें निर्माण कर सकते हैं, एक एक नहीं । क्योंकि एक लिखते हैं
- दूसरेके विषयका बहुत ही कम जानकार हैं। "करि मंगल करि हों महाग्रन्थ करनको काज। इस प्रकार सामग्री सब मौजूद है । जिस दिन इस जाते मिले समाज सुख पावें निजपद राज ॥” उद्देश्यको लेकर पंडितों और प्रोफेसरोंका सम्मेलन हो
पं० गोपालदासजीने भी श्री जैनसिद्धान्त-दर्पणमें जायेगा उस दिन ग्रन्थ तैयार हुआ समझिये । ज़रूरत लिखा है
है ऐसे सम्मेलनकी शीघ्र योजना की। नवा वीरजिनेन्द्र सर्वज्ञ मुक्तिमार्गनेतारम् । यदि दस हज़ार रुपये खर्च करके भी हम ऐसा बाल-प्रबोधनार्थ जैन सिद्धान्त-दर्पणं वषये ॥" मूलग्रन्थ (हिन्दी और अंग्रेज़ीमें) तैयार करा सकें तो
अस्तु-अब हमें यह देखना है कि गीता-जैसा समझ लेना चाहिये कि वह बहुत ही सस्ता पड़ा। जिनधर्म-विषयक ग्रंथ बनाने और प्रचार करनेके लिये मेरी समझमें यह काम "वीरसेवामन्दिर, 'सरकिस किस सामग्रीको आवश्यकता है ? वह सामग्री यह है- सावा" के सिपुर्द होगा तो पार पड़ सकेगा। अन्यथा १ जिन-सिद्धान्त-शास्त्र ।
नाम भले ही हो जाय, काम होने वाला नहीं। . २ विद्वान लोग।
अर्थात्-जो कुछ भी अन्य तंत्रोंमें अच्छी अच्छी ३ पाश्चात्य विज्ञानोपकरणोंकी खरीदारी तथा ग्रंथ
उक्तियाँ दृष्टिगोचर हो रही हैं वे सब जिनागमसे उठा की लिखाई छपाई श्रादिके लिये धन ।
ली गई हैं । (राजवार्तिक) जिनसिद्धान्तशास्त्र के विषय में दावेके साथ कहा जयति जगति क्लेशावेशप्रपंच-हिमांशुमान् । जा सकता है कि यह सामग्री हमारे पास काफ़ी है IX विहत-विषमैकांत-ध्वान्त-प्रमाण-नयांशुमान् ॥ x बल्कि यहाँ तक कहा जाता है कि
यतिपतिरजो यस्याधृष्यान् मताम्बुनिधेलवान् । सुनिश्चितं नः परतंत्रयुक्तिषु, स्वमत-मतयस्तीया नाना परे समुपासते ॥ स्फुरंति याः काश्चनसूक्तिसम्पदः। ____ अर्थात्-जिनागमके एकएक विन्दुको लेकर तवैव ताः पूर्वमहार्णवोस्थिता, अनेक दार्शनिक अपना अपना मत बखानते हुए उसी जगत्प्रमाणं जिनवाक्यविपुषः ॥ जिनशासनकी उपासना करते हैं।