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________________ वर्ष ३, किरण ३] एक महान साहित्यसेवीका वियोग २६७ छोटे बड़े सैंकड़ों शास्त्र भण्डारोंका उद्धार हुआ 'भारतीय जैनश्रमण संस्कृति अने लेखनकला' नाम है और वे जनताके लिये उपयोगी तथा विद्वानों- की जो महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है वह सब आपके के लिये सरलतासे काम आने योग्य बने हैं। ही लेखनकला-विषयक अनुभवोंका फल है, ऐसा पाटन, बड़ौदा और लिम्बड़ी आदिके जो बड़े बड़े मुनि पुण्यविजयजी अपने पत्रमें सूचित करते हैं। ज्ञान भण्डार आज सुव्यवस्थित अवस्थामें पाये इस परसे उक्त पुस्तकका परिचय करने वाले जाते हैं, उनकी सुव्यवस्थित सूचियाँ बनकर प्रका- विद्वान इस बातका सहजमें ही अनुभव कर सकते शित हुई हैं और जगत उनसे जो आज भारी हैं कि श्री चतुरविजयजीको लेखनकला और लाभ उठा रहा है वह सब आपके और आपके लिपियोंके विकासादि विषयक कितना विशाल गुरुदेव प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी महाराजके तथा गम्भीर परिज्ञान था । और यह सब उन्हें परिश्रमका ही फल है--इस कार्यमें सबसे अधिक उनके हजारों हस्तलिखित ग्रन्थोंके अवलोकन हाथ आपका ही रहा है। और मनन परसे ही प्राप्त हुआ था। __ आपने सैंकड़ों ग्रन्थोंकी प्रतियाँ अपने हाथसे समाजमें मुद्रण कलाके प्रचारका प्रारम्भ होने लिखी हैं और दूसरोंकी लिखी हुई प्रतियोंका संशो- पर आपने ग्रंथोंके प्रकाशनकी ओर खास ध्यान धन किया है । संशोधन कार्यमें आप खूब दक्ष थे, दिया था और यह काम आपका साहित्य सेवा आपको प्राचीन लिपियोंकी ठीक वाचनकला की ओर दूसरा महान क़दम था । इसके फल स्वआती थी । और इसी तरह प्रति लेखन-कलामें भी रूप ही आत्मानन्द जैन सभा भावनगरकी ओरसे आप निपुण थे । आपकी हस्तलिपि बड़ी ही सुन्दर 'आत्मानन्द जैनग्रन्थरत्नमाला' का निकलना एवं दिव्य रूपा थी, आपने बहुतसे लेखकोंको प्रारम्भ हुआ। इस ग्रन्थमालाके आप मुख्य प्राण अपने हाथतले रखकर उन्हें लेखन-कला सिखलाई ही नहीं किन्तु सर्वस्व थे। ग्रन्थमालामें अब तक है, कई अच्छे मर्मज्ञ लेखक तैयार किये हैं और ८८ ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं, जिनमें से बृहत्कल्प उनसे हजारों ग्रन्थोंकी प्रतिलिपियाँ कराई हैं । अपने सूत्रादि कितने ही ग्रन्थ बड़े महत्वके हैं। इन ग्रंथों लिखे हुए और अपने हाथके नीचे दूसरोंसे लिखाये में से अधिकांशका सम्पादन आपके द्वारा तथा हुए तथा अपने द्वारा संशोधित हुए ग्रन्थोंका एक आपके प्रभावसे हुआ है । आप क़रीब २९ वर्ष बहुत बड़ा समूह आपने पं० श्रीकान्तिविजयजीके तक ग्रन्थमालाका सतत कार्य करते रहे हैं ! इस नाम पर स्थापित बड़ौदा और छाणीके ज्ञान समय कई ग्रन्थोंकी प्रेस कापियां छपानेके लिये भण्डारोंमें स्थापित किया है । बड़ौदाका भंडार तैयार मौजूद हैं, बृहत्कल्पके ( जिसके पांच खंड इतना अधिक पूर्ण और उपयोगी संग्रह लिये हुए निकल चुके हैं ) पूरा छप जानेके बाद आपका है कि पं० सुखलालजीने उसे 'चाहे जिस विद्वान्का विचार 'निशीथसूत्र' तैयार करनेका था और फिर मस्तक नमानेके लिये काफी' लिखा है । कथारत्नकोश तथा मलयगिरि-व्याकरण आदि आपके शिष्योत्तम मुनि श्री पुण्यविजयजीने दूसरे भी अनेक ग्रन्थोंको हाथमें लेनेका विचार
SR No.527158
Book TitleAnekant 1940 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
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