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अनेकान्त
[भाद्रपद, वीर निर्वाण सं०२४३६
दूसरे पद्यमें हरिहरकी स्तुति है। इत्यादि।
दुर्योधनो भीष्मयुधिष्ठरः स - अत एव इस 'कविराजमार्ग' का कर्ता नृप- पायाद्विराडुत्तरगोभिमन्युः ॥१॥ तुंग नहीं है; उसके आस्थानके किसी कवि-द्वारा
(२) आदिपंपने 'विक्रमार्जुनविजय' की अवरचित है, उसकी अवतारिकामें विष्णुस्तुतिसे,
तारिकाकी विष्णु स्तुतिमें अपने पोषक चालुक्य निर्दिष्ट धर्म नृपतुंगका स्वधर्म ही होना चाहिये
अरिकेसरिकी विष्णु के साथ तुलना की हैरचयिताका स्वधर्म नहीं होगा। 'कविराजमार्ग' के अवतारिका-पद्य विष्णु
.......... 'उदात्त ना। स्तुति-सम्बन्धी नहीं हैं, उन पद्योंमें नृपतंगने रायणनाद देवनेमगीगरिकेसरि सौख्यकोटियं ॥१॥ अपना ही वर्णन किया होगा इस प्रकार कोई
(३) रन्नने अपने 'गदायुद्ध' में अपने पोषक आक्षेप करेंगे तो, वह आक्षेप निराधार है। इस ,
चालुक्य नरेश तैलप आहवमल्लकी (ई० स० ९७३आक्षेपको निम्न लिखित कारणोंसे निवारण कर
९९७ ) विष्णु के साथ तथा शिव, ब्रह्म, सूर्य, सकते हैं,
इत्यादि देवताओं के साथ तुलना करते हुये काव्य ___ 'कविद्वारा अपने कथानायकको या अपनेको
का प्रारम्भ किया हैअपने इष्टदेवताके साथ तुलना करते हुये अथवा इष्ट देवताको अपने कथानायकके नामसे या
...."प्रादिपुरुषं पुरुषोत्तमनी चलुक्यना । अपने नामसे उल्लेख करते हुये स्तुति करने की रूढि रायण देवीनीगेमागे मंगलकारणमुरसवंगलं ॥१॥ बहुत पुराने समयसे कर्नाटक तथा संस्कृत काव्योंमें (४) श्रवणबेल्गोलकी गोमटेश्वर महामूर्तिके । है। उदाहरण:
(ई० स० ९८१) प्रतिष्ठापक चामुंडरायके गुरु नेमि१ 'भास' महाकविके 'प्रतिज्ञायौगन्धरायण' चन्द्रने अपने 'त्रिलोकसार' नामके प्राकृत ग्रंथमें नाटककी आदि की महासेन (स्कन्द) स्तुतिमें अपने इष्ट तीर्थकर ३३३ (२२वें)? 'नेमिनाथजिन' उसके मुख्य पात्रों के नाम हैं
___के नामको अपना नाम 'नेमिचन्द्र' से उल्लेख पातु वासवदत्तायो महासेनोतिवीर्यवान् । करते हुये उनकी स्तुति श्लेषसे कही हैवत्सराजस्तु नाम्ना सशक्तियोरान्धरायणः ॥ १॥
बलगोविन्दसिंहामणिकिरणकलावरुणचरणणहकिरणं । अपने 'पंचरात्र' नाटकमें नान्दीकी कृष्ण
विमलयरणेमिचंदं तिहु वण चंदं णमं सामि" ॥ स्तुतिमें नाटक पात्रोंके नाम दिये गये हैंद्रोणः पृथिव्यर्जुनभीमदूतो।
(५) आदिपंपने अपने धर्म ग्रन्थ कन्नड यः कर्णधारः शकुनीश्वरस्य ॥
'आदिपुराण' (ई०स०९४१-४२) के २रे आश्वाससे 'जन्न का शासनसंग्रह' ( 'कर्नाटककाव्यकला- 'बलगोविन्दशिखामणिकिरणकलापारुणचरणनख किरणम् निधि नं.३४ मैसूर)।
विमलतरनेमिचन्द्रं त्रिभुवनचन्द्रनमस्यामि ॥