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वर्ष ३, किरण ५]
अहिंसा-तत्त्व
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लगता । यदि हिंसा और अहिंसाको भाव प्रधान न मान अथवा कुछ भी विरोध किये बिना सहलेना कायरता हैजाय तो फिर बंध और मोक्षकी व्यवस्था ही नहीं बन पाप है-हिंसा है । कायर मनुष्यका अात्मा पतित होता सकती। जैसे कि कहा भी है
• है, उसका अन्तःकरण भय और संकोचसे अथवा शंका विष्वग्जीवचिते लोके क्व चरन कोप्यमोच्यत। से दबा रहता है । उसे श्रागत भयकी चिन्ता सदा भावैकसाधनौ बन्धमोक्षौ चेन्नाभविष्यताम् ॥ व्याकुल बनाये रहती है-मरने जीने और धनादि सम्प
-सागारधर्मामृत; ४, २३ त्तिके विनाश होनेकी चिन्तासे वह सदा पीड़ित एवं अर्थात्-जब कि लोक जीवोंसे खचाखच भरा सचिन्त रहता है । इसीलिये वह आत्मबल और मनोहुआ है तब यदि बन्ध और मोक्ष भावोंके ऊपर ही बलकी दुर्बलता के कारण-विपत्ति आनेपर अपनी रक्षा निर्भर न होते तो कौन पुरुष मोक्ष प्राप्त कर सकता? भी नहीं कर सकता है । परंतु एक सम्यग्दृष्टि अहिंसक अतः जब जैनी अहिंसा भावोंके ऊपर ही निर्भर हैं तब पुरुष विपत्तियों के आनेपर कायर पुरुषकी तरह घबराता कोई भी बुद्धिमान पुरुष जैनी अहिंसाको अव्यवहार्य नहीं और न रोता चिल्लाता ही है किन्तु उनका स्वागत नहीं कह सकता।
करता है और सहर्ष उनको सहनेके लिये तैय्यार रहता __ अब मैं पाठकोंका ध्यान इस विषयकी ओर आक- है तथा अपनी सामर्थ्य के अनुसारउनका धीरतासे मुकार्षित करना चाहता हूँ कि जिन्होंने अहिंसा तत्वको नहीं बिला करता है--प्रतीकार करता है--उसे अपने मरने समझकर- जैनी अहिंसापर कायरताका लांछन लगाया जीने और धनादि सम्पत्तिके समूल विनाश होनेका कोई है उनका कहना नितान्त भ्रममूलक है।
डर ही नहीं रहता, उसका आत्मबल और मनोबल अहिंसा और कायरतामें बड़ा अन्तर है। अहिंसाका कायर मनुष्यकी भाँति कमज़ोर नहीं होता, क्योंकि सबसे पहला गुण अात्मनिर्भयता है । अहिंसामें कायरता उसका आत्मा निर्भय है-सप्तभयोंसे रहित है । जैनको स्थान नहीं। कायरता पाप है, भय और संकोचका सिद्धान्तमें सम्यग्दृष्टिको सप्तभय-रहित बतलाया गया परिणाम है । केवल शस्त्र संचालनका ही नाम वीरता है * । साथ ही, आचार्य अमृतचन्द्रने तो उसके विषय नहीं है किन्तु वीरता तो आत्माका गुण हैं। दुर्बल में यहाँतक लिखा है कि यदि त्रैलोक्यको चलायमान शरीरसे भी शस्त्रसंचालन हो सकता है । हिंसक वृत्तिसे कर देनेवाला वज्रपात आदिका घोर भय भी उपस्थित या मांसभक्षणसे तो क्रूरता आती है, वीरता नहीं; परंतु होजाय तो भी सम्यग्दृष्टि पुरुष निःशंक एवं निर्भय रहता अहिंसासे प्रेम, नम्रता, शान्ति, सहिष्णुता और शौर्यादि है-वह डरता नहीं है। और न अपने ज्ञानस्वमाषसे गुण प्रकट होते हैं।
च्युत होता है, यह सम्यग्दृष्टिका ही साहस है। इससे ____ दुर्बल अात्माओंसे अहिंसाका पालन नहीं हो सकता स्पष्ट है कि आत्म निर्भयी-धीर-वीर पुरुष ही सच्चे अहिंउनमें सहिष्णुता नहीं होती। अहिंसाकी परीक्षा अत्या- सक हो सकते हैं, कायर नहीं । वे तो ऐसे घोर भयादिके चारीके अत्याचारोंका प्रतीकार करनका सामथ्य रखत ७ सम्मट्टिी जीवा हिस्संका होति शिन्भया तेय । हए भी उन्हें हँसते हँसते सहलेने में है किन्तु प्रतीकारकी सत्तभयविप्पमुक्का जम्हा तम्हा दुणिस्संका ॥ सामर्थ्य के अभावमें अत्याचारीके अत्याचारोंको चुपचाप
समयसारे, कुन्दकुन्द २२८%