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वर्ष ३, किरण १०]
हम और हमारा यह सारा संसार
पानीसे नीमका पेड़ बढ़ रहा है और उस ही से नींबू पलटन होता रहता है । नारंगी और श्राम-इमली का । भावार्थ यह है कि उस जीवोंका शरीर तो मिट्टी-पानी आदि अजीव ही मिट्टी पानीके परमाणु नीमके पेड़ के अन्दर जाकर पदार्थोका ही बना होता है, उसके अन्दर जो जीवात्मा नीमके पत्ते, फल और फल बन जाते हैं. और वे नारंगी होती है, उस ही में शान और राग-द्वेष, मान-माया, के पेड़ में जाकर नारंगीके फूल फल और पत्ते बन जाते लोभ-क्रोध श्रादि भड़क, इच्छा, विषय-वासना हिम्मत हैं । फिर इन सहस्रों प्रकारकी बनस्पतिको गाय, बकरी, हौंसला, इरादा और सुख-दुखका अनुभव अादिक भैंस, खाती हैं तो उन जैसा अलग २ प्रकारका शरीर होता है । परन्तु यह सब बातें प्रत्येक जीवमें एक समान बनता रहता है और मनुष्य खाता है तो मनुष्यकी देह नहीं होती है । किसीका कैसा स्वभाव होता है और बन जाती है और फिर अन्तमें यह सब वनसति, पशु किसीका कैसा; जैसाकि कोई गाय मरखनी होती है और
और मनुष्य मिट्टीमें मिलकर मिट्टी ही हो जाते हैं, कोई असील । मनुष्य भी जन्मसे ही कोई किसी स्वभाव इस प्रकार यह श्राश्चर्यजनक परिवर्तन अजीब पदार्थों का होता है और कोई किसी स्वभावका । इससे यही का होता रहता है। यह चक्कर सदासे चला आता है सिद्ध होता है कि पहिले जन्ममें जैसा दाँचा किसी और सदा तक चलता रहेगा।
जीवके स्वभावका बन जाता है, वही स्वभाव वह मरने __हम यह पहले ही कह चुके हैं कि संसारमें दो पर अपने साथ लाता है । प्रकार के पदार्थ हैं एक जीव और दूसरे अजीव । जीवों जीव और अजीव दोनों ही पदार्थों में, किसी काम का शरीर भी अजीव पदार्थोंका ही बना होता है, इस को करते रहने से, उस कामको करते रहनेकी आदत ही कारण जीव निकल जाने पर मृतक शरीर यहीं पड़ जाती है । कुम्हार चाकको डंडेसे घुमाकर छोड़ देता पड़ा रहता है । जब संसारकी कोई वस्तु नवीन पैदा है, तब भी वह चाक कुछ देर तक घूमता ही रहता है । नहीं होती है और न नष्ट ही होती है केवल अवस्था ही लड़के डोरा लपेटकर लट्ट को घमाते हैं, परन्तु डोरा बदलती रहती है, ऐसा सायंसने अटल रूप सिद्ध कर अलग हो जाने पर भी वह लट्ट बहुत देर तक घूमा ही दिया है तब जीवोंकी बाबत भी यह ही मानना पड़ता करता है, पानीको हिलाने या उंगलीसे घुमा देने पर है कि वे भी सदासे हैं और सदा तक रहेंगे । बेशक वह स्वयमेव भी हिलता या घूमता रहता है । साल भर पर्यायका पलटना उनमें भी ज़रूर होता रहेगा। जीवकी तक जो सन् संवत हम लिखते रहते हैं, नया साल भी एक पर्याय छूटने पर कोई दूसरी पर्याय ज़रूर हो लगने पर भी कुछ दिन तक वह ही सन् संवत लिखा जाती है और पहले भी उसकी कोई पर्याय ज़रूर थी जाता है । भाँग तम्बाकू आदि नशेकी चीज़ या मिर्च, जिसके छूट जाने पर उसकी यह वर्तमान पर्याय हुई मिठाई, खटाई श्रादि खाते रहनेसे उनकी आदत पड़ है । अजीव पदार्थोकी तरह जीवोंकी भी यह अलटन जाती है । ताश, चौपड़, शतरंज श्रादि खेलोंको बराबर पलटन सदासे ही होता चला आ रहा है और सदा तक खेलते रहने से उनकी ऐसी आदत पड़ जाती है कि होता रहेगा । जीवोंकी जितनी जातियाँ संसारमें हैं ज़रूरी काम छोड़ कर भी खेलनेको ही जी चाहने लगता जितने उनके भेद हैं उन ही में उनका यह अलटन है। जिन बच्चोंके साथ ज्यादा लाड़ होता है उनका