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________________ मांधाता आयोध्या का एक प्राचीन सूर्यवंशी राजा था जो दिलीप के पूर्वजों में से था। ओंकारेश्वर के प्राचीन संदर्भों में भी मांधाता का उल्लेख है । यदि मांधाता के कार्यकलापों का विवरण प्राप्त हो जाए तो सिद्धवरकूट की प्राचीनता पहचानी जा सकेगी। नर्मदा के किनारे ईटबेडी (कसरावद ) में भी जैन परिसर होने की संभावना व्यक्त की गई है। मोहन जोदड़ो / सिंधु सभ्यता काल में नर्मदा घाटी में उसी प्रकार की सभ्यता के अस्तित्व का पता लगता है। इस सभ्यता में योगिक जीवन दर्शन के संदर्भ मिले हैं। सम्पूर्ण नर्मदा का बहाव क्षेत्र अपने गर्भ में इतिहास की कई अज्ञात कड़ियों को छिपाये बैठा है । एक कड़ी को यहाँ हम पहचानने का प्रयत्न करेंगे। श्री विष्णुपुराण का कथन है कि जहां से सूर्य उदय होता है और जहां अस्त होता है वह सभी क्षेत्र युवनाश्व के पुत्र मांधाता का है। मांधाता सप्तद्वीपा पृथ्वी का राज्य भोगता था। मांधाता ने शत बिन्दु की पुत्री बिन्दुमती से विवाह किया था और उससे पुरुकुत्स, अम्बरीष और मुचुकुंद नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए और उसी के उसके पचास कन्याएँ उत्पन्न हुई । इन कन्याओं का विवाह बहुवृच सौभरी नामक महर्षि से हुआ। मांधाता के पुत्र अम्बरिष के युवनाश्व नामक पुत्र हुआ। मांधता के पुत्र पुरुकुत्स की भार्या नर्मदा नागाधिपाति की बहन थी । जिसकी प्रेरणा से रसातल में जाकर पुरुकुतस ने गंधर्वों का नाश कर नागधिपतियों की मदद की। उस समय समस्त नागराजों ने नर्मदा को यह वर दिया कि जो कोई तेरा स्मरण करते हुए तेरा नाम लेगा सर्प विष से कोई भय न होगा। इसी वंश में चक्रवर्ती सागर हुआ। इस प्रकरण में मांधाता और नर्मदा का संबंध प्रकाशित होता है। जैन संदर्भ भी कुछ संकेत देते हैं । मघवाः धर्मनाथ के तीर्थ में मघवा नामक तीसरा चक्रवर्ती हुआ। अयोध्या नरेश इक्ष्वाकुवंशी सुमित्र की महारानी भद्रा से मघवा नाम का पुत्र हुआ वह चक्रवर्ती राजा बना अपरिमित वैभव होते हुए भी वह भोगों में आसक्त नहीं हुआ। इसका समय भगवान धर्मनाथ के पश्चात तथा भगवान शान्तिनाथ के पहले है। अभय घोष केवली के उपदेश से उनके मन में आत्म कल्याण की भावना जागृत हुई और वे आरंभ परिग्रह का त्याग कर सकल चरित्र के धारी हो गए और मोक्षगामी हुए। पद्म पुराण के अनुसार आयोध्या नरेश सुरेन्द्रमन्यु हुआ जिसके वंश में मांधाता हुआ। मांधाता के संबंध में बताते हुए रामचंद्र वर्मा ने लिखा है- अयोध्या का एक प्राचीन सूर्यवंशी राजा जो दिलीप के पूर्वजों में से था। मघवा : सातवें द्वापर के व्यास । क्या मघवा और मांधाता एक ही व्यक्ति थे ? इस प्रश्न के पैदा होने के तीन प्रमुख कारण है । सौभरि ऋषि ने मांधाता की 50 कन्याओं से विवाह किया था। सौभरि ऋषि ने 12 वर्ष जल में निवास किया था। उस जल में सम्मद नामक एक बहुत सी संतानोवाला और अति दीर्घकाय मत्स्यराज था। उसके पुत्र पौत्र आदि उसके आगे पीछे इधर-उधर पुच्छ और सिर के उपर धूमते हुए अति आनन्दित होकर रातदिन उसी के साथ क्रीड़ा करते थे...... सौभरि ऋषि ने विचार किया यह धन्य है। जो ऐसी अनिष्ट योनि में उत्पन्न होकर भी अपने इन पुत्र-पौत्र और दौहित्र आदि के साथ निरंतर रमण 34 अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526575
Book TitleArhat Vachan 2007 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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