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________________ है। ये आज से तुम्हारे स्वामी है। यह कुमार नमि दक्षिण श्रेणी का अधिपति होगा और कुमार विनमि उत्तर श्रेणी पर राज्य करेगा। संभवत: विंध्याचल पर्वत श्रेणी में यह स्थान हों विद्याधरों ने धरणेन्द्र की यह आज्ञा स्वीकार कर ली। तब धरणेन्द्र ने उन दोनों कुमारों का राज्याभिषेक किया और राज सिंहासन पर बैठाया। उसने उन दोनों को गान्धारपदा और पन्नगदा विद्यायें दी। यद्यपि वे कुमार जन्म से विद्याधर नहीं थे किन्तु उन्होंने वहाँ रहकर अनेक विद्यायें सिद्ध कर ली। स्पष्ट है कि विद्याधर जाति पर नागवंशी धरणेन्द्र इन्द्र का प्रभुत्व था अर्थात् वे नागवंशी थे धरणेन्द्र इन्द्र इक्ष्वाकु कुल के समर्थक थे। नमि, विनमि भी प्राप्त विद्याओं ओर साधनाओं के बल पर नागवंशी परंपरा के अंग हो गये थे। 'धरणेन्द्र' की महत्ता जैन परंपरा में उनके इसी महत्वपूर्ण कार्य के कारण है। सम्भवत: नागवंश का शुभारंभ यहीं से हुआ। जैन संदर्भों में विद्याधरों के संबंध में अनेक बार पढ़ने के लिए मिलता है। विद्याधर के बारे में धवला ग्रंथ में विचार किया गया है? जिसे जिनेन्द्रवर्णी ने निम्न प्रकार से स्पष्ट किया है इस प्रकार से तीन प्रकार की विद्यायें ( जाति, कुल व तप विद्या) विद्याधरों के होती है। वैताढ्य पर्वत पर निवास करने वाले मनुष्य भी विद्याधर होते है सब विद्याओं को छोड़कर संयम को ग्रहण करने वाले भी विद्याधर होते हैं, क्योंकि विद्या विषयक विज्ञान वहां पाया जाता है जिन्होंने विद्यानुप्रवाद को पढ़ लिया है वे भी विद्याधर हैं, क्योंकि उनके भी विद्या विषयक विज्ञान पाया जाता है। त्रिलोकसार ३ की एक गाथा भी स्पष्ट करती है कि विद्याधर लोग तीन विद्याओं तथा पूजा उपासना आदि षट कर्मों से संयुक्त होते हैं। धवला के अनुसार विद्याधर आकाशचारी नहीं हो सकते। इन संदर्भों से यह स्पष्ट है कि विद्याधर मनुष्य ही होते थे किन्तु उन्हें कुछ विद्याओं का ज्ञान था। हो सकता है कि उनका तंत्र मंत्र से जुड़ा होने के कारण उन्हें लोक जीवन में पृथक मान लिया गया हो। राजा विनमि के पुत्रों में जो मातङ्ग हुआ उसी से मातङ्गग वंश की उत्पत्ति हुई। मातङ्ग जाति के भी 7 भेद हैं जिनमें एक है वार्शमूलिक मातंग वंश के बाद में बहुत तो एक चित्र स्वरूप लेता नजर आता है। - 4 = सर्प चिन्ह के आभूषण से युक्त । से संदर्भ उपलब्ध नहीं है किन्तु संकेतों को हम ग्रहण करें आदिनाथ ( ईक्ष्वाकु) Jain Education International नाग जाति के इन्द्र धरणेन्द्र द्वारा अपने प्रभाव वाली विद्याधर जाति पर नमि विनमि का राज्यारोहण किया गया - ↓ विनमि के पुत्र मातंग द्वारा मातंगवंश का प्रारंभ ↓ कालान्तर में मातंग जाति के 7 भेद जिसमें एक वा मूलिक सर्प चिन्ह के आभुषण युक्त है। = इसी वार्धमूलिक परंपरा में भगवान सुपार्श्वनाथ हुए, इनका प्रतीक जातीय चिन्ह सर्प फणावली था जो आज भी परंपरागत रूप से प्रयुक्त होता है। भगवान सुपार्श्वनाथ का चिन्ह तो स्वास्तिक है किन्तु सर्पकणावली उनकी मूर्ति के साथ सदैव अंकित होती है। इसे नागवंश की स्थापित परंपरा का सूचक माना जा सकता है। सुपार्श्वनाथ का जन्म स्थल वाराणसी व वर्ण हरित था। सुपार्श्वनाथ अर्हत वचन, 15 (4), 2003 For Private & Personal Use Only 35 www.jainelibrary.org
SR No.526560
Book TitleArhat Vachan 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size11 MB
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