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________________ १६० अनेकान्त [ मार्गशीर्ष, वीर निर्वाण सं०२४६६ संगृहीत करते रहनेका भी प्रबन्ध होना चाहिये एवं संगृहीत हो सकते हैं । इसी प्रकार पत्रसम्पादक एवं .. इस पस्तकालयकी सूचना प्रसिद्ध सभी संवादपत्रोंमें प्रकाशक महाशय भी पत्र फ्री भेज सकते हैं.ऐसे उपयोगी दे देना आवश्यक है। कलकत्ते में बंगीय विद्वानोंका पुस्तकालयके लिये कोई अधिक कठिनता. नहीं होगी खासा जमाव है। अतः पस्तकालय कलकत्तेमें कार्यकर्ता सेवाभावी और प्रभावशाली अनभवी हो तो ही होना विशेष लाभप्रद है। बहूत थोड़े अर्थव्ययसे बहुत अच्छा संग्रह एवं व्यवस्था पुस्तकालयका लाइब्रेरीयन (अध्यक्ष)अनुभवी विद्वान हो सकती है। होना चाहिये, जिससे विद्वानोंकी माँगका समुचित प्रबंध (२) केवल एक पुस्तकालय स्थापनसे ही कार्य नहीं कर सके । अच्छे २ ग्रन्थ जो वे लोग मांगें और अपने चलेगा,साथ साथ जैनेतर अन्य प्रसिद्ध पुस्तकालयोंपुस्तकालयमें नहीं हों उन्हें तुरन्त मंगाने एवं हो सके तो को भी जैनधर्मके उत्कृष्ट ग्रन्थोंकी प्रतियाँ देना अन्य पुस्तकालयोंसे उन्हें प्राप्त करने का प्रबन्ध हो सके परमावश्यक है, ताकि उस पस्तकालयके ग्रन्थोंके तो उसका प्रबन्ध कर सके और जो ग्रंथ प्रकाशित नहीं पाठक विद्वानोंका भी जैनधर्म के आदर्श ग्रंथोंकी हुए हैं उनको भी विशेष आवश्यकता होने पर भंडारोंसे ओर ध्यान आकर्षित हो । कलकत्ते में के विद्वानोंके मंगा कर पाठकोंको ज्ञान-जिज्ञासाको पर्ण कर सके । केन्द्रस्थानीय पुस्तकालयोंमें इम्पीरियल लायब्रेरी, . मेरे ध्यानमें ऐसा व्यवस्थित पस्तकालय आगरेका विश्वविद्यालय एवं एशियाटिक सोसायटीका पस्तविजयधर्मसूरि-ज्ञान-मंदिर है । इधर कई वर्षोंसे प्रका- कालय, संस्कृत कॉलेज ग्रंथालय, बंगीय-साहित्यशित पुस्तकोंकी उसमें कमी है उसकी पूर्तिकी जासके परिषद पुस्तकालय मुख्य हैं। इनमें उत्तमोत्तम और विद्वानोंको बाहर भेजने श्रादिका सुप्रबन्ध हो तो उपयोगी जैनग्रंथोंकी १-१ प्रति अवश्य देदेनी इस ज्ञानमन्दिरसे बहुत लाभ हो सकता है । ऐसे ही चाहिये । या उनके पस्तकाध्यक्षोंको उन ग्रंथोंके जैन-सिद्धान्त-भवन बारा,ऐल्लक पन्नालाल सरस्वती भवन संग्रहकी प्रेरणा करना चाहिये । बम्बई, ब्यावर, झालरपाटन आदि दिगम्बर-पुस्तकालयों (३) पस्तकालयके अन्दर एक अभ्यासक मंडल भी से भी सहयोग प्राप्त कर लेना परमावश्यक है । उनके स्थापित किया जाय । बंगीय विद्वानोंको जैनधर्म सूचीपत्रोंकी नकल मुद्रित हो तो मुद्रित प्रति कलकत्तेके सम्बंधी लेख-निबंध लिखनेकी. प्रेरणाकी जाती रहे, पस्तकालयमें रखी जाय और समय २ पर आवश्यक प्रत्येक रविवारको भाषणका आयोजन हो जिनमें ग्रंथ वहाँसे मंगाकर भी विद्वानोंकी मांग पर्णकी जाय तो जैनधर्म के विद्वानों एवं अभ्यासी जैनेतर विद्वानोंका बड़ा भारी ज्ञानप्रचार हो स कता है। विद्वानोंको पाठ्य भाषण हो, अभ्यासियोंके भाषण लिखितरूपसे हों एवं लेखन-सामग्रीकी सुविधा प्राप्त होने पर उनकी तो विशेष अच्छा हो । यानी वे प्रकाशित भी किये लेखनी बहुत अधिक काय कर सकेगी। आशा है जैन- जासकें और समय भी कम लगे। मौखिकभाषण धर्म-प्रचार के प्रेमी धनी सज्जन इस परमावश्यक योजना- देनेवाले विशेष विद्वानोंके भाषणोंका सार भी की अोर अवश्य ही ध्यान देंगे। और इसे अति शीघ्र शोर्टहेंडसे लिखा जाकर प्रकाशित किये जानेका कार्यरूपमें परिणत करके प्रचारकार्य में हाथ बटावेंगे। प्रबन्ध होनेसे वह कार्य स्थायी एवं विशेष व्यापक - हाँ, इतने विशाल पुस्तकालयके लिये बड़े भारी होगा । सुन्दर विशिष्टनिबंध-लेखकोंको पारितोषिक अर्थसंग्रहकी आवश्यकता है। पर जैनसमाजके अन्य दिये जानेका प्रबन्ध होना भी उचित है। जिससे पस्तकालयों एवं ग्रंथसंग्रहोंमें जिन जिन ग्रंथोंकी वे समुचित उत्साहित हों। उन निबंधोंको जैन एवं अधिक अतिरिक्त प्रतियाँ पड़ी हैं उनको वे इस संग्रहमें प्रदान करदें एवं जैनग्रन्थ प्रकाशक अपने प्रकाशनकी देखें, मेरा 'कलकत्तेके जैन पुस्तकालय' शीर्षक १-१ प्रति इसको भेट देदें तो हज़ारों रुपयेके ग्रंथ सहज लेख, प्र० श्रोसवाल नवयुवक वर्ष ८ अंक ३
SR No.527157
Book TitleAnekant 1939 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages68
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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