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जंगलों के किनारे, घाट और ऊंची चढ़ाइयों तथा खुले हुये जंगल और परती भूमि में होता है। यह नेपाल, देहरादून के जलप्राय स्थानों, बंगाल तथा बिहार के अनेक स्थानों में पाया जाता है। अन्य प्रकार प्रियंगु बलोचिस्तान एवं पश्चिमी प्रायद्वीप में पाया जाता है।
प्रियंगु तिक्त तथा कषाय रसयुक्त और शीतवीर्य होती है। यह वात पित्त, रक्तातिसार, दुर्गंध, पसीना, दाह, ज्वर, गुल्म, तृषा, विष और मोह इन सब रोगों को दूर करती है।
6 - भगवान पद्मप्रभ
निवृत्याख्यां समारुह्य शिविकांस मनोहरे ।
वने षष्ठोपवासेन दीक्षां शिक्षामिवाग्रहीत् । 151 उत्तर पुराण, पृ. - 34
भगवान पद्मप्रभु ने मनोहर नाम के वन में दीक्षा ग्रहण की।
प्रतिष्ठा रत्नाकर, मुनि प्रमाणसागर एवं मुनि समतासागर के अनुसार भगवान पद्मप्रभु का दीक्षावृक्ष भी प्रियंगु है जिसका वर्णन किया जा चुका है।
7 - भगवान सुपार्श्वनाथ
सुपार्श्वो मौनमास्थाय छाद्मस्थ्ये नववर्षकः ।
सहेतुकवने मूले शिरीषस्य द्वयुपोषितः ।। 44।। उत्तर पुराण, पृ. 42
सहेतुक वन में दो दिन के उपवास का नियम लेकर वे शिरीष वृष के नीचे ध्यानारूढ़ हुये ।
शिरीषः (सिरस )
शिरीषो मण्डिलो भण्डी भण्डीरश्व कपीतनः ।
शुष्कपुष्पः शुकतरुर्मृदुपुष्पः शुकप्रियः ।। 13॥ शिरीषो मधुरोऽनुष्णस्तिक्तश्च तवरो लघु : ।
दोष शोथविसर्पनः कासव्रणविषापहः ||14|| भा. प्र.नि., पृ. - 58
शिरीष, माण्डिल, भण्डी, भण्डीर, कपीतन, शुकपुष्प, शुकतरु, मृदुपुष्प और शुकप्रिय ये सभी सिरस के संस्कृत नाम हैं। लेटिन नाम Albizzia Lebbeck Benth. है ।
यह प्रायः सभी प्रान्तों में पाया जाता है। सिरस के वृक्ष बड़े-बड़े और सघन होते हैं।
सिरस मधुर, तिक्त तथा कषाय रसयुक्त, किन्चित उष्ण, लघु एवं वातादिक दोष, शोध, विसर्प, कास (खासी), व्रण तथा विष को दूर करने वाला है।
8 - भगवान चन्द्रप्रभ
दिनद्वियोपवासित्वा वने सर्वर्तुकाहये ।
पौषे मास्यनुराधायामेकादश्यां महीभुजाम् ||216|| त्रीन मासान् जिनकल्पेन नीत्वा दीक्षावनान्तरे ।
अधस्तन्नागवृक्षस्य स्थित्वा षष्ठोपवासभृत || 22311 उत्तर पुराण, पृ. - 60 सर्वर्तुक वन (दीक्षा वन) में नागवृक्ष के नीचे बेला का नियम लेकर स्थिर हुये ।
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नागवृक्ष
नागपुष्पः स्मृतो नागः केशरो नागकेशरः ।
चाम्पेयो नागकिञ्जल्कः कथितः काञ्चनाह्वयः ॥ भा. प्र. नि., पृ. - 224 अर्हत् वचन, 19 (3), 2007
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