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________________ के लिये नहीं अपितु सम्पूर्ण प्राणी मात्र के लिए। इसलिए यह आवश्यक था कि यह धर्म भारतीय समाज के उस वर्ग द्वारा अंगीकार किया जाए जो अधिकाधिक अहिंसक कार्यक्षेत्र वाला हो और वह ऐसा वर्ग था वैश्य वर्ग, जो व्यापार के कार्य में संलग्न था। जैन धर्म ने अपने उदभव के साथ ही तत्कालीन राजनैतिक परिदृश्य को प्रभावित करने का कार्य किया। प्राचीन काल में चूँकि अनेक शासकों ने जैन धर्म को स्वीकार कर प्रश्रय प्रदान किया था, इसके कारण यह धर्म और पल्लवित एवं विस्तारित हुआ। हर्यक कुल का शासक अजातशत्रु अपने शासन काल के प्रारम्भिक वर्षों में जैन धर्म का ही अनुयायी था। अजातशत्रु का उत्तराधिकारी उदयन भी जैन धर्म का अनुयायी था। जैन ग्रन्थ आवश्यक सूत्र से पता चलता है कि अपनी राजधानी के मध्य में उसने एक चैत्य गृह का निर्माण करवाया था। वह नियमित रूप से व्रत करता तथा जैन आचार्यों के उपदेश सुनता था। जैन आचार्यों के उपदेश सुनते - सुनते ही वह एक हत्यारे द्वारा छुरा भोंककर मार डाला गया। सामाजिक एवं राजनैतिक दृष्टिकोण से तत्कालीन परिदृश्य पर जैन धर्म का प्रभाव स्पष्ट रूप से तब परिलक्षित होता है, जब मगध के साम्राज्य पर नन्द वंश का शासन स्थापित होता है। मगध पर नंद वश की स्थापना निश्चित रूप से छठवीं शताब्दी में हुई वैचारिक धार्मिक क्रांति की राजनैतिक परिणति थी। जब एक शूद्र व्यक्ति शासक बनता है तथा उसे सामाजिक अभिस्वीकृति भी मिली। चूंकि यह शासक जैन धर्म का अनुयायी था। इसी कारण वह तत्कालीन सामाजिक राजनैतिक वर्जनाओं को तोड़ने में सफल हुआ। इससे पूर्व सामान्यत: यह माना जाता था कि एक शासक को क्षत्रिय ही होना चाहिए। जबकि हम जानते है कि तत्कालीन सामाजिक संरचना में शूद्र सबसे निम्न पायदान पर स्थित थे। नन्दों के इतिहास जानने के साधनों में जातीय पूर्वाग्रह भी परिलक्षित होता है। नंदवंश के संस्थापक महापद्मनंद के लिए पुराणों में स्पष्ट लिखा है कि वह शूद्र स्त्री के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। "महानन्दीनस्त तश्शूद्रागर्भोद्भवो अतिलुब्धों अतिबलों महापद्नामा नन्दः परशुरामिवापरो अखिल क्षत्रान्तकारी भविष्यति।" इसके अतिरिक्त अन्य भारतीय एवं ग्रीक साक्ष्य भी उसे या तो निम्न कुल का या शूद्र ही बताते हैं। किन्तु जैन 'धर्म को मानने वाला वह तत्कालीन मगध के सिंहासन पर बैठने वाले राजाओं में सर्वाधिक शक्तिशाली था। जिसे 'कलि का अंश' सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला (सर्वक्षत्रान्तक), 'दूसरे परशुराम का अवतार' था जिसने अपने समय के सभी प्रमुख राजवंशों को विजित किया। उसने एक छत्र शासन की स्थापना की तथा 'एकराट' शासक की उपाधि धारण की। जो विवरण मिलता है वह इस प्रकार है : "महानंदी सुतश्चापिशूद्रायां कलिकाशंजः। उत्पस्यते महापद्मों सर्वक्षत्रान्तको नृपः ।। एकराट् स महापद्म एकछत्रों भविष्यति। xxxx स एकछत्रं पृथ्वी अनुलंधितशासनः । स्थास्यति महापद्मो द्वितीय इव भार्गवः ।।१० अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 44 Jain Education International Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526575
Book TitleArhat Vachan 2007 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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