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________________ देश के प्राय: सब प्रान्तों के वन, उपवन, वाटिकाओं में उत्पन्न होता है। इसके वृक्ष बहुत विशाल और मोटे हुआ करते हैं । सेमर रस तथा विपाक में मधुर रसयुक्त, शीतल, रसायन, कफजनक एवं पित्त, वात, रक्तविकार या वातरक्त तथा रक्तपित्त को दूर करने वाला होता है । 4 - अभिनन्दन नाथ हस्तचित्राख्ययानाधिरूढोऽग्रोद्यानमागतः । माघे सिते स्वर्गर्भर्भे द्वादश्यामपराह्नगः ॥15211 अथ मौनव्रतेनेते छाद्मस्थेऽष्टादशाब्दके । दीक्षावनेऽसनक्ष्मामूले षष्ठोपवासिन: 115511 उत्तर पुराण, पृ. - 22 एवं 23 भगवान अग्र उद्यान (दीक्षा वन) में असनवृक्ष के नीचे ध्यानारूढ़ हुये । असन (बीजक: / विजयसार) बीजक: पीतसारश्च पीतशालक इत्यपि । बन्धूकपुष्पः प्रियक: सर्जकश्चासनः स्मृतः ॥28॥ बीजक: कुष्ठवीसर्पश्वित्रमेहगुद किमान् । हन्ति श्लेष्मास्रपित्तञ्च त्वच्यः केश्यो रसायन : ॥29॥ बीजक, पीतसार, पीतशालक, बन्धूकपुष्प, प्रियक, सर्जक और असन विजयसार के संस्कृत नाम हैं। इसका लेटिन नाम Terminalia tomentosa है। यह दक्षिण भारत, बिहार और पश्चिमी प्रायद्वीप में होता है। इसका वृक्ष सुन्दर, बहुत बड़ा किन्तु अचिरस्थायी होता है । विजयसार त्वचा के लिए हितकारी, बालों को उत्तम बनाने वाला, रसायन एवं कुष्ठ, वीसर्प, श्वेतकुष्ठ, प्रमेह, गुदा के कृमि, कफ, रक्तविकार, पित्त या रक्तपित्त को दूर करने वाला है । 5 - भगवान सुमतिनाथ दीक्षां षष्ठोपवासेन सहेतुक वनेऽगृहीत् । सिते राज्ञां सहस्रेण सुमतिर्नवमीदिने ||70|l विशतिं वत्सरान्नीत्वा छद्मस्थ प्राक्तने वने । Jain Education International प्रियङ् गुभूरुहोऽधस्तादुपवासद्वयं श्रितः 117411 उत्तर पुराण, पृ. 30 सहेतुक वन में प्रियंगु वृक्ष के नीचे दो दिन का उपवास लेकर योग धारण किया । प्रियंगु प्रियङ्गुः फलिनी कान्ता लता च महिलाऽऽहृया । 101 गुन्द्रा गन्धफला श्यामा विष्वक्सेनाडु नाप्रिया । प्रियङ्गु शीतला तिक्ता तुवराऽनिल पित्तहृत् । 120 रक्तातीसारदौर्गन्ध्य स्वेददाहज्वरापहा । (वान्तिभ्रान्तयतिसारधनी वक्त्रजाडयविनाशिनी ) । गुल्मतृविषमोहनी तद्वद् गन्धप्रियङ का । भा. प्र.नि., पृ. - 248 प्रियंगु, फलिनी, कान्ता, लता, महिलाह्वया (स्त्रीवाचक सभी शब्द), गुन्द्रा गन्धफला, श्यामा, विष्वक्सेनङ्गना और प्रिया ये सब संस्कृत नाम प्रियंगु के हैं। तीन प्रकार के प्रियंगु का वर्णन मिलता है। प्रियंगु, फूलप्रियंगु, गंधप्रियंगु, वुंडुड, बूढीघास, डइया, दहिया आदि हिन्दी नाम हैं तथा लेटिन में Callicarpa macrophylla vahi नाम है प्रियंगु अर्हत् वचन, 19 (3), 2007 12 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526575
Book TitleArhat Vachan 2007 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2007
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size7 MB
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