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________________ ३६८ अनेकान्त. ' तदर्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनं ॥३॥ उनके - सप्ततत्त्वोंके - अर्थश्रद्धानको - निश्चयरूप रुचिविशेषको सम्यग्दर्शन कहते हैं ।' P यह उमास्वातिके द्वितीय सूत्रके साथ मिलता जुलता है । दोनोंकी अक्षर संख्या भी समान है - वहाँ तत्त्वार्थ श्रद्धा' पद दिया है तब यहां 'तदर्थश्रद्धानं' पदके द्वारा वही श्राशय व्यक्त किया गया है। भेद दोनोंमें कथनशैलीका है । उमास्वातिने सम्यग्दर्शनके लक्षण में प्रयुक्त हुए 'तत्त्व' शब्दको आगे जाकर स्पष्ट किया है और प्रभाचन्द्र ने पहले 'तत्त्व' को बतला कर फिर उसके अर्थश्रद्धानको सम्यग्दर्शन बतलाया है और इस तरह कथनका सरल मार्ग अंगीकार किया है । कथनका यह शैली-भेद आगे भी बराबर चलता रहा हैं । तदुत्पत्तिर्द्विधा ||४|| 'उस - सम्यग्दर्शन - की उत्पत्ति दो प्रकारसे है ।' यहां उन दो प्रकारोंका–श्रागमकथित निसर्ग और अधिगम भेदोंका - उल्लेख न करके उनकी मात्र सूचना की गई है; जबकि उमास्वातिने 'तनिसर्गादधिगमाद्वा' इस तृतीय सूत्रके द्वारा उनका स्पष्ट उल्लेख कर दिया है । [ चैत्र, वीर- निर्वाण सं० २४६६ "नाम स्थापना द्रव्य भावतस्तन्न्यासः " का होता है । प्रमाणे द्वे ||६|| 'प्रमाण दो हैं । ' यहाँ दोकी संख्याका निर्देश करनेसे प्रमाणके श्रागमकथित प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों ग्र गया है । यह उमास्वातिके १० वें सूत्र " तत्प्रमाणे" के साथ मिलता-जुलता है, परन्तु दोनोंकी कथनशैली और कथनक्रम भिन्न हैं । इसमें प्रमाणके सर्वार्थसिद्धि-कथित 'स्वार्थ' और परार्थ नामके दो भेदों का भी समावेश हो जाता 1 नामादिना तन्न्यासः ॥५॥ 'नाम आदिके द्वारा उनका - सम्यग्दर्शनादिका तथा जीवादि तत्वोंका-न्यास (निचेप) होता है - व्यवस्था पन और विभाजन किया जाता है ।' यहाँ 'आदि' शब्दसे ं स्थापना, द्रव्य और भावके ग्रहणका निर्देश है; क्योंकि श्रागममें न्यास अथवा नि क्षेपके चार ही भेद किये गये हैं और वे षट्खण्डागमादि मूल ग्रंथों में बहुत ही रूढ़ तथा प्रसिद्ध हैं और उनका बार बार उल्लेख आया है । और इसलिये इस सूत्र भी वही आशय है जो उमास्वाति के पाँचवें सूत्र नयाः सप्त ||७|| 'नय सात हैं ।' यहाँ सातकी संख्याका निर्देश करनेसे नयोंके - गम-कथित नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ और एवंभूत ऐसे सात भेदोका संग्रह किया गया है । उमास्वातिने नयका उल्लेख यद्यपि 'प्रमाणनयैरधिगमः' इस छठे सूत्र में किया है परन्तु उनकी *सात संख्या और नामोंका सूचक सूत्र प्रथम अध्याय के अन्तमें दिया है। यहाँ दूसरा ही क्रम रक्खा गया है। और उक्त छठे सूत्रके अाशयका जो सूत्र यहाँ दिया है वह इससे अगला आठवाँ सूत्र है । * श्वेताम्बरीय सूत्रपाठ और उसके भाष्य में नयों की मूल संख्या वैगम संग्रह व्यवहार, ऋजु सूत्र धर शब्द, ऐसे पांच दी है, फिर नैगमके दो और शब्द नयके साम्प्रत, समभिरूद, एवंभूत ऐसे तीन भेद किये गये हैं, और इस तरह नयके घाठ भेद किये हैं। परन्तु पं० सुखनालजी अपनी तत्वार्थसूत्रकी टीका वह स्पष्ट स्वीकार करते हैं कि जैनागमों और दिगम्बरीय ग्रंथों की परम्परा उक्त सात नयकी ही है।
SR No.527161
Book TitleAnekant 1940 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size5 MB
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