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इस प्रकार प्राचीन भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जिसकी सीमाएं गंगा घाटी के मैदानों का अतिक्रमण कर गयी। खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से उसकी कलिंग विजय की सूचना प्राप्त होती है। यह सब क्यों एवं किस प्रकार हुआ? यह विचारणीय प्रश्न है। वस्तुतः नंद राजाओं का शासन काल भारतीय इतिहास के पृष्ठों में अपना एक अलग महत्व रखता है। यह भारत के सामाजिक-राजनैतिक आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। "सामाजिक दृष्टि से इस निम्न वर्ग के उत्कर्ष का प्रतीक माना जा सकता है। इसका राजनैतिक महत्व इस तथ्य में निहित है कि इस वंश के राजाओं ने उत्तर भारत में सर्वप्रथम एकछत्र राज्य की स्थापना की। इसी काल में जो आर्थिक समृद्धि हुई उसने पाटलिपुत्र को शिक्षा एवं साहित्य का केन्द्र बना दिया। व्याकरणाचार्य पाणिनि महापद्मनंद के मित्र थे । इनके अतिरिक्त वर्ष, उपवर्ष, वररुचि, कात्यायन जैसे विद्वान भी इसी काल में ही हुए थे। निष्कर्षतः यह स्वीकार किया जा सकता है कि प्राचीन भारत के राजनैतिक क्षितिज पर नंद जैसे शूद्र राजवंश का आगमन छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व में जैन धर्म एवं धर्म के उदय, प्रभाव एवं विस्तार ने प्राचीन भारत की सामाजिक धार्मिक व्यवस्था को भावी समय में अत्यधिक प्रभावित किया। यहाँ तक कि पूर्व से चले आ रहे ब्राह्मण धर्म को इन धर्मों से काफी धक्का लगा। इन धर्मों के उदय के कारण ही ब्राह्मण धर्म को अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए अत्यन्त सुधारात्मक प्रयास करने पड़े।"
भारत के भावी इतिहास में जैन धर्म, बौद्ध धर्म एवं ब्राह्मण धर्म समानान्तर तीन धाराओं की तरह आगे बढ़े। सामाजिक संरचना में इतना लचीलापन आया कि विदेशी आक्रमणकारियों को भारतीय संस्कृति ने आत्मसात किया। यदि जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म जैसे सुधारवादी आन्दोलन अगर नहीं होते तो ऐसा होना कदापि सम्भव नहीं था। ब्राह्मण धर्म में इस सबसे आत्मावलोकन की प्रवृत्ति का विकास हुआ। जो हमें भावी इतिहास में दिखाई देती है। इन दोनों ही धर्मों का आधार इतना मजबूत था कि वर्तमान में देश एवं विदेश में इन धर्मों का अस्तित्व बना हुआ है।
सन्दर्भ :
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के.सी. श्रीवास्तव- प्राचीन भारत का इतिहास एवं संस्कृति पृष्ठ - 840
The Age of Imperial Unity M. A. Ghatge, भारतीय विद्या भवन श्रृंखला, पृष्ठ 412
The Age of Imperial Unity - Page - 413
राधाकृष्णन् भारतीय दर्शन, राजकमल प्रकाशन, दिल्ली, पृष्ठ 300
R. C. Muzumdar Ancient India.
राधाकृष्णन उपर्युक्त पृष्ठ
Stivension The Heart of Jainism 18,19
रोमिला थापर भारत का इतिहास, पृष्ठ 471
वायु पुराण 4 24, 20
पार्जिटर Dynasties of the kali Age, पृष्ठ 20-21
के.ए. नीलकण्ठ शास्त्री Age of the Nandas the Mauryar, पृष्ठ 5
प्राप्त : 15.11.06
अर्हत् वचन, 19 (3), 2007
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