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________________ ३६४ विजय प्राप्त करली हो । क्योंकि जाति लेखनकलाकी अनभिज्ञता या क़ानूनकी अवहेलना करने से नहीं गिरी, बल्कि उन सद्गुणों के न होनेसे जो स्वतंत्र जातियों में पाये जाते हैं । अतः कोई विजित जाति पूछे कि मेरे अपमानका कारण कौन जाति है, तो जवाब दो कि तुम खुद हो, तुम ख़ुद हो । विजयी जाति किसी विजित जातिकी हारका कारण कभी भुले-भटके ही होती है । क्या गिद्ध जो लाशसे बोटियाँ नोच-नोचकर अपनी ज्याफ़त करता है, उस शख्स की मौतका कारण होता है ? मरता तो आदमी बीमारी या दुर्घटनासे है । गिद्ध तो केवल इस बातको सब पर प्रकट करता है कि यहाँ लाश पड़ी है । वह चिन्ह है, सबब नहीं । परिणाम है, कारण नहीं । जातीय इतिहास उन सद्गुणोंको जीवित रखता है जिनपर जातीय अस्तित्व दारमदार है । चिराग़ ही से चिराग़ जलता है। महापुरुषोंकी मिसाल ही हमको उनका अनुकरण करनेपर तैयार करती है। इस वास्ते जिस जातिका कोई इतिहास न हो, उसकी उन्नतिके लिए ज़रूरी है कि वह किसी और जातिके साथ ऐसा सम्बन्ध पैदा करे कि उसके बुजुर्गोंको अपना समझने लगे, या ऐसा धर्म ग्रहण करे जिससे किसी जातिका इतिहास उसके लिए जोश दिलाने वाला बन नावे | उदाहरणार्थं अफरीका के हब्शी स्वयम् उन्नति करनेके अयोग्य हैं, क्योंकि उनके पास कोई आदर्श नहीं है, कोई नाम नहीं है, जो उनको परोपकार, बहादुरी, सच्चाई सिखाये। उन हब्शियोंकी उन्नति आजकल मुसलमानी धर्म के द्वारा हो रही है। जब वे मुसलमान लोगों के नबियों और श्रौलियाओंके जीवन चरित्र पढ़ते हैं और उनके कामों की तारीफ़ करते हैं, तो वे सभ्यता के सिद्धान्तोंका ज्ञान प्राप्त करते हैं। अगर इस तरह [फाल्गुन वीर- निर्वाण सं० २४६६ " किसी सभ्य जाति के इतिहास से अपना सम्बंध स्थापित न करें, और उसकी ज्योतिसे अपनी ज्योति प्रज्वलित न करें, तो वे प्रलयतक अज्ञान और दुर्बलता के शिकार बने रहें । श्रतः इतिहास ही सब गुणोंका दाता इतिहास सब धर्मोंका संग्रह है । इतिहास के द्वारा हम महात्मा बुद्ध, श्रीशङ्कराचार्य, गुरु नानक आदि समस्त धार्मिक और नैतिक मार्ग प्रदर्शकों के जीवन चरित्रसे शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं । इतिहासकी मुट्ठी में सब धर्मोका अनुकरण है । इतिहाससे बचकर कोई कहाँ जायेगा ? यह तो हाथी है, जिसके पाँव में सबका पाँक है । अनेकान्त इतिहास हमको स्मरण कराता है कि हमारा कर्तव्य क्या है। दुनियाँ के झगड़ों में फँसकर जब हम उच्च विचारोंको भूलने लगते हैं, तो बुजुर्गोंकी श्रावाज़ सुनाई देती है कि ख़बरदार हमारी यान रखना, हमारा काम जारी रखना, सपूत रहना, जिस तरह हमने जाति और धर्म के लिए कोशिश की, उसी तरह करते रहना, ऐसा न हो कि हमारा प्रयत्न योंही नष्ट हो जाय ! यह शङ्ख जातिको हर समय जगाता रहता है । इतिहास जातीय मन्जिलकी अँधेरी रात में चौकीदारकी तरह कहता है कि सोना मत; अपने मालकी रक्षा करो। यह सिद्धान्त कभी नहीं भूलना चाहिए कि नैतिक उन्नतिका प्रारम्भिक सोता मनुष्य होता है। जीताजागता पाँच फुटका कोई श्रादमी ही जातिको सुधारता है । किताबें, मसले, रस्में, बाहरी टीम टाम, कहावतें, मीमांसाकी शुष्क बातें - ये सब उस आदमी के नौकर हैं, उसके मालिक नहीं। किताबें केवल रद्दीका ढेर हैं, यदि एक आदमी उनके अनुसार जीवन बसर करके नहीं दिखलाता । भजन, प्रार्थना, संस्कारके तरीके, शिक्षाका प्रबन्ध, नियम और उप-नियम, सभा, समाज,
SR No.527160
Book TitleAnekant 1940 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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