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गोम्मटसार कर्मकाण्डकी त्रुटिपूर्तिपर विचार
[ ले०-प्रो० हीरालाल जैन एम.ए. एलएल. बी. ]
चाराचार्य नेमिचन्द्रकृत कर्मकाण्डके सम्बन्धमें पं०पर- अपने ग्रंथमें यथास्थान रखी थीं तो क्या पश्चात्के
- मानन्दजी शास्त्रीने अनेकांत,वर्ष ३,किरण ८-९ लिपिकारों के प्रमादसे छुट गई, या टीकाकारोंने उन्हें में एक लेख लिखा है, जिसका सारांश यह है- जान बूझ कर छोड़ दिया ? यदि लिपिकारों के प्रमादसे
श्राचार्य नेमिचन्द्र-विरचित कर्मकाण्डके अनेक वे छुट गई होती तो टीकाकार अवश्य उस ग़लतीको प्रकरण व संदर्भ अपने वर्तमान रूपमें 'अधूरे और लंडुरे' पकड़ कर उन गाथाओं को यथास्थान रख देते, और हैं। उन्हीं प्राचार्य द्वारा विरचित एक दूसरा ग्रंथ प्राप्त यदि वे प्रसंगके लिये अत्यन्त आवश्यक थीं तो वे जान हुआ है। जिसका नाम 'कर्म प्रकृति' है । इस कर्म- बझकर तो उन्हें छोड़ ही नहीं सकते थे । इस ग्रंथकी प्रकृतिकी १५६ गाथाओंमें से ८४ गाथायें कर्मकाण्डमें टीकाओं की परम्परा स्वयं उसके कर्ताके जीवन कालमें मौजूद ही हैं । शेष ७५ गाथाओंको भी कर्म-काण्डमें ही, ग्रंथकी रचनाके साथ ही साथ प्रारम्भ हो गई थी। जोड़ देनेसे उसका अधूरापन दूर हो जाता है । ये ७५ कर्मकाण्डकी गाथा नं. ९७२ में प्राचार्य स्वयं कहते गाथायें संभवतः किसी समय कर्म काण्डसे छुट गई हैं कि गोम्मटसूत्र ( गोम्मटसार) के लिखते ही वीरअथवा जुदा पड़ गई । अतएव जो सजन अब कर्मकाण्ड मार्तण्ड राजा गोम्मटराय ( चामुण्डराय ) ने उसकी को फिरसे प्रकाशित कराना चाहें वे उसमें उन ७१ कर देशी (टीका) डाली थी । यथागाथाओंको यथास्थान शामिल करके ही प्रकाशित करें। गोम्मट सुत्तल्लिहणे गोम्मटरायेण जा कया देसी । ____ इस मतमें तीन बातें मुख्यतः विचारणीय ज्ञात सो राओ चिरकालं णमेण य वीरमत्तंडी। होती हैं
इसके कोई तीन सौ वर्ष पश्चात् केशववर्णीने १. कर्मकाण्डमें से ७५ गाथाओंका छुट जाना या गोम्मटसार वत्ति कनदी में लिखी। फिर कर्नाटकवृत्तिके जुदा पड़ जाना कब और कैसे सम्मव हो सकता है ? प्राधारसे संस्कृत टीका रची गई । इन टीकाभों में
२. उन गाथाओंके न रहनेसे कर्मकाण्डके उन चामुण्डरायकृत 'देशी' का आश्रय लिया जाना प्रकरणोंकी अवस्था क्या है, तथा उन गाथाओंको अनुमान किया जा सकता है । संस्कृत टीकाके निर्माणमें जोड़ने से क्या अवस्था व विशेषता उत्पन्न होती है ? अनेक बहुश्रुत अनुरोधकों, सहायकों और संशोधकोंका
३. कर्मप्रकृति ग्रन्थ किसका बनाया हुआ है, और हाथ बतलाया जाता है । साङ्ग और सहेस नामक उसका कर्मकाण्डसे क्या सम्बन्ध है ?
साधुओंकी प्रार्थनासे धर्मचन्दसूरि, अभयचन्द्र गणेश, १. यदि उक्त ७५ गाथायें कर्मकाण्डके रचयिताने लाला वर्णी, आदि विद्वानोंके लिये यह टीका लिखी