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________________ वर्ष ३, किरण १० ] हे माता ! भगवानसे हमारी यही याचना है कि वे हमें ऐसी शक्ति दें कि जिससे हम तुम्हारी सेवामें अपने इस जीवनको अर्पण कर सकें और भक्तिके सुके जलसे तुम्हारे चरणोंका चिरकाल तक प्रक्षालन करते रहें ।” क्या स्त्रियाँ संसारकी सुद्र रचनाओंमें से हैं ? 'जननी जीवनसे' एक संस्कृत कवि लिखते हैं -: "जननी परमाराध्या जननी परमागतिः । जननी देवता साक्षात् जननी परमोगुरुः ॥ या कर्त्ती परयात्री च जननी जीवनस्य नः । नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमोनमः ॥ 'जननी जीवनसे' मातृत्व के आदर्श की प्रशंसा में ग्रंथ भरे पड़े हैं । सदियां चली जायें और उसका वर्णन समाप्त नहीं हो । क्या कोई ऐसा ज्ञानी, ध्यानी, महात्मा, नारायण, चक्रवर्ती, बलभद्र, राजसू क अमीर, गरीब, बड़े से बड़ा और छोटेसे छोटा व्यक्ति है जो माताके उपकारके भार से नदया जा रहा हो और क्या वह उसके किये हुए उपकारका बदला वापस देनेका सैंकड़ो जन्मोंमें भी साहस कर सकता है ? ऐसी अवस्था में अगर कोई व्यक्ति चाहे स्त्री हो चाहे पुरुष, शिक्षित हो या प्रशिक्षित उस स्त्रीपर्यायकोनीच और जघन्य समझता है जिस में मातृत्व जैसा सर्वोत्कृष्ट आदर्श विद्यमान है तो यह उसकी क्षुद्रता है और कृतघ्नता है और स्वयं स्त्रियों का तो यह समझना बहुत ही अपमान, लज्जा श्रौर कायरताका विषय है । लोगोंकी इस धारणाने कि स्त्री जाति पुरुष जाति के लिये पैदा की गई है और वह उसके भोगनेकी एक. चीज़ है मनुष्य जातिका बहुत बड़ा श्रनिष्ट किया है । कारण, इस तरह पुरुषोंने स्त्रियोंको अपनी एक जायदाद २७१ और दूध देने वाली गाय-भैंसोंके समान समझा और इसीके अनुसार उनको एकने दूसरेसे छीनने की कोशिश की । इस कोशिशमें बड़ी बड़ी लड़ाइयां हुई, मारकाटें हुई, खून के तालाब बहे और संसार सुखका स्थल न रह कर दुःख दारिद्र्य, क्लेश, अशान्ति, व्याकुलता और हज़ारों ही विपदाओंका केन्द्र बन गया ! खेद है कि यह अवस्था अब तक भी वैसी ही चली रही है । पुरुषोंने स्त्रियोंको जन्म दिया या स्त्रियोंने पुरुषों को जन्म दिया ? यदि इस प्रश्न पर जरा भी विचार किया जाय तो यही निर्णीत होना चाहिये कि स्त्रियोंने पुरुषों को जन्म दिया और भारीसे भारी विपदाएं झेलकर उनका पालन किया । ऐसी हालत में भी यह मानना कि स्त्रियाँ पुरुषोंके लिये पैदाकी गई हैं कितना बेढंगा और हास्यास्पद खयाल है । इसलिये जैसे हम यह बड़ी आसानीसें मान लेते है कि स्त्रियाँ पुरुषोंके लिये पैदा की गई हैं वैसे यह भी क्यों नहीं मानलें कि पुरुष स्त्रियों के लिये पैदा किये गये हैं । यद्यपि अनुभव और बुद्धिसे ठहरेगा तो यही कि दोनों को दोनोंने पैदा किया और दोनों दोनों के लिये पैदा हुये हैं । जैसे पुरुषों को अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिये स्त्रियोंकी आवश्यकता है वैसे स्त्रियों को अपने उद्देश्यकी सिद्धि के लिये पुरुषों की आवश्यकता है। दोनों अपने जीवनकी उत्कृष्टता प्राप्त कर सकें दोनों, अपने जीवनको सार्थक और सफल बना सकें, दोनों अपने जीवनमें महान् श्रादर्श उपस्थित कर सकें, इसीलिये एक दूसरेका जन्म हुआ। ऐसी हालत में यह मना भयंकर भूल है कि स्त्रियाँ पुरुषोंकी गुलाम दासी हैं, सेविका हैं और उनके ऐशो-आराम और सांसारिक क्षुद्र सुखोपभोग के लिये पैदा हुई हैं ।
SR No.527164
Book TitleAnekant 1940 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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