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________________ वह किया है। योग, ध्यान, चिंतन के माध्यम से डी कोड कर उन्होंने यह बताया कि ज्ञान की अवस्थाएं जब अवधिज्ञान में परिवर्तित हो जाती है तो जानना पारदर्शी हो जाता है । अवधिज्ञानी ने पारदर्शी तथ्य बताए तो ग्रंथकारों ने उन्हें डी कोड कर जनभाषा में प्रवाहित किया और टीकाकारों ने उन्हे डी कोड कर विस्तार से समझाया। डीकोडिंग का अर्थ है संदेश(लिखित या अलिखित) में छिपे अर्थ को स्पष्ट करना । सभी तीर्थकर अवधिज्ञानी थे और सभी गणधर ज्ञान की वह क्षमता प्राप्त थे जिससे वे सूचनाओं को डीकोड करने में सक्षम थे। अलग अलग समय में मनुष्य की भाषा क्षमता भिन्न भिन्न थी और संदेशों का प्रवाह उस युग की भाषा में हुआ। यह अन्य बात है कि वह भाषा हम पढ़ नहीं पा रहे हैं इसलिए वर्तमान भाषा में हम उसे डीकोड नहीं कर पा रहे हैं। हमारी इस विवशता के कारण हम यह नहीं कहें कि जो पुराणों में लिखा है वह अविश्वसनीय है। उसे हम तब तक अविश्वसनीय न कहें जब तक हम ज्ञान के उस धरातल पर न पहुँच जायें जिसे अवधिज्ञान कहतें हैं। हमें यह भी स्मरण रखना होगा कि आकाश-ब्रह्माण्ड, स्वयं सूचनाओं का अपार भंडार है। योगी अपनी साधाना व एकग्रता से इन सूचनाओं को पकड़ने में समर्थ होते हैं और मस्तिष्क के विभिन्न प्रकोष्ठ उन्हे डीकोड करने में समर्थ होते हैं । वैज्ञानिक शोध उसे प्रमाणित कर रहे हैं। ज्ञान मनुष्य जीव का विशेष गुण है जो स्व और पर दोनों को जानने में समर्थ है। वह पांच प्रकार है - मति, श्रुति, अवधि, मनः पर्यय व केवल ज्ञान । वैसे तो ज्ञान पर चिंतकों ने बहुमूल्य सामग्री दी है किन्तु इसकी गूढ़ता पर जाना यहाँ हमारा प्रयोजन नहीं है। यहाँ केवल इस बात पर सोच रहे हैं कि अवधिज्ञान स्व और पर को पारदर्शी रूप से जानता है इसलिए वह सूचनाओं को पारदर्शी रूप से प्रेषित करने में सक्ष्म है । सम्यग्दर्शन च चरित्र की विशुद्धता के प्रभाव से किन्हीं साधकों को एक विशेष प्रकार का ज्ञान हो जाता है जिसे अवधिज्ञान कहते हैं। यह मूर्तिक अथवा संयोगी पदार्थों को जान सकता है, परंतु इन्द्रियों आदि कि बिना जान सकने के कारण प्रत्यक्ष है। समस्त आगम, अवधिज्ञानियों व केवल ज्ञानियों की देशनाओं पर आधारित है अतः सत्य हैं। केवल अतीन्द्रिय अतिशय ज्ञान है जो बिना इच्छा व बुद्धि के प्रयोग के सर्वांग से सर्वकाल व क्षेत्र संबंधी सर्व पदार्थे को हस्तामलकवत टंको त्कीर्ण प्रत्यक्ष देखता है। अतः भूत, भविष्य व वर्तमान को अवधि ज्ञानी प्रत्यक्ष देखता है। इसी कारण भूतकाल की बातें उसे यथारूप में दिखाई देती है। जो गुजर चुका है वह अपने अवशेष अवश्य छोड़ता है और वह स्मृतियों को ताजा कर वर्तमान के आधार पर परिभाषित करने लगता हैं । इतिहास की परतें खुलने लगती हैं। हम विगत के इन अवशेषों से जुड़ी स्मृतियों की श्रृंखला को संजोने का प्रयास करेंगे। गुजरे हुए समय का राजदाँ केवल अवधिज्ञानी हो सकता है जो वर्तमान युग में कोई नहीं हम तो केवल जहाँ जो अवशेष मिल गया उसके आस पास चक्कर लगायेंगे और अवधिज्ञानी न हो सकने की शर्म को ढंकने का प्रयत्न करेंगे । देखते हैं हमें क्या हाथ लगता है। ऐसा पहले भी हुआ है। कुछ ज्ञानियों ने अवधिज्ञान न होने के कारण अन्य संदर्भो और स्मृति के सहारे जो मार्गदर्शन दिया वह हो सकता है पूर्णतः ठीक न हो किंतु उसे पूर्णतः छोड़ा नहीं जा सकता - उसे समीक्षा सहित विचारार्थ लिया जा सकता है। जो ध्यानी और योगी होते हैं वे सच्चाई के अधिक निकट होते हैं। वैज्ञानिक आखिर क्या करते हैं? अध्ययन, साधना, इन्द्रियों से अलिप्तता तथा ध्यान से उनका ज्ञान तंत्र उर्ध्वगामी हो जाता है। उनका मस्तिष्क ब्रहमाण्ड में व्याप्त उन सूक्ष्म तरंगों को ग्रहण करने अर्हत् वचन,24(1), 2012
SR No.526592
Book TitleArhat Vachan 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size3 MB
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