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________________ ६२८ अनेकान्त १ न्यायाचार्य पं० महेंद्रकुमारजी जैन, शास्त्री, काशी "आपका लेख 'अनेकान्त' में देखा। आपका परिश्रम प्रशंसनीय है । यदि यह प्रयत्न सोलह आने ठीक रहा और कर्मकाण्डकी किसी प्राचीन प्रतिमें भी ये गाथाएँ मिल गई तब कर्मकाण्डका अधूरापन सचमुच दूर होजायगा ।" [ भाद्रपद, वीर निर्वाण सं०२४६६ त्रुटिपूर्तिका मुझे बहुत पसन्द आया है, उसके लिये धन्यवाद है ।" ३ पं० रामप्रसादजी जैन शास्त्री, अध्यक्ष ऐ० प० सरस्वती भवन, बम्बई - "आपका लेख 'कर्मप्रकृति' से 'कर्मकाण्ड' की ४ पं० के० भुजवली जैन शास्त्री अध्यक्ष जैन सिद्धान्त-भवन, आरा "गोम्मटसार-सम्बन्धी आपका लेख महत्व - २ पं० कैलाशचन्दजी जैन शास्त्री, स्याद्वाद महाविद्यालय, काशी "इसमें तो कोई शक ही नहीं कि कर्मकाण्डका प्रथम अधिकार त्रुटिपूर्ण है । किन्तु 'प्रकृति' की गाथाएँ शामिल करने में अभी कुछ गहरे विचारकी जरूरत है। यह जांचना चाहिये कि 'कर्म प्रकृति' क्या स्वतन्त्र ग्रन्थ है ? 'कर्मकाण्ड' क्या पहले से ही ऐसा बनाया गया था या बाद में उसमें से कुछ गाथाएँ Gommatasara. " छुट 'गई । 'प्रकृति' की गाथाओं में 'जीवकाण्ड' की भी कुछ गाथाएँ सम्मिलित होनेसे अभी कोई निश्चित राय नहीं दी जा सकती। आपका परिश्रम प्रशंसनीय है ।" 1 पूर्ण है ।" ५ प्रोफेसर ए० एन उपाध्याय, एम. ए., डी० लिट०, कोल्हापुर " Yes, the additional verses of Karm Kanda brought to light in Anekant are interesting. Ifwe.can collate some more Mss, we might come to more reliable text of ' – हाँ, कर्मकाण्डकी जो अतिरिक्त गाथाएँ अनेकान्त द्वारा प्रकाशमें लाई गई हैं वे चित्ताकर्षक हैं। यदि हम कुछ और हस्त लिखित प्रतियोंका समवलोकन-संपरीक्षण करें तो हम गोम्मटसारका अधिक विश्वसनीय मूल पाठ प्राप्त करने में समर्थ हो सकेंगे।' -सम्पादक
SR No.527165
Book TitleAnekant 1940 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages60
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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