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________________ तत्वार्थाधिगमसूत्रकी एक सटिप्पण प्रति [सम्पादकीय ] -:: मार्सा कई सालका हुआ सुहृद्धर पं० नाथूरामजी प्रेमीने 32 पद्य तथा प्रशस्तिरूपसे 6 पद्य और दिये हैं वे बम्बईसे तत्त्वार्थाधिगमसूत्रकी एक पुरानी हस्त- सब कारिकाएँ एवं पद्य इस सटिपप्ण प्रतिमें ज्यों-के-त्यों लिखित सटिप्पण प्रति, सेठ राजमलजी बड़जात्याके पाये जाते हैं,और इससे ऐसा मालूम होताहै कि टिप्पणयहाँसे लेकर, मेरे पास देखने के लिए भेजी थी / देखकर कारने उन्हें मूल तत्त्वार्थसूत्रके ही अंग समझा है / मैंने उसी समय उसपरसे अावश्यक नोट्स (Notes) (3) इस प्रतिमें संपूर्ण सूत्रोंकी संख्या 346 और लेलिये थे, जो अभी तक मेरे संग्रहमें सुरक्षित हैं / यह प्रत्येक अध्यायके सूत्रोंकी संख्या क्रमशः 35, 53, 16 सटिप्पण प्रति श्वेताम्बरीय तत्त्वार्थाधिगमसूत्रकी है और 54, 45, 27, 33, 26, 46, 8 दी है / अर्थात् दूसरे जहाँतक मैं समझता हूँ अभी तक प्रकाशित नहीं हुई। तीसरे, चौथे, पाँचवे, छठे और दसवें अध्यायमें सभाष्य श्वे. जैन कॉन्फ्रेंस-द्वारा अनेक भण्डारों और उनकी तत्त्वार्थाधिगमसूत्रकी उक्त सोसाइटी वाले संस्करणकी सूचियों आदि परसे खोजकर तय्यार की गई 'जैन ग्रन्था- छपी हुई प्रतिसे एक-एक सूत्र बढ़ा हुआ है; और वे सब वली'में इसका नाम तक भी नहीं है और न हालमें प्रकाशित बढ़े हुए सूत्र अपने-अपने नम्बरसहित क्रमशः इस प्रकार तत्त्वार्थसूत्रकी पं० सुखलालजी-कृत विवेचनकी विस्तृत हैं:प्रस्तावना (परिचयादि) में ही, जिसमें उपलब्ध टीका- तैजसमपि१०, धर्मा वंशा शैल्लांजनारिष्टा माघम्या टिप्पणोंका परिचय भी कराया गया है, इसका कोई माघवीति च 2, उच्छू वसाहारवेदनोपपातानुभावतश्च उल्लेख है ।और इसलिये इस टिप्पणकी प्रतियाँ बहुत कुछ साध्याः 23, स द्विविधः 42, सम्यक्तं च २१;धर्मास्तिविरलसी ही जान पड़ती हैं / अस्तु; इस सटिप्पण प्रतिका कायाभावात् / परिचय प्रकट होनेसे अनेक बातें प्रकाशमें आएँगी, और सातवें अध्याय में एक सूत्र कम है-अर्थात् 'सचित्त अतः आज उसे अनेकान्तके पाठकोंके सामने रक्खा निक्षेपापिधानपरण्यपदेशमात्सर्यकालातिक्रमाः // ' जाता है / यह सूत्र नहीं है। (1) यह प्रति मध्यमाकारके 8 पत्रों पर है, जिनपर : सूत्रोंकी इस वृद्धि हानिके कारण अपने२ अध्यायमें पत्राङ्क 11 से 18 तक पड़े हैं / मूल मध्यमें और टिप्पणी अगले-अगले सूत्रोंके नम्बर बदल गये हैं / उदाहरणके हाशियों (Margins) पर लिखी हुई है। तौर पर दूसरे अध्यायमें 503 नम्बरपर 'तैजसमपि' सूत्र (2) बंगाल-एशियाटिक सोसाइटी, कलकत्ताद्वारा आजानेके कारण ५०वें 'शुभं विशुद्ध 'सूत्रका नम्बर 51 सं० 1956 में प्रकाशित सभाष्य तत्त्वार्थाधिगमसूत्रके हो गया है,और ७वें अध्यायमें ३१वाँ 'निक्षेपापिधान' शुरूमें जो 31 सम्बन्ध-कारिकाएँ दी हैं और अन्तमें सूत्र न रहनेके कारण उस नम्बर पर 'जीवितमरणा.'
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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