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________________ 120 अनेकान्त [वर्ष 3, किरण 1 विवेकका अर्थ लघु शिष्य-भगवन आप हमें जगह जगह ज्ञानदर्शनरूप आत्माके सत्यभाव पदार्थको अज्ञान कहते आये हैं कि विवेक महान श्रेयस्कर है। विवे- और श्रदर्शनरूपी असत् वस्तुओंने घेर लिया है / क अन्धकारमें पड़ी हुई आत्माको पहिचाननेके इसमें इतनी अधिक मिश्रता आगई है कि परीक्षा लिये दीपक है। विवेकसे धर्म टिकता है / जहाँ करना अत्यन्त ही दुर्लभ है। संसारके सुखोंको विवेक नहीं वहाँ धर्म नहीं, तो विवेक किसे कहते आत्माके अनंतबार भोगने पर भी उनमेंसे अभी हैं, यह हमें कहिये। भी आत्माका मोह नहीं छूटा, और आत्माने उन्हें गुरु-आयुष्मानों ! सत्यासत्यको उसके अमृतके तुल्य गिना, यह अविवेक है / कारण कि स्वरूपसे समझनेका नाम विवेक है। संसार कड़ वा है तथा यह कड़वे विपाकको देता लघु शिष्य-सत्यको सत्य और असत्यको है। इसी तरह आत्माने कड़वे विपाककी औषधअसत्य कहना तो सभी समझते हैं। तो महाराज ! रूप वैराग्यको कड़ वा गिना यह भी अविवेक है / क्या इन लोगोंने धर्मके मूलको पालिया, यह कहा ज्ञान दर्शन आदि गुणोंको अज्ञानदर्शनने घेर कर जा सकता है ? जो मिश्रता कर डाली है, उसे पहचान कर भाव___ गुरु-तुम लोग जो बात कहते हो उसका अमृतमें आनेका नाम विवेक है / अब कहो कि . कोई दृष्टान्त दो। विवेक यह कैसी वस्तु सिद्ध हुई। ___ लघु शिष्य-हम स्वयं कड़वेको कड़वा ही लघशिष्य--अहो ! विवेक ही धर्मका मूल कहते हैं, मधुरको मधुर कहते हैं, जहरको जहर और धर्मका रक्षक कहलाता है, यह सत्य है। और अमृतको अमृत कहते हैं। आत्माके स्वरूपको विवेक बिना नहीं पहचान ___गुरु-आयुष्मानों ! ये समस्त द्रव्य पदार्थ हैं। सकते, यह भी सत्य है / ज्ञान, शील, धर्म, तत्त्व, परन्तु आत्मामें क्या कडुवास, क्या मिठास, क्या और तप यह सब बिवेक बिना उदित नहीं होते, जहर और क्या अमृत है ? इन भाव पदार्थोंकी यह आपका कहना यथार्थ है / जो विवेकी नहीं, क्या इससे परीक्षा हो सकती है ? वह अज्ञानी और मंद है / वही पुरुष मतभेद और लघुशिष्य--भगवन् ! इस ओर तो हमारा मिथ्यादर्शन में लिपटा रहता है / आपकी विवेक लक्ष्य भी नहीं। संबन्धी शिक्षाका हम निरन्तर मनन करेंगे। गुरु--इसलिये यही समझना चाहिये कि –श्रीमद् राजचन्द्र
SR No.527156
Book TitleAnekant 1939 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1939
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationMagazine, USA_Jain Digest, & USA
File Size18 MB
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