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________________ हिन्दी - साहित्य-सम्मेलन और जैनदर्शन [ ले०-- पं० सुमेरचन्द जैन न्यायतीर्थ, 'उन्निनीषु' देववन्द यू. पी. ] । हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन प्रयाग ही हिन्दी भाषाकी सर्वतोमुखी उन्नति करने वाली एक मात्र संस्था है । इसलिए उसने अपना एक स्वतन्त्र हिन्दी - विश्व - विद्यालय कायम कर लिया है, जिस में भारत के प्रत्येक प्रान्त और धर्मके अनुयायी बिना किसी भेद-भाव परीक्षा देते हैं । इन परीक्षाओंको मान्यता सरकार और जनता दोनों में ही है । अत: यह संस्था अधिक सर्वप्रिय बनती जाती है । इधर हमारे समाज के विद्यार्थी सम्मेलनकी परीक्षा में अधिक सम्मिलित होने लगे हैं, परन्तु सम्मेलनकी परीक्षाओं में जैनधर्म सम्बन्धी कोई विषय नहीं रक्खा है, इसलिये जैनविद्वानोंका ध्यान इस तरफ आकर्षित हुआ । इस विषय में पंडित रतनलालजी संघवीने संस्थाके प्रधानमंत्री श्रीमान् पं० दयाशंकरजी दुवेके साथ दो वर्ष तक लगातार पत्रव्यवहार किया । इस पत्रव्यवहार में संघवीजीने प्रथम दुवेजीको यह लिखा था कि 'सम्मेलनकी प्रथमा और विशारद परीक्षा में जैन दर्शन वैकल्पिक विषयमें सम्मिलित कर लिया जाय ।' उसपर दुवेजीने अपने अन्तिम पत्र में यह बात प्रकट की कि 'मैं सम्मेलनकी परीक्षामें जैनदर्शन रखनेके पक्षमें हूँ; परन्तु हमारी परीक्षासमिति इसके लिये तैयार नहीं है।' इसके बाद क्या हुआ ? इस विषय में मुझे कुछ भी पता नहीं । पर हाँ, उनके पत्र से निश्चित है कि उन्होंने प्रेम पूर्ण जवाब देकर टालमटूल कर दो; इसलिये संघ वीजी निराश होकर यह कार्य किसी अन्य के सुपुर्द करना चाहते थे । यही बात उन्होंने 'अनेकान्त' में प्रकट की थी। इस बातको पढ़कर मेरे मनमें यह जाननेका कौतुक उत्पन्न हुआ कि परीक्षा समिति क्यों जैनदर्शन- प्रन्थ रखना नहीं चाहती ? इस विषयमें मैंने उन्हें एक पत्र लिखा उसमें जैनदर्शन और अपभ्रंश साहित्यकी आवश्यकता सम्बन्धी एक लेख लिखा । अन्तमेंयह भी लिखा, कि बिना जैनदर्शन के समझे दर्शनोंका विकाश और अपभ्रंश भाषा के बिना हिन्दी-साहित्य के निकासका पता नहीं लगाया जा सकता है । उत्तरमें श्रीमान् पंडित रामचन्द्र जो दीक्षित रजिस्ट्रार हिन्दी - विश्वविद्यालय प्रयागका जो पत्र मिला वह इस प्रकार है: प्रियमहोदय ! आपका पत्र मिला । जैन दर्शनको सम्मेलन परीक्षाओं में स्थान देने के सम्बन्ध में परीक्षा समितिने निश्चय कर लिया है। इस सम्बंध में लिखा पढ़ी भी हो रही है । भवदीय- रामचन्द्र दीक्षित रजिस्ट्रार हिन्दी विश्वविद्यालय प्रयाग । इस पत्र से विदित होता है कि रजिस्ट्रार महोदय सम्मेलनकी परीक्षाओं में जैन-दर्शन रखने के लिए तैयार हैं। परीक्षा समितिने निश्चय कर
SR No.527159
Book TitleAnekant 1940 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size7 MB
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