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गोम्मटसार कर्मकाण्डकी त्रुटि पूर्ति पर विचार
वर्ष ३, किरण ११]
के चार और अपूर्वादि चपक श्रेणी के पाँच गुणस्थानों का अभिप्राय है, जो सुसंगत बैठता है । खवादि पाठ कर लेनेसे तो विसंगति उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि अपूर्वादिको छोड़कर तो खवादि पाँच गुणस्थान हो नहीं सकते ?
३. अब हम इस विषयकी तीसरी विश्वारणीय बात पर ध्यान देंगे। क्या कर्मप्रकृति ग्रंथ गोम्मटसारके रचयिताका ही बनाया हुआ है ? पं० परमानन्दजी ने इस विषय पर विशेष कोई प्रकाश डालनेकी कृपा नहीं की। उन्होंने उस ग्रन्थ के विषय में निश्चयात्मक रूप से केवल यह कह दिया है कि "हालमें मुझे श्राचार्य नेमिचन्द्र के कमंप्रकृति नामक एक दूसरे ग्रन्थका पता चला है" । पर उन्होंने यह नहीं बतलाया कि इस ग्रन्थके कर्तृत्वका निश्चय उन्होंने किस प्रकार, किन
धारों पर किया है । क्या गोम्मटसारकी अधिकाँश गाथायें उसमें देखकर उसे नेमिचन्द्राचार्य रचित कहा है या उनकी देखी हुई प्रतिमें कर्ताका नाम नेमिचन्द्र दिया है ? यदि प्रतिमें कर्ताका नाम यह दिया हुआ हुआ है तो क्या वे गोम्मटसारके कर्तासे भिन्न कोई आगे पीछेके संग्रहकार नहीं हो सकते ? नेमिचन्द्र नामके और भी मुनियों व श्राचार्यों का उल्लेख मिलता है । यदि वह कृति गोम्मटसारके कर्ता ही है तो वह अब तक प्रसिद्धि में क्यों नहीं आई? क्या किन्ही ग्रन्थकारों या टीकाकारोंने इस ग्रंथका कोई उल्लेख किया है ? इत्यादि अनेक प्रश्न
उस कृतिके सम्बन्ध में उत्पन्न होते हैं, जिनका समाधान करना उसकी गाथाओंोंको कर्मकाण्ड में समाविष्ट कराने की तजवीज से पूर्व अत्यन्त आवश्यक था । हमें ऐसा प्रतीत होता है कि वह 'कर्मप्रकृति' एक पीछे का संग्रह है, जिसमें बहु भाग गोम्मटसारसे व कुछ गाथायें अन्य इधर उधरसे लेकर विषयका सरल विद्यार्थी - उपयोगी परिचय करानेका प्रयत्न किया गया है। उसकी गोम्मटसारके अतिरिक्त गाथाओंकी रचना शैली आदिकी सूक्ष्म जाँच पड़ताल से भी सम्भव है कुछ कर्तृत्व के सम्बन्ध में सूचना मिल सके । यदि पर्याप्त छान बीन के पश्चात् वह ग्रंथ सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्रकी ही रचना सिद्ध हो तो यह मानना पड़ेगा कि उसे श्राचार्यने कर्मकाण्ड की रचना के लिये प्रथम ढांचा रूप तैयार किया होगा । फिर उसकी सामान्य नाम व भेद प्रभेद आदि निर्देशक गाथाओंको छोड़ कर और उपयुक्त विषयका विस्तार करके उन्होंने कर्मकाण्डकी रचना की होगी ।
इस प्रकार न तो हमें कर्मकांड में अधूरे व लंडूरेपन का अनुभव होता है, न उस में से कभी उतनी गाथाथों के छुट जाने व दूर पड़ जानेकी सम्भावना जँचती है, और न कर्मप्रकृतिके गोम्मटसारके कर्ता द्वारा ही रचित होने के कोई पर्याप्त प्रमाण दृष्टिगोचर होते हैं । ऐसी अवस्था में उन गाथाओं के कर्मकांड में शामिल कर देनेका प्रस्ताव हमें बड़ा साहसिक प्रतीत होता है ।
-car
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