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________________ लगता है जिसे साधारण आदमी का मस्तिष्क ग्रहण नहीं कर पाता है। किसी विशेष विषय पर केन्द्रित रहने के कारण उन्हे उस विषय के तथ्य पारदर्शी रूप में दिखाई देने लगते हैं और हम कहते हैं नया आविष्कार हुआ। अध्ययन जो अविष्कृत हो चुका है, उसका ज्ञान हो जाता है, वह मस्तिष्क की सृजनशीलता को विस्तार देता है और ध्यान से मस्तिष्क के एंटिना खुलने लगते हैं और सूचनाएं अनावृत होने लगती हैं। इन सूचनाओं को वैज्ञानिक अपनी भाषा में डीकोड कर लेता है। जीवन क्यों ? इन प्रश्न के उत्तर को ढूंढने में रत और सफलता पाये वैज्ञानिक तीर्थंकर और केवली कहलाते हैं। उनकी सूचनाओं से दर्शन, इतिहास, द्रव्य शास्त्र, भूगोल, खगोल और ज्ञान की अन्य सभी शाखाओं के द्वार खुल जाते हैं। ज्ञान के बारे में यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि ज्ञान कभी पैदा नहीं होता वह अनावृत होता है। संभवतः अनंतकाल से चली आ रही सूचनाएं डीकोड होकर हमारे ज्ञान का भंडार बन गई है। ज्ञान की यह परिभाषा स्वयं स्पष्ट कर रही है कि सब कुछ ब्रह्माण्ड में भरा है। इतिहास के बारे में जो कुछ सूचनाएं हमारे पास उपलब्ध है उसके दो आधार हैं एक पुराण और दूसरा वैज्ञानिक प्रमाण । वैज्ञानिक प्रमाण सामने प्रत्यक्ष होते हैं अतः वे विश्वसनीय लगते हैं किंतु उनकी एक सीमा है। उनकी खोज अभी जारी है। प्रतिदिन वैज्ञानिक ब्रहाम्ण्ड के बारे में हमें कई नई नई सूचनाएं दे रहे हैं। जीव और जगत के बारे में ऐसी सूचनाएं एकत्रित हो रही हैं जो परस्पर विरोधी भी हैं । भविष्य में संभवतः यह स्वीकार करना होगा कि यह सृष्टि और प्राणी अनंत काल से हैं और अनंत काल तक रहेंगे। जैन पुराण यही सूचित कर रहे हैं। सूचना का दूसरा आधार पुराण है। भारत में भूगोल और इतिहास के बारे में सूचना देने वाले वैदिक (हिन्दू) पुराण, जैन पुराण और बौद्ध ग्रंथ है। एक तथ्य स्पष्ट रूप से उमरकर आता है कि जो भी पुराण बने हैं उनका सूचना का आधार एक ही था। इन पुराणों के 'श्रुत' से पुराण में बनने के पहले जो ऋषि, वैज्ञानिक थे वे धर्म की सीमा से बंधे नहीं थे। वे जंबूद्वीप के वैज्ञानिक थे। मति, श्रुति एवं मनःपर्यय ज्ञान के धारक थे और कुछ अवधि ज्ञानी भी थे। यह तो निश्चित रूप से पता चलता है कि इन सूचनाओं मे आध्यात्मिक दृष्टिकोण होता था । अतः हो सकता है कालांतर में धर्म की सीमाओं में यह सूचनाएं रूढ़ हो गई हों और भ्रम फैल गया हो। देश, विदेश के अनेक अध्येताओं ने यह स्वीकार किया है कि जैन पुराणों के कथन सत्य के अधिक निकट हैं फिर भी यह स्वीकार करने में कठिनाई नहीं होना चाहिए कि ब्रम्हाण्ड संबंधी सूचनाएं हमारे यहाँ समान वैज्ञानिक आधार पर खड़ी थीं। वैसे ही इतिहास की सूचनाएं भी समान आधार या खोत से आ रही हैं। भिन्न भिन्न विद्वानों ने उन्हें संग्रहीत किया अतः उनमें अंतर दिखाई देता है। इन सब सूचनाओं को संग्रहीत करने में इन विद्वानों ने सूक्ष्म दृष्टि (ज्ञान, प्रयोग तथा चिंतन आधारित) का प्रयोग किया है और ऐसा लगता है विज्ञान अभी उस सीमा का स्पर्श नहीं कर पाया है। आकाश और लोकाकाश की जो परिभाषा इन विद्वानों ने दी हैं वे बहुआयामी हैं। यदि उन सब आयामों को आधार बनाकर वैज्ञानिक खोज हो तो सूचनाओं को अधिक तर्क संगत आधार मिल सकता है। पौराणिक सूचनाओं और वैज्ञानिक प्रमाणों को हम आमने सामने रखकर देखें तो हमें लगेगा कि पौराणिक सूचनाएं तर्क संगत हैं। उदाहरण के लिए हम भारत क्षेत्र के नवीनतम भौगोलिक और प्राचीन पौराणिक सूचनाओं पर बने चित्रों के स्वरूप पर ध्यान दें तो उनमें एक समानता है यद्यपि पृथ्वी के रूप में परिवर्तन होते ही रहते है भरत क्षेत्र की सूचनाएं संकलित करते समय पुराणकारों के पास वैसा ही भरतखांड का रेखाचित्र रहा जैसा वह अभी दिखाई दे रहा है इसी कारण दोनों चित्रों में पृथ्वी, समुद्र, वन पर्वतों का स्थान 52 अर्हत् वचन, 24 (1), 2012
SR No.526592
Book TitleArhat Vachan 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size3 MB
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