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________________ jrzmrzmarw दीपक के प्रति ANIMELarta तुम अन्धकार को हरने, तुम धीर तपस्वी बनकर, जीवन-घट भरने आये। चुपचाप जले जाते हो। या इस निराश जीवन में, या मूल्य मूक सेवा का, आशा के झरने लाये ॥. सचमुच तुम प्रगटाते हो ॥ प्रेमी पर बलि हो जाना, किस्मत में तेरी दीपक, परवानों को सिखलाया। क्या जलना ही जलना है। सच्चा गुरू घन कर पहले या पर हित जलने में हीसन अपना अहो जलाया । सुख का अनुभव करना है। सूरज को तुमसे ज्यादह, परहित सर्वस्व लुटाते, तेजस्वी कैसे माने । जग कहता तुम्हें दिवाना। वह अन्त तेज़ का, तुमको, पर तुमने ही रातों कोप्रारम्भ तेज का जानें ॥ है दिवस बनाना जाना ॥ यदि मौत खड़ी हो आगे, दीपक की नहीं शिखा यह, क्या बात भला है ग़म की। है बीज क्रांति का प्यारा । देखो, इस दीप-शिखा को, जो बढ़कर जला सकेगा, जलकर सोने सी चमकी ॥ जुल्मों का जङ्गल सारा॥ प्याले का मधु पी करके, है तेल जहाँ तक बाक़ी, तुम हँसते अजब हँसी हो। तब तक तुम जले चलोगे। कैसे हँसना है भाता? तनमें ताकत है जब तक, जब देह कहीं झुलसी हो॥ परहित में बढ़े चलोगे ॥ "बिघ्नों की आँधी में भी, आँधी का झोका भाकर, हँसना सीखो तुम प्राणी।" चाहे तो तुम्हें बुकादे। यह शिक्षा देते सब को, ___ पर जीते हुए तुम्हारे, दीपक ! तुम परे ज्ञानी ॥ प्रण को कैसे तुड़वादे ॥ MEUMPAMIMI २०-श्री रामकुमार 'स्नातक WW swomai हे दीपदेव ! भारत के प्रोगन में खुलकर चमको । जीने, मरने का सचा कुछ भेद बतादो हमको । हम अपने लघु जीवन का कुछ मूल्य आँकना सीखें। सीकर मरने में जीवन-झाँकी का दृश्य झाँकना सीखें ॥ HFOOMANSAOFOROFIOFODAFOOTERTRONORFOOTOHIROEOFOOTEOFOFOFONTROOTBETNOLO
SR No.527164
Book TitleAnekant 1940 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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