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________________ Tसाहा। असंभव नहीं - चक्रवर्ती होने के नाते अयोध्या और नर्मदा किनारे ओंकारेश्वर वाला स्थान सभी उनके मघवा या मांधाता के अधिपत्य में ही होगें और नर्मदा तट की सुरम्यता को देखकर उनहोंने वहाँ एक नगरी बसाई हो जिसे मांधाता कहा जाने लगा हो। न हमारे पास मांधाता ग्राम का कोई प्रामाणिक इतिहास है न सिद्धवरकूट का प्राचीन इतिहास है किंतु मांधाता और मघवा इनमें विरोधाभास नजर नहीं आता है। हम प्राकृत की गाथा को भी कैसे भूल सकते है। भारतीय संस्कृति में नदी को जीवन दायिनी के रूप में पूजा गया है। नर्मदा की सहायता - प्रेरणा से कहीं पुरूकुत्स - नाविक शक्ति का सहारा लेकर पश्चिम क्षेत्रा (रसातल) गया हो और दानव जाति पर विजय प्राप्त की हो। दो सांस्कृतिक परम्पराएं संकेत कर रही है कि मांधाता और मघवा एक ही व्यक्ति होना चाहिए। यही संकेत सिद्धवरकूट के इतिहास की पुष्टि करेगा। जैन संदर्भो में वर्णित चक्रवर्ती मघवा भी मांधाता के समान इक्ष्वाकुवंशी ही थे। मघवा रेवानदी सिद्धवरकूट से तपस्या कर मोक्षगामी हुए। सिद्धवरकूट का इतिहास इसी प्रकार होना चाहिए, वह मांधाता और मघवा के समन्वय से नर्मदा घाटी के पुरातत्व से जुड़ा हुआ लगता है। पुरातत्व वेत्ता कुछ अन्य प्रमाण देंगे तो तथ्यों को स्वीकार करना अनिवार्यता होगी। किंतु जैन समाज इन संदर्भो के प्रकाश में अपने प्रकाशनों में जागरूक रहेगा तो जैन इतिहास को क्रमबद्ध करने में सहायता मिलेगी। नर्मदा और उसके किनारे पर जैन धर्म के अस्तित्व का प्रमाण विष्णुपुराण में अन्यत्र मिलता है। कथन है कि - पाराशरजी बोले - हे मैत्रेय ! तदनन्तर माया मोह ने (देवताओं के साथ) जा कर देखा कि असुरगण नर्मदा के तट पर तपस्या में लगे हुए है। तब उसे मयूरपिच्छ धारी दिगम्बर जैन मुण्डित केश माया मोह ने असुरों से अति मधुर वाणी में इस प्रकार कहा । यह सम्पूर्ण जगत विज्ञानमय है - ऐसा जानो। यह संसार अनाधार है भ्रमजन्य पदार्थों की प्रतिति पर ही स्थिर है तथा रागादि दोषों दुषित है। इस संसार संकट में जीव अत्यंत भटकता रहता है। माया मोह ने दैत्यों से कहा था कि आप लोग इस महाधर्म को 'अर्हत' इसका आदर कीजिए । अतः उस धर्म का अवलंबन करने से वे 'आहत' कहलाये। इस कथानक में परपरागत विद्वेष की झलक हो किंतु नर्मदा के तट पर 'अर्हत् वचन' की प्राचीन उपस्थिति का प्रमाण तो है ही। मयूर पिच्छीधारी दिगम्बर और मुण्डित केश और उसके वचन सभी दिगम्बर मुनि की उपस्थिति को रेखांकित करते हैं। अमरकंटक से लेकर खंभात तक नर्मदा घाटी में जैन वंदित क्षेत्रा अनेकों है। संदर्भ स्थल :1. कसरावद उत्खनन् - डॉ. वि.श्र. वाकणकर, उज्जैन विष्णु पुराण, अध्याय - 3, अंश - 4, श्लोक - 53, गीताप्रेस, गोरखपुर 3. वही, श्लोक, 7-13 4. वही, अध्याय - 18, श्लोक - 1,2,9-12, 18-17 प्राप्त : 05.01.06 36 अर्हत् वचन, 19(3), 2007 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526575
Book TitleArhat Vachan 2007 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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