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वर्ष ३, किरण ३]
ज्ञातवंशका रूपान्तर जाटवंश
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रस्मरिवाज उनकी सोसाइटीमें बर्ती जाने लगी, "Though to my mind the term मेरे विचार.से अब ये दोनों जातियां एक उभय- Rajput is an occupational rather than निष्ठ स्टॉक बनाती हैं। जाट और राजपतोंकी ethological repression." मित्रता केवल रस्म रिवाजों को है नकि जातीयता अर्थात्-मेरे मस्तिष्कमें यह बात आती है, की । मैं विश्वास करता हूँ कि इस मिश्रित स्टाकके कि राजपूत शब्द एक जातीयताका बोधक होने वे खानदान जिनको भाग्यने राजनैतिक उन्नतिमें की बनिस्बत पेशेका बोधक है।" अग्रसर कर दिया, वे अपनो उन्नतावस्थाको प्राप्त
उपसंहार होनेसे ही 'राजपूत' कहलाने लगे, और उनके
. वर्तमानका जाटवंश जैन आगम-संमत ज्ञातवंशजोंने इस उपाधिको बड़ाईके साथ सीमित कर
वंशको रूपान्तर है या कुछ और । इस विषय दिया और छोटी जातियोंने मित्रताका सूचक बना
में आशा है कि विद्वान लोग अपने मन्तव्य दिया। साथ ही अपने रक्तको शुद्ध कहकर निम्न
जाहिर करेंगे। ज्ञातवंशमें जैसे जैनधर्मका प्रचार श्रेणीके लोगोंसे विवाह-संबन्ध करना बन्द कर
था ठीक वैसे ही कुछ वर्ष पहले तक जाटोंमें जैन दिया । पुनर्विवाहकी मनाही करदी। जिन लोगोंने
धर्मकी उपासना रही है। अंचलगच्छकी पट्टावली इन नियमोंको नहीं माना वे अपनी स्थितिसे गिर.
में सूचित जाखडिया गच्छ क्या जाटोंकी बीकागये और राजपूत कहे जानेसे वंचित रहे । ऐसे पशमें बसी हुई जाखखिया जातिसे संबन्ध कुटुम्ब जिन्हें कि अपने राज्यमें ऊंचे दर्जे मिल
नहीं रखता होगा ? तथा गच्छ्रके वर्तमान साधु गये उन्होंने उन सारे नियमोंका पालन शुरू कर
समुदायके मुख्य नेता-गुरु श्रीमान् बृद्धिचन्द्र दिया । वे राजा ही नहीं राजपुत्र यानी राजाके
जी महाराज भी इस जाटवंशके कोहेनूर थे, यह बेटे बनगये।
नहीं भूलना चाहिये । इस सम्बन्धमें विद्वान लोग मिस्टर इबटसन 'राजपूत' शब्द का अर्थ इस और अधिक प्रकाश डालनेकी सफल चेष्टा करेंगे, तरह से करते हैं :
ऐसी आशा की जाती है । इतिशम् ।