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________________ परिवार के लोग रहते थे। राजगृह का प्रारंभिक इतिहास महाभारत के सभापर्व में मिलता है। उस समय इसे पहाड़ियों से घिरा होने के कारण 'गिरिव्रज' कहा जाता था। - राजगृह में बहुत से प्राचीन स्मारक तथा पुरावशेष प्राप्त हुए हैं। इनमें से कुछ स्मारक ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं तथा कुछ का धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं, जिनका संबंध जैन धर्म से रहा है। पांच पहाड़ियों से घिरे इस प्राकृतिक दुर्ग में केवल दो प्रवेश मार्ग है - एक उत्तर में तथा दूसरा दक्षिण में । पुराने नगर की पाषाण रक्षा प्राचीर राजगृह के प्राचीनतम अवशेषों में से एक हैं। पांचों पर्वतों के ऊपर बनी हुई इस रक्षा प्राचीर श्रृंखला की परिधि प्रायः 40-48 कि.मी. है। पुरातत्ववेत्ताओं ने इस रक्षा प्राचीर का नाम 'साइक्लोपीडियन वाल' रखा है। इस रक्षा प्राचीर का निर्माण 3 फीट से 5 फीट लम्बे पत्थरों को एक दूसरे से फंसा कर किया गया था और बीच के छेदों में छोटे-छोटे पत्थरों को भरा गया था। वर्तमान में इन पाषाणों के बड़े-बड़े ढेर मिलते हैं। anjar AARTIme reformwares TH FORTIFICATIONS OF RAJGIR. STRICT PAINA राजगृह दुर्ग का मानचित्र प्राचीन रक्षा प्राचीर के सर्वाधिक अवशेष ऊँचे बाणगंगा दर्रे के पूर्व एवं पश्चिम में मिले हैं। पांचों पर्वतों पर यह प्राचीर लगभग 11-12 फीट की ऊँचाई तक उठी थी। यद्यपि अब इन दीवारों के अवशेष 7-8 फीट से अधिक ऊँचे नहीं हैं। पुरातत्ववेत्ताओं का अनुमान है कि इस दीवार के ऊपर एक और दीवार छोटे पत्थरों अथवा लकड़ी से बनायी गई होगी, जो वर्तमान में नष्ट हो चुकी थी। रक्षा प्राचीर की मोटाई प्रत्येक पहाड़ियों पर अलग-अलग है। सामान्यतः इस रक्षा प्राचीर की मोटाई 17 फीट है। इस रक्षा प्राचीर को और सुदृढ़ करने के लिए अंदर और बाहर से असमान दूरियों पर 16 अट्टालिकाओं (बुर्ज) का निर्माण किया गया था। इनकी योजना आयताकार है और निर्माण शैली प्राचीर के सदृश है। यह 47 से 60 फीट लम्बे और 34 से 40 फीट तक चौड़े हैं । 12 32 अर्हत् वचन, 24 (1), 2012
SR No.526592
Book TitleArhat Vachan 2012 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2012
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size3 MB
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