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अनेकान्त
[चैत्र, वीर निर्वाण सं०२४६६
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५०, ५४, ५५, ५६, ५७, ५६, ६०, ६१, ६२, ६७, है। और उपयोगिता की दृष्टिसे यह ग्रंथ कितने अधिक ७३, ७४ ७५ पर पाई जाती हैं।
महत्वका है । उक्त प्रकरणके संकलित करने में ____ इनके सिवाय, जिन गाथाओंमें थोड़ा या बहुत पंचसंग्रहकी जिन गाथाओंका उपयोग हुअा है उनमेंसे पाठ-भेद अथवा मान्यताभेद पाया जाता है उनमेंसे अधिकाँश गाथाअोंका उपयोग प्राचीन दिगम्बर कर्म उदाहरण के तौरपर यहाँ तीन गाथाएँ दी जाती हैं। साहित्यमें बराबर होता रहा है और प्राचार्य वीरसेनकी
एकं च दोव चत्तारि दो एयाधिया दसुक्कस्सं। धवला टोकामें भी हुआ है । इससे उन गाथाओंका श्रोघेण मोहणिज्जे उदयट्ठाणाणि णव होंति ॥ अधिकतर दिगम्बर साहित्यसे ही सम्बंध रहा जान
-प्रा. पंचसं०.५५२ पड़ता है श्वेताम्बरीय कर्म प्रकृति ग्रंथमें इस तरह की एक्कं च दोव चउरो एत्तो एक्काहिया दसुकोसा। प्रायः दो-तीन गाथाएँ ही उपलब्ध होती हैं है। और मोहेण मोहणिजे उदयट्ठाणा नव हबंति ॥ चंदर्षि के पंचसंग्रहमें ऐसी गाथाएं ८-१०के करीब ही
-सप्तति. १२ पाई जाती है। मालम होता है कि चन्द्रर्षि के सामने मणुयगई पंचिदिय तस बायरणामसुहयमादिजं। दिगम्बरीय प्रा० पंचसंग्रह अथवा और इसी तरहका पजतं जसकित्ती तित्थयां णाम गाव होंति॥ अन्य दि० साहित्य अवश्य रहा है। -प्रा० पंचसं०,६८५
वीर सेवामंदिर. सरसावा ता० १५.४ १६४० मणुयगइ जाइतस बायरं च पजत्त सुभगमाइज । उदाहरणके लिये उसकी एकगाथा नीचे दी जाती जसकित्ती तित्थयरं नामस्स हवंति एया (उच्च)॥ है
--सप्ततिका, ५८ घाईणं छउमत्था उदीरगा रागिणो य मोहस्स । बारस पणवाइं उद्य वियप्पेहि मोहिया जीवा।
तइयाऊण पमत्ता जोगता उत्ति दोण्हं च ॥ चुलसीदि सत्तत्तरि पयबंधसदेहि विगणेया ॥
-कर्म प्र०, ४,४ -प्रा. पंचसं०, ८३१ यह गाथा दिगम्बरीय पंचसंग्रहके चौथे प्रकरणमें बारसपणसट्टसया उदयविगप्पेहि मोहिया जीवा। २१४ नं० पर और गोम्मट्टसार-कर्मकाण्डमें ४५५ नं. चलसीई सत्तुत्तरि पयविंद सएहि विन्नेया ॥ पर पाई जाती है।
-सप्ततिका ४८
* उदाहरण केलिए दो गाथाएं नीचे दीजाती हैंइसी तरह की प्राकृत पंचसंग्रह की गाथाएं नं०
अट्ठग सत्तग छक्का चउ तिग दुग एगाहिया वीसा। ५६८, ७७०, ७७१, ८२८, ६१७,६१८, ६३७, ६६२, तेरस बारेकारस संते पंचाह जा एकं ॥ ६६३, ६६६, १०११, १०१४ हैं,जो सप्ततिकामें क्रमशः
-पंचसं० ३५, ५० २४४ नं० २०, ३३, ४३, ४५, ५१, ५२, ५३, ६३, ६६, यह गाथा दि० पंचसंग्रहमें ५५५ नं० पर और गो. ७२, पर उक्त प्रकारके पाठ भेदादिके साथ उपलब्ध कर्मकाण्डमें १०८ नं. पर उपलब्ध होती हैं। होती हैं।
तेवीसा पणुसा छब्बीसा अट्ठावीस दुगुणतीसा । उपसंहार
तीसेग तीस एगो बंधट्ठाणाइ नामेट ॥ इस सब तुलना परसे पाठक सहजमें ही जान
-पंचसं०, ५५, पृ० २५७ सकेंगे कि प्राकृत पंचसंग्रह की गाथाओं का उक्त तीनों यह गाथा दि. पंचसंग्रहमें १७४ नं. पर पाई श्वेताम्बरीय कर्म ग्रन्थोंमें कितना अधिक उपयोग हा जाती है।