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________________ ४८४ भनेकान्त:::... ज्येष्ठ, आषाद, वीर निर्वाण सं०२४६६ क्या यह लोक ही मेरे भाग्यका विधाता है ? क्या यदि प्यास न होती तो कौन खोजता जलाइस पर मेरा कोई अधिकार नहीं ? क्या इससे शय और कौन पाता जलकी शरण ? यदि सूर्य छुटकारेका कोई साधन नहीं ? क्या कोई लोक आताप न देता तो किसे भाती स्निग्ध छाया और नहीं, जहाँ स्वेच्छापूर्ति हो, आनन्दका निवास हो कौन जाता छायाकी शरण ? यदि संसार अनित्य और अमर जीवन हो!" .. न होता, जीवन दुःखमय न होता तो कौन ढूढता पारमार्थिक श्रादर्श और कौन जाता धर्मको शरणक। धर्म मार्गकी सृष्टि यह दुःख अनुभूति ही संसारमें धर्म की रचजहाँ दुःख अनुभूतिने मनुष्य-मस्तिष्कमें जीवन यिता है । यह ही उसे विश्वास दिलाती है. कि जगत-सम्बन्धी इस प्रश्नावलीको, दर्शनशास्त्रकी जीवन निरर्थक नहीं ध्येयवान है, पराधीन नहीं इन गूढ समस्याओंको जागृत किया है, वहाँ इसी स्वतन्त्र है, मरणशील नहीं अमर है । यह ही ने मनुष्यको इनका हल खोजनेको भी उद्यत किया मनुष्य में मर्त्यलोकसे घृणा और अमृतलोककी है, इतना ही नहीं, इसीने मनुष्यको लोकके रूढिक लालसा पैदा करती है। यह ही मनुष्यको नीचेसे मार्गोको छोड़ अलौकिक मार्गों पर चलनेको भी ऊपर लखाना सिखाती है। यही उसे इस काराविवश किया है। वाससे दूर जगमगाते ज्योतिआलोकमें अपनी यदि इन्द्रिय-सुखोंका कभी नाश न होता, इष्ट आशा लगानेको मजबूर करती है। । यही स्वप्नों वस्तु को पाकर उससे वियोग न होता, रोग और में बैठकर उस पितृलोककी, उस व्यन्तरलोककी जरासे शरीर जर्जरित न होता, उल्लासमय यौवन सृष्टि करती है । जहाँ मरने पर मत्यलोक चले सदा बना रहता-मृत्युसे जीवन तन्तुका विच्छेद जाते हैं । जहाँ उन्हें अपने बिछुड़े हुए पूर्व पुरुषोंसे न होता तो संसारमें दुखका नाम भी न होता । अपने श्रद्धेय पितृगणसे भेंट होती है। जहाँ वह . यदि दुःख न होता तो इच्छा-भावना भी न होती, सब दोबारा मिल कर यमके साथ सानन्द खोज और तलाश भी न होती, उपाय और मार्ग जीवन बिताते हैं । * यही भावनाओंमें भर कर भी न होता * * (अ) सुभाषित रस्नसन्दोह ॥ ३२ ॥ ___ जहाँ अनित्यता है वहीं दुःख है । जहाँ दुख है (मा) न स्नेहाच्छरणं प्रयोति भगवन् पादयं ते प्रजाः ___ हेतुस्तत्र विचित्रदुःखनिचयः संसारपोरार्णवः । वहीं भावना है । जहाँ भावना है वहीं आवश्यकता अत्यन्तस्फुरदुअररिमनिकर ज्याकीर्णभूमण्डलो, है। जहाँ आवश्यकता है वहीं खोज है । जहाँ प्रैष्मः कारयतीन्दुपादसलिलच्छायानुरागं रविः ।। खोज है वहीं मार्ग है । जहाँ मार्ग है वहीं प्राप्ति है। अनन्तकीर्ति-सामायिकपाठ-श्लोक.. • सुभाषितरत्नसत्ओह ॥-३२१ ॥ .. ....... ऋग्वेद-मं० १०, सू०१४, १५, १६ व १८. * "For everyone that asketh receiveth ! ऋग्वेद , ...100... १५४. and he that seeketh: findethyand : to:laim that $ Lord Avebury Origin of civilisation 1912 p.209 knoeketh, it shall be genel'se Sir Radha Krishnan Indian Philosophy Bible-St Matthew, 7-8. Vol. I p. 114.
SR No.527163
Book TitleAnekant 1940 06 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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