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वर्ष ३, किरण ११]
नृपतुंगका मत विचार
और 'नागानन्द' नामके ३ नाटक लिखे हैं; जैन होते हुए भी इनमें प्रतिफलित धर्म उन कवियों (३) समुद्रगुप्तके ( ई० स० ३३०-३७५ ) के पोषकों का स्वधर्म है, कवियोंका स्वधर्म नहीं अलाहाबाद-स्तम्भको प्रशस्तिसे वह 'कविराज' था, इस बातको कौन नहीं जानता ? (२) ई० स० तथा गान्धर्वविद्यामें भी विशारद मालूम पड़ता १२३० में जयसिंह सूरि नामके श्वेताम्बर कवि है। इतना ही नहीं उसके समयके बहुतमे सिक्कोंमें रचित 'हम्मीरमदमर्दन' नाटकमें * जिनस्तुति भी उसके सिंहासनमें सुखासीन होते हुये वीणा या जैनधर्म-सम्बन्धी किसी बातका जिक्र किया बजानेका चित्र है । (४) भूलोकमल्ल' उपाधि हो नहीं । उसमें उसने लिखा है:युक्त ( ई० स० ११२६-११३८ ) चालुक्य वंशके "स्तंभतीर्थनगरी गरीयो रत्नांकुरस्य त्रिभुवननरेश तृतीय सोमेश्वरने 'मानसोल्लास' अथवा विभुविनम्र मौलि मुकुटमणि किरण-धोरणी-धौत'अभिलाषितार्थ चितामणि' नामका संस्कृत ग्रंथ
चरणारविन्दस्य वृन्दारकवृन्दविक्रमचस्कृतिपरिपाकलुटा लिखा है, इत्यादि ।
कद्रष्टदनुतनुजविजयश्रीभीमस्व श्रीभीमेश्वरस्य यात्रायां . तो भी 'कविराज मार्ग' नृपतुंगकी स्वयं कृति ............श्री वस्तुपालकुलकाननकेलिसिंहेन श्रीमता नहीं है औ उनके नामसे दूसरे किसीने उसे रचा जयसिंहेन" होगा ऐसा समझा जाय तो उससे हानि क्या ? इस नाटकके अन्तमें नायकसे की गई शिव(१) कन्नड कविश्रेष्ट आदिपंप तथा रन्नकवि स्तुति साक्षात् शैव कवि द्वारा रचित मालूम पड़ती जैन थे इस बातको कौन नहीं जानता ? परन्तु है। उस प्रार्थनासे प्रसन्न होकर शिवने प्रत्यक्ष हो पंपके — विक्रमार्जुन विजय' नामक पपभारत' की कर नायकके भरत वाक्यको पूर्ति कर दिया लिखा तथा रन्न के 'गदा युद्ध' को क्या कोई जैन कविकृत
है; (३) होयसलवंशी वीरवल्लालका ( ई० स०
हो कह सकता है ? इनमें उन कवियोंने अपने
११७३-१२२०) आश्रित् कन्नड जैन कवि जन्नने पोषक नरेशोंके स्वधर्मका अनुकरण करते हुए और 'यशोधरचरित' तथा 'अनन्तनाथ पुराण' जैन उसके अनुगुणरूप विष्णुस्तुति, शिवस्तुति काव्य रचने पर भी राजाके लिये रचित चन्नरायइत्यादि से अपना ग्रन्थारम्भ करते हुये,उस धर्मकी
पट्टणके १७९ वें (ई० स० ११९१ ) ताम्रशासन धोरणामें ही उनकी आद्यन्त रचना करनसे ये की अवतारिकामें दिया हुआ संस्कृत श्लोक विष्णु समग्र वैष्णव धर्ममय हैं । आप जैन होते हुए भी स्तति सम्बन्धी है, और उत्पलमालामें विष्णुकी उन कवियोंने अपने काव्योंमें अपने धर्मकी बात बराहावतारकी स्तुति है, वैसे ही इसके द्वारा ली है क्या ? अतः इनके रचयिता कवियोंने स्वतः रचित तरिकेरेके ४५ वें (ई० स० ११९७ ) शासन $ 'Men and thought in ancient India' के आदि पद्यमें 'अमृतेश्वर' नामक शिवकी तथा
pp. 171-172, * Gaikwad's Oriental Series No. X $ Ibid, pp. 154.155. E. H. D. P.67.
पृ०२ और ५६
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Series No. X