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________________ ..अनेकान्त . [भाद्रपद, वीर निर्वाण सं० २४६६ पानवद्वार-प्रधान १ राग और २ द्वेष ३ एषणा समिति-जीवन-यात्रामें श्रावश्यक ५ इन्द्रियाँ-कान, नाक, आँख, जिव्हा, शरीरके निर्दोष साधनोंको जुटानेके लिये सावधानता विषयोंकी इच्छा व श्रासक्ति पर्वक प्रवृत्ति। . ४ कषाय-क्रोध, मान, माया, लोभ ( रोस, अहंकार, ४ श्रादान निक्षेप समिति-वस्तु मात्रको भलि ____ कपट, तृष्णा ) भाँति देख व प्रमार्जित करके लेना या ५ अव्रत-प्राणी हिंसा, मिथ्या बोलना, चोरी करना, रखना। - मैथुन-कामभोग, परिग्रह-मुर्छावश वस्तुअोंका संग्रह ५ उत्सर्गसमिति-जहाँ जन्तु न हो ऐसे प्रदेश में ३ योग-मन, वचन, कायका शुभाशुभ व्यापार' शुभ देख कर या प्रमार्जित करके ही मलादि योगसे पुण्य बंध होता है उससे शुभ फलोंकी अनुपयोगी वस्तुअोंका डालना। प्राप्ति होती है और अशुम योगसे पाप बँधता है। गुप्तिमें असत् क्रिया निषेध मुख्य है और समिति में २५ क्रियायें-परिताप, प्राणबध द्वेष आदिकी प्रवृत्तियों सस्क्रियाका प्रवर्तन मुख्य है। (लेख विस्तारभयसे सबका विवरण नहीं दिया १० धर्म-- क्षमा, मृदुता (नम्रता ) सरलता, निर्लोभता ___ जा सका । विशेष जानने वालोंकी इच्छा वालोंको सत्यता, संयम, तप त्याग, ममत्व त्याग, ब्रह्मचर्य । .. कर्म-ग्रन्थ तत्वार्थसूत्रकी टीकाएँ और नवतत्व इससे संयमके सतरह प्रकार है-५ इन्द्रियोंका आदि ग्रन्थ देखने चाहियें ) निग्रह ५ अव्रतोंका त्याग, ४ कषायोका जप ३ योगोंका संघर निग्रह । ३ गुप्ति-१ मनोगुप्ति दुष्ट संकल्प एवं अच्छे बुरे १२ भावनायें-अनुप्रेक्षा या गहरा चिन्तन मिश्रित विचारोंका त्याग कर अच्छे अच्छे विचार १ अनित्य १ असरण ३ संसार ४ एकत्व ५ अन्यत्व रहना, ईश्वरका ध्यानादि। ६ अशुचि ७ श्राश्रव ८ संवर । निर्जरा १० लोक २ वचनगुप्ति- यद्वातद्वा न बोलकर मौन धारण ११ बोधिदुर्लभ और १२ धर्म, ये बारह भावनायें हैं। करना । या सन्मार्गका उपदेश देना, प्रभुका भजन २२ परिषहोंका सहना श्रादि । तुधा तृषा, शीत उष्ण, दंशमशक, नग्नत्व, अरति, ३ काय गुप्ति—पाप कर्मोंसे कायाकी प्रवृति हटाकर स्त्री, चर्या, निषेध शय्या, आक्रोश; वध, याचना, परोपकार रूप प्रवृतिये करना, चंचल इन्द्रियोंकी अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कार, प्रक्षा अज्ञान, प्रवृतियोंका विरोध कर लेना अर्थात् उपर्युक्त तीनों और अदर्शन, ये २२ परिषह हैं। योगोंका निग्रह करना। ४ चारित्र-१ सामायिक ( समभाव पर्वक रहना ) ५ समिति-१ ईर्यासमिति किसी भी जन्तुको क्लेश न २ छेदोपस्थापन (विशेष शुद्धि के लिये पुनः दीक्षा) हो एतदर्थ सावधानता पूर्वक चलना। ३ परिहार विशुद्धि (विशेष तप प्रधान ) ४ सूक्ष्म २ भाषासमिति-सत्य हितकारी परिमित संपराय ( क्रोधादि कषायका प्रभाव केवल सूक्ष्म और संदेह रहित बोलना । लोभ रहना) ४यथाख्यात (वीतराग भावकी प्राप्ति)
SR No.527165
Book TitleAnekant 1940 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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