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अनेकान्त
पर इस से कहा हुआ अमोघवर्षनृपतुंग हमारे इस लेखका नायक न होकर, राष्ट्र कूट वंशका (अथवा अन्य किसी वंशका ) और कोई उसी नामका नरेश होगा तो इस आचार्य के कथन और इस नरेश के सम्बन्ध में तर्क-वितर्क करना इस लेख का उद्देश्य नहीं ।
(इ) प्रश्नोत्तर रत्नमालिका + यह एक नीतिमार्गोपदेशी छोटासा संस्कृत काव्य है । बम्बई 'निर्णयसागर ' मुद्रणालयसे प्रकटित काव्य माला के सप्तम गुच्छकमें यह मुद्रित है। इसमें २९ पद्य हैं; पर ' Indian Antiquary' (Vol. XII.) में इस कविता के सम्बन्ध में ( पृ०२१८) इसमें ३० पद्य हैं ऐसा कहा है। इसे प्रथमतः प्रकाशित करने वाले श्रीमान् के. बी. पाठक महाशय मालूम पड़ते हैं; परन्तु 'कविराजमार्ग' के उपोद्घात में इसका निर्देश करते वक्त इसमें कुल कितने पद्य हैं सो लिखा नहीं, वैसे ही उन्हें मिली हुई प्रतिके अन्तिम एक पद्यको उधृत करने के सिवाय उसमें और पद्यों को दिया भी नहीं । उस उपोद्घात में ( पृ०९) इस कविता के 'सम्बन्ध में आप कहते हैं :
[भाद्रपद, वीर निर्वाण सं० २४६६
विवेकांस्यक्तराज्येन राज्ञेयं रत्नमालिका । चितामोघवर्षेण सुधिया सदलंकृतिः ॥ Several editions of this work have since been published in Bombay. It is variously attributed to Sankara Charya, Sankarananda and a Sveta - mbara writer Viala. But the royal authorship of the 'Ratnamala is Confirmed by a Thibetan translation of it discovered by Schiefner in which the author is represented to have been a king, and his Thibetan name, as retranslated into Sanskrit by the same scholar, is Amoghodaya, which obviously stands for Amoghavarsha. This work was composed between Saka 797-99; in the former year Nripatunga abdicated in favour of his son Akalavarsha"
↑ इस मूल कविताका अंग्रेजी पद्यानुवाद-युक्त मेरा लेख Canara High School Magazine, Mangalore Vol. II प्रथम श्रंक में प्रकाशित हैं ।
इनका यह विचार कहाँ तक ठीक हैं, इस सम्बन्ध में विचार करनेके पहिले, उस विचारसम्बन्धी कुछ पद्य यहाँ देना आवश्यक है
" Nripatunga was not only a liberal patron of letters, but he is also known as a Sanskrit author. A few years ago I discovered a small Jaina 1 work entitled" 'Prasnottara-ratnamala' the Concluding verse of which owns Amoghavarsha as its author:
प्रणिपत्य वर्द्धमानं प्रश्नोत्तररत्नमालिकां वचये । नागनरामरवन्द्यं देवं देवाधिपं वीरम् ॥ १ ॥ कः खलु नालं क्रियते दृष्टादृष्टार्थसाधनपटीयान् । कंठस्थितया विमलप्रश्नोत्तररत्नमालिक्या ॥ २॥
इति कंठगता विमला प्रश्नोत्तर रत्नमालिका येषाम् । ते 'मुक्ताभरणा विभाति विद्वत्समानेषु ॥ २८ 'काव्यमाला' ( Nirnay - Sagar Press ) के संपादकने उसे प्रकट करनेके लिये संग्रहीत 'क' और 'ख' नामांकित हस्तलिखित प्रतियों में से