________________
वर्ष ३, किरण ११] 'गो० कर्मकाण्डकी त्रुटिपूति' लेखपर विद्वानोंके विचार और विशेष सूचना ६२७
राजवार्तिककी अन्तिम कारिकाओंका प्रक्षिप्त नताओंसे हमारा अभिप्राय है जिनकी चर्चा तक बतानेका भी कोई आधार नहीं । भाष्य और राज- सर्वार्थसिद्धि में नहीं। ऐसी हालतमें प्रस्तुतभाष्यको वार्तिकको आमने-सामने रखकर अध्ययन करनेसे अप्रमाणिक ठहराकर उसके समान वाक्य-विन्यास स्पष्ट मालूम होता है कि दोनोंके प्रतिपाद्म विषयों और कथन वाले किसी अनुपलब्धभाष्यकी सर्वथा में बहुत समानता है। दोनों ग्रन्थोंमें अमुक स्थल निराधार और निष्प्रमाण कल्पना करनेका अर्थ पर बहुतसी जगह बिलकुल एक जैसी चर्चा है। हमारी समझ में नहीं आता । भाष्यकी भाषा, शैली दोनोंमें पंक्तियोंकी पंक्तियाँ अक्षरशः मिलती हैं। आदि देखते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि समानता सर्वार्थसिद्धि और राजवार्तिकमें भी है। वह राजवार्तिक अथवा सर्वार्थसिद्धिके ऊपरसे परन्तु यहाँ भाष्य और राजवार्तिककी उन समा- लेकर बादमें बनाया गया है
'गो०कमकाण्डकी त्रुटिपूर्ति' लेखपर विद्वानोंके विचार और विशेष सूचना
'गोम्मटमार-कर्मकाँडकी त्रुटिपति' नामका प्रकृतिकी वे सब गाथाएँ मिलतीहैं जिन्हें 'कर्मप्रकृति' जो लेख अनेकान्तकी गत संयुक्त किरण (नं० ८-९) के आधार पर 'कर्मकाण्ड' में त्रुटित बतलाया गया में प्रकाशित हुआ है और जिस पर प्रो० हीरालाल- था। 'कर्मप्रकृति' की भी एक प्रति संवत् १५२७ जीका एक विचारात्मक लेख इसी किरणमें, अन्यत्र की लिखी हुई मिली है, जिसकी गाथा-संख्या १६० प्रकाशित हो रहा है, उस पर दूसरे भी कुछ विद्वानों है-अर्थात एक गाथा अधिक है-और उस पर के विचार संक्षिप्त में आए हैं तथा आरहे हैं, जिनसे भी आराकी प्रतिकी तरह ग्रन्थकारका नाम मालूम होता है कि उक्त लेख समाजमें अच्छी दिल- 'नेमिचन्द सिद्धान्तचक्रवर्ती' लिखा हुआ है । 'कर्मचस्पीके साथ पढ़ा जा रहा है । उनमें से जो विचार प्रकृति' 'कर्म काण्ड' का ही प्रारम्भिक अंश है । यह इस समय मेरे सामने उपस्थित हैं उन्हें नीचे सब हाल उनके आज ही ( २३ सितम्बरको) प्राप्त उद्धृत किया जाता है । साथ ही यह सूचना देते हुए पत्रसे ज्ञात हुआ है । वे जल्दी ही आकर इस हुए बड़ी प्रसन्नता होती है कि उक्त लेखके लेखक विषय पर एक विस्तृत लेख लिखेंगे, जिसमें पं० परमानन्दजी आज कल अपने घरकी तरफ प्रोफेसर हीरालालजीके उक्त लेखका उत्तर भी होगा गये हुए हैं, उधर एक भंडारको देखते हुए उन्हें अत: पाठकोंको उसके लिये १२ वी किरणकी कर्मकांडकी कई प्राचीन प्रतियां मिलीं हैं जो शाह- प्रतीक्षा करनी चाहिये । विद्वानोंके विचार इस जहाँके राज्यकालकी लिखी हुई हैं और उनमें कम- प्रकार है: