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________________ चमेकान्त [ज्येष्ठ, भाषाढ़, वीर-निर्वाण सं०२४५६ शंका समाधानका समय नहीं, मौत मुँह फाड़े खड़ी है, हमारे समान श्रद्धावान, प्रज्ञावान, कार्यकुशल हो जाता इससे पहले कि रोग शरीरको निकम्मा करे, बुढ़ापा है, परम सुखी होजाता है । वह फिर जन्ममरणमें नहीं शक्तियोंको जीर्ण करे, तुम अपने आपको धर्मसाधनामें पड़ता है। लंगादोजो आत्माको जाने बिना, मौतको जीते धर्म मार्ग ग्रहण करनेकी कठिनताः-- बिना इस भव से विदा हो जाता है वह सदा यमका अतिथि बना रहता है। परन्तु कितने हैं जो इस धर्म-मार्गको जानते हैं ? इस परिवर्तनशील जगमें एक ही चीज़ अविचल कितने हैं जो इसे जाननेकी सामर्थ्य रखते हैं ? कितने है, वह धर्म है । उसीकी शरण जाई। सल्लक्ष्य इस + (4) मां हि पार्थ व्यपाभित्य ये ऽपि स्युः पापयोनयः का शिर है, सद्ज्ञान इसका नेत्र है और सदाचार इस खियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेपि यान्ति परां गतिम् ॥ के पग हैं, इन तीनोंकी एकतासे ही इसकी सत्ता सुदृढ़ -गीता १.३२. बनी है । यह सदा लक्ष्यको दृष्टि में गाड़कर, सद्ज्ञानसे (या) गीता १८-६६ हेय उपादेयका विवेक करता हुआ उस पार चला (इ) मुण्डक० उप० ३.१.३. जाता है । यह नाश होने वाली चीज़ नहीं, यह निस्य (ई) तुल्या भवन्ति भवतो ननु तेन किंवा । है, ध्रुव है, शाश्वत् है । इस पर चलकर ही पूर्वमें भूत्याश्रितं य इह नास्मसमं करोति ॥" मनुष्योंने सिद्धिका लाभ किया है। इस पर चलकर -भक्तामर ॥१०॥ मनुष्यं भविष्य में सिद्धिका लाभ करेंगे । (उ) I am the light of the world, he that ये सब ही अचलपद पर खड़े हुये अपने आदर्श- followeth me shall not walk in darkness, but द्वारा शिक्षा देते हैं, "यदि इष्ट जीवनकी कामना है, shall have the light of life." -Bible-St. John 8-12 उसके उत्कृष्ट स्वरूपको जानना है, उसके मार्गको (55) “He that hearth my word, and belieसमझना है तो हमारी ओर देखो, जो हमारा जीवन है, veth on him that sent me hath everlasting वही इष्ट जीवन है, जो हमारा पद है, वही उत्कृष्ट पद life and shall not come into condemnation but is passed from death unto life," है, जो हमारा मार्ग है, वही सिद्धीका मार्ग है, जो हम Bible-St. John 5-24 पर विश्वास लाता है, हमारे बतलाये हुये तत्त्वोंको (ए) "And whosoever livethi and believeth ठीक समझता है, हमारे चले हुए मार्ग पर चलता है, in me shall never die," वह पुनः अन्धकारमें नहीं पड़ता, वह इधर उधर नहीं -Bible-St. John. 11-26 भटकता, वह व्यर्थ ही शक्ति का हास नहीं करता । वह (ऐ) "If ye had known me, ye should have known my Father also... he that hath + उत्तराध्यपन ४.१, मज्झिमनिकाय ६३वाँ सुत्त । seen me hath seen the Father.... Believe me + वृह उप० ४.१.१४; केन उप०२.१. that I am in the Father and the Father in me. Verily verily I say unto you, he that believeth * उत्तराध्ययन २३, १८-४४, सूत्रकृताङ्ग १.८.१,६. on me, the works that I do, shallibe do also" *निर्ग्रन्थप्रवचन ३.१५, मज्झिमनिकाप-१वौं -Bible-St. John. Chapter 14.
SR No.527163
Book TitleAnekant 1940 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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