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अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर
वर्ष - 24, अंक - 1, जनवरी - मार्च - 2012, 31-38 राजगृह दुर्ग का जैन पुरातत्व : एक सर्वेक्षण
। उमेश कुमार सिंह*
सारांश राजगृह (राजगिरि) की पंच पहाड़ियों की प्राकृतिक स्थिति ने इसे दुर्ग का रूप दे दिया है। इस प्राकृतिक दुर्ग की पंच पहाड़ियों पर स्थित जैन पुरातात्विक अवशेषों, जिन प्रतिमाओं का विस्तृत सर्वेक्षण प्रस्तुत आलेख में अंकित है।
राजगृह (नालन्दा जिलान्तर्गत, बिहार) की स्थिति भौगोलिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण थी। यह स्थल अनेक पहाड़ियों से घिरा होने के कारण अत्यधिक सुरक्षित था। जैन साहित्य में राजगृह की पांच प्रमुख पहाड़ियों के नाम वैभारगिरि, विपुलगिरि (विपुल पर्वत), रत्नगिरि, उदयगिरि और सोनगिरि मिलते हैं।' इन पहाड़ियों के ये नाम आज भी प्रचलित हैं।
शिल्प ग्रंथों में 'दुर्ग' की व्याख्या करते हुए कहा गया है - 'दुःखेन गच्छत्यत्र' अर्थात जहां दुःखपूर्वक पहुँचा जाए अथवा जहाँ पहुँचने में कठिनाई हो, उसे 'दुर्ग' कहते हैं। इस प्रकार स्थिति एवं निर्माण की दृष्टि से राजगिरि दुर्ग शास्त्र सम्मत है।
जैन अभिलेखों में वैभारगिरि को वैभार या व्यवहार कहकर संबोधित किया गया है। यहां दिगम्बर साधु रहते हैं और लगातार कठिन तपस्या करते रहते हैं। वे सूर्य के उदय होने से लेकर अस्त होने तक उसे देखते हुए उसके साथ घूमते रहते हैं । यह जैन ग्रंथ में वर्णित वैभारगिरि का ही वर्णन प्रतीत होता है, जिसे ह्वेनसांग ने विपुल नाम से प्रस्तुत किया है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि महाभारत में वैभारगिरि (वैहार) को 'विपुल शैल' कहा गया है। यहाँ पर एक प्राचीन स्तूप वर्तमान में भी स्थित है। इसके अतिरिक्त (संभवतः गुप्तकालीन) प्राचीन जैन प्रतिमाओं से युक्त एक जैन मंदिर भी है।
जैन परम्परा के अनुसार राजगृह को घेरने वाली सात पहाड़ियां थी। उनकी स्थिति इस प्रकार बताई गई है। यदि कोई व्यक्ति उत्तर से राजगृह में प्रवेश करे तो दाहिनी ओर स्थित पहाड़ी वैभारगिरि है, इसकी बांयी ओर विपुलगिरि, इसके समकोण पर वैभारगिरि के समानान्तर दक्षिण की ओर नाले की तरह वाली पहाड़ी रत्नगिरि है। रत्नगिरि का पूर्वी प्रसार चठागिरि और चठागिरि के बाद स्थित पहाड़ी शैलगिरि है। चठागिरि के सामने उदयगिरि और रत्नगिरि के दक्षिण और उदयगिरि के पश्चिम में स्थित पहाड़ी सोमगिरि है। जैन परम्परा के अनुसार महावीर का निवास स्थल विपुलगिरि के गुणशीलक (गुणशील) चैत्य में था। उन्होंने अपने चौदह वर्षावास राजगृह में व्यतीत किये थे। दिगम्बर परम्परा के अनुसार महावीर ने अपना प्रथम धर्मोपदेश विपुलगिरि पर दिया था। वे अनेक बार इस पहाड़ी पर आये और अपना धर्मोपदेश दिया।
प्राचीनकाल में राजगृह (राजगीर) या गिरिव्रज मगध महाजनपद की राजधानी थी। राजगृह का शाब्दिक अर्थ है 'राजा का निवासगृह।' संभवतः यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यहाँ राजा और उसके
* प्रवक्ता, प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, उदय प्रताप स्वायत्तशासी कॉलेज, वाराणसी।