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________________ वर्ष ३, किरण ४] आत्मिक क्रान्ति २८१ बल प्रयोगकी तीव्रता अपेक्षित है। यह परिवर्तन ही आत्मिक-क्रान्ति है और यही इस क्रान्तिका मूल तत्व भी प्राशा है। नवोदित • सच्ची क्रान्ति है । प्राणीकी सची भूससे प्रेरित हुई सच्चा अाशाके स्फुरणसे प्रेरित हो यह भव्यात्मा अपने लक्ष्य अक्षय सुख प्राप्त करानेवाली अमर क्रान्ति यही है। की ओर अग्रसर होता है । उस समय आत्मिक पतनके अन्य समस्त, राजनैतिक, सामाजिक प्रादि क्रान्तियों होते हुए भी कुछ इस प्रकार मन्दकषायका उदय होता का फल स्थायी नहीं होता, थोड़े. या अधिक समय है कि अपनी वस्तु-स्थिति से उक्त आत्मा असन्तुष्ट हो उपरान्त फिर दशा पतित हो ही जाती है, चाहे कितनी जाता है, अपनी अवस्था उसे असह्य हो जाती है। भी सफल क्रान्ति क्यों न हो। किन्तु आत्मिक क्रान्ति उसके अन्तरमें एक प्रकारका घोर अान्दोलन होने ल- यदि सफल हो जाय तो इसका फल चिरस्थायी ही नहीं, गता है । वह अपनी समस्त शक्तियोंको एकत्रित करके अविनाशी और अनन्त होता है। अतः यदि किसी श्रात्म-प्रवृत्तिका रुख बदल देता है तथा प्रात्मो तिकी क्रान्तिके अमरत्वकी भावना लानेकी आवश्यकता है तो ओर अग्रसर होने लगता है। वह पात्मिक क्रान्तिकी ही है। सम्बोधन [ ले० ब्र० 'प्रेम' पंचरत्र ] चपल मन ! क्यों न लेत विश्राम ? क्यों पीछे पड़ गया किसीके. तजकर अपना धाम ? आशा छोड़ निराशा भजले, श्वासाको ले थाम ॥चपल०॥ आज कहत कल करत नहीं है, भूलात निज काम । कब पाये वह समय भजे जब, अपना आतमराम ॥ चपल०॥ यह काया नहिं रहे एक दिन, जिसका बना गुलाम । माया-मोह महा ठग जगमें, मतले इनका नाम ।। चपल०॥ अब मत यहाँ-वहाँ पर भपके, आजा अपने ठाम | TO 'प्रेम' पियुष पान कर अपना, पावे सुख अभिराम ॥चपल०॥ EVM900
SR No.527159
Book TitleAnekant 1940 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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