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राजगृह दुर्ग की रक्षा प्राचीर इनके ऊपर भी सम्भवतः लकड़ी का एक और बुर्ज रहा होगा जो अब नष्ट हो चुका है। ऊपर चढ़ने के लिए अंदर की ओर से ढलुआ मार्ग बने थे। रक्षा प्राचीर में सुरक्षा / सैनिक कक्षों का भी निर्माण किया गया था। 13 रक्षा प्राचीर में एक प्रवेशद्वार (गोपुर) के अवशेष उत्तरी दिशा में मिले हैं। साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अन्य प्रवेशद्वार भी रहे होंगे लेकिन सम्प्रति प्रवेशद्वारों के अवशेष नष्ट हो चुके हैं।
पांच पहाड़ियों से आवृत्त राजगृह दुर्ग के भीतर जाने पर जो सर्वप्रथम स्मारक दिखाई देता है, वह मनियार मठ के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण कब हुआ और इसके निर्माता कौन थे, इतिहासकारों में इस विषय पर मतभेद हैं। कनिंघम के अनुसार यह एक जैन स्मारक था और जैनियों ने इसका निर्माण करवाया था। उन्होंने इस मत के पक्ष में दो तर्क दिये हैं। (1) इस स्मारक का आकार जैन मंदिरों से मिलता जुलता था और (2) यहां उत्खनन में स्मारक के भीतर से जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ की मूर्ति प्राप्त हुई हैं। कनिंघम के अनुसार मनियार मठ मूलतः एक जैन मंदिर था जो एक 20 फीट ऊँचे टीले पर स्थित था। इसकी खोज उन्होंने सर्वप्रथम 1861-1862 ई. में की थी और टीले के भीतर किसी स्तूप के होने का अनुमान किया था । स्तूप के भीतर से सम्भावित अस्थि अवशेषों को प्राप्त करने के उद्देश्य से उन्होंने परीक्षण उत्खनन करवाया था। उन्हें यह ज्ञात हुआ कि टीले के भीतर 3 मी. व्यास के कुएं के आकार की दीवार है जिसमें मलबा भरा हुआ है। टीले पर बने मंदिर को नष्ट किये बिना उन्हें और उत्खनन करवाने पर गहराई से कुछ मूर्तियां मिली हैं। एक मूर्ति में बुद्ध की माता माया देवी को लेटे हुए दिखाया गया था और मूर्ति के ऊपरी भाग में बुद्ध को अंकित किया गया था। दूसरी मूर्ति में नग्न पुरुष की स्थानक मूर्ति थी, जिसके शीर्ष पर सप्तमुखी सर्प का फण अंकित था। यह संभवतः पार्श्वनाथ की मूर्ति थी। तीसरी अन्य मूर्ति बहुत खंडित अवस्था में मिली। अतः उसकी पहचान सम्भव नहीं हो सकी।14
राजगृह की दो पहाड़ियों का संबंध भगवान महावीर से स्थापित होने के प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रमाण उपलब्ध हैं। प्राचीन राजगृह या गिरिव्रज के पश्चिमोत्तर में स्थित वैभारगिरि का संबंध जैन परम्परा में महावीर से स्थापित किया जाता है । विविध तीर्थकल्प में इसे एक पवित्र पहाड़ी बतलाया गया है, जिसमें गरम और शीतल जल कुण्डों का निर्माण था । इस पहाड़ी पर कुछ अंधेरी गुफाएं भी थी अर्हत् वचन, 24 (1), 2012
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