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________________ करता हुआ हमारे हृदय में डाह उत्पन्न करता है। सौभरि ऋषि के हृदय में संसार बसाने की भावना जागृत हुई और गृहस्थाश्रम में प्रवेश की भावना से कन्या ग्रहण करने के लिए राजा मांधाता के पास आये। कहीं ऐसा तो नही कि सौभरि ऋषि नर्मदा के जल में तप करते हों क्योंकि विशाल मत्स्य ओंकारेश्वर घाट से लगे नर्मदा में ही संभव है। उस घाट से थोड़ा हट कर मांधाता नाम से ज्ञात स्थान है। कही पौराणिक चक्रवर्ती मांधाता की राजधानी या उपराजधानी इसी क्षेत्र में हो। जैन संदर्भों में वर्णित चक्रवर्ती मघवा भी मांधाता के समान इक्ष्वाकुवंशी ही थे। मघवा रेवा नदी सिद्धवरकूट से तपस्या कर मोक्षगामी हुए। कथानक इस प्रकार बनता है कि द्वापर के सातवें युग में मांधाता नर्मदा के किनारे बसी एक विशाल नगरी के शासक थे। वे इक्ष्वाकु वंशी चक्रवर्ती राजा थे। नर्मदा के किनारे बसे राजा मांधाता की नगरी को ही उनके नाम से मांधाता कहा जाने लगा। मांधाता के पुत्र पुरुकुत्स ने नर्मदा क्षेत्र के बहुमुखी विकास के लिए प्रयत्न किया। यह भी पौराणिक संदर्भ है कि नागवंशी लोग गंधर्व जाति के लोगों से परास्त होकर पाताल पुरी में केन्द्रित हो गए थे। नागवंशियों ने पुरुकुत्स से अनुनय की हो कि उन्हें गंधवों के भय से मुक्त कराने के लिए मदद जाए। श्री विष्णुपुराण का कथन है कि नर्मदा, जिसे पुरुकुत्स की भार्या कहा गया है वह पुरुकुत्स को रसातल में ले आयी। रसातल में पहुँचने पर उसने सम्पूर्ण गंधवों को मार डाला। उस समय समस्त नागराजाओं ने नर्मदा को यह वर दिया कि जो काई तेरा स्मरण करते हुए तेरा नाम लेगा उसे सर्प विष से कोई भय नहीं होगा। नर्मदा के किनारे बसी जनजातियों में आज भी यह विश्वास प्रचलित है । इस कथानक में मनुष्य और प्रकृति ( पुरुकुत्स और नर्मदा नदी) के सहयोग से रसातल पाताल पुरी तक (पश्चिमांचल-खंभात की खाड़ी तक ) मांधाता के सम्राज्य का विस्तार हुआ हो यह सत्य स्मृति रूप में रखने का प्रयत्न किया गया है। नर्मदा मध्यांचल की जीवन रेखा है जिसका पुरुकुत्स ने जलमार्ग से यात्रा करते हुए गंधर्वों का वध किया हो और नागों को उन के आतंक से मुक्त कराया हो । नर्मदा को मध्य में रखकर सम्राट मांधाता ने धर्मराज्य की स्थापना की और अपने अंत समय सर्वत्यागी मुनि बन कर रेवा नदी के उस पार पहाड़ी पर आत्मा साधना की हो और वहीं से नश्वर देह त्याग मोक्ष गामी हो गये हों । क्या ये मघवा थे ? संभावना के इस सेतु को हमे जीवित रहने देना चाहिए ताकि इतिहास को जोड़ा जा सके। जिस काल की यह घटना है उस समय श्रमण और वैदिक चिंतन व परमपरायें विरोधी नहीं थी दोनों का नजरिया अलग-अलग था। | मघवा शांतिनाथ के अंतराल में एवं भगवान धर्मनाथ के तीर्थकाल में हुए थे । मांधाता (मघवा) का काल निर्धारण करने में कुछ तथ्य मदद कर सकते है । मांधाता का वंश इस प्रकार चलता है मांधाता अम्बरीष युवनाश्व हारीत - - + पृषदख हर्यश्व हस्त सुमना त्रिधन्वा त्रय्यारूणि - रोहिताश्व हरित चञ्जु विजय + वसुदेव वसुदेव विजय से रूरूक और ताल जंघ क्षत्रियों का नाश किया) अयोध्या का चक्रवर्ती मघवा व नर्मदा किनारे का मांधाता का समन्वय कठिन हो सकता है पर अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 Jain Education International - - - For Private & Personal Use Only पुरुकुत्स रायस्यु अनरण्य सत्यव्रत (त्रिशंकु ) हरिश्चंद्र - - वृक्रबाहु सगर ( इस ने हैहय - 35 www.jainelibrary.org
SR No.526575
Book TitleArhat Vachan 2007 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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