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________________ का काल निर्धारण अति कठिन कार्य है। कुछ तथ्य हमारे सामने हैं - (1) वाराणसी में नागवंश का राज्य था। लोक जीवन में नागपूजा का वहाँ अत्यधिक महत्व था। (2) सुपार्श्वनाथ का यक्ष मातंग है। नागवंश की परंपरा भी विनमि के पुत्र मातंग द्वारा ही प्रारंभ हुई। (3) सुपार्श्वनाथ का प्रभाव बनारस से लेकर हड़प्पा संस्कृति के रूप में जाने जाने वाले सभी क्षेत्र में सर्पफण के रूपाकार एवम् स्वास्तिक के माध्यम से पहचाना जा सकता है। (4) जिस काल में श्रमण संस्कृति धीरे-धीरे विकसित हो रही थी उसी काल में उक्त ऋषभ धर्म एवम् श्रमण संस्कृति से कथंचित प्रभावित विद्याधरों की लौकिकता एवम् भौतिकता प्रधान उत्कृष्ट नागरिकता का प्रारंभ एक ओर नर्मदा कांठे में और दूसरी ओर सिंधुनदी की घाटी में हो रहा था। मातंगवंश - नागवंश के रूप में इसी क्षेत्र में पल्लवित हो रहा था। (5) विद्वानों के मतानुसार सिंधुघाटी सभ्यता का जीवन काल ई.पू. 6000 से 2500 वर्ष तक रहा प्रतीत होता है। (6) विनमि का राज्य विंध्याचल की श्रृंखलाओं में स्थापित होकर विद्याधरों के योगदान से पश्चिमांचल व सिन्धु घाटी क्षेत्र में विस्तृत हुआ। वाराणसी में भी इस राज्य का एक प्रमुख केन्द्र था। (7) विद्याधर मनुष्य ही थे, उनका अस्तित्व वास्तविक था। पौराणिक साहित्य विद्याधरों की क्षमता का प्रभावशाली वर्णन करते हैं। मानक हिन्दी कोश तीसरा खण्ड में श्री रामचंद्र वर्मा ने हिन्दु पुराणों के आधार पर नाग के विषय में रोचक सामग्री दी है। नाग - पुराणानुसार पाताल में रहने वाला एक उपदेवता जिसका ऊपरी आधा भाग मनुष्य का और नीचे का आधा वाला भाग सांप का कहा गया है। (यहाँ स्मरण रखें की पातालपुरी सिंधु डेल्टा में अवस्थित होना चाहिए। हड़प्पा संस्कृति के विखंडन के पश्चात तक्षशिला और पातालपुरी नाग संस्कृति के प्रमुख केन्द्र बन गये थे।) नाग : कद्र से उत्पन्न कश्यप की संतान जिनका निवास पाताल में माना गया है। इनके पासुकी, तक्षकर, कुलक, कर्कोटक, पद्म, शंखचूड़, महापद्म और धनंजय ये आठ कुल हैं। नाग : हिन्दू पुराणों में एक प्राचीन देश माना जाता है। विशेष : उक्तदेश में रहने वाली एक प्राचीन जाति नाग जाति सम्भवत: भारत में और हिमालय के उस पार रहती थीं क्योंकि तिब्बत वाले अपने आपको नागवंशी कहते हैं - महाभारत काल तक ये लोग भारत में आते थे। और उत्तर भारतीय आर्यों से इनका बहुत वैमनस्य था। इसीलिए जनमजेय ने बहुत से नागों का नाश किया था। बाद में ये लोग मध्यभारत में आकर फैल गये थे। जहां नागपुर और छोटा नागपुर प्रदेश इनके नाम की स्मृति के रूप में अब तक अवशिष्ट हैं। ये लोग नागों (बड़े बड़े फनदार सांपों) की पूजा करते थे। इसी से इनका यह नाम पड़ा था। बंगाल में अब तक हिन्दुओं में नाग एक जाति का नाम मिलता है। नाग - एक प्राचीन पर्वत, हाथी, एक प्रकार की घास, नाग केसर, पुन्ननाग, नागर मोथा, सीसा नामक धातु, ज्योतिष के करणों में तीसराकरण, जिसे ध्रुव भी कहते हैं, बादल / मेघ कुछ लोगों के मत से सात की और कुछ के मत से आठ की संख्या, अश्लेषा नक्षत्र का एक नाम शरीर में रहने वाले पांच प्राणों या धातुओं में से एक जिससे डकार आता है। पौराणिक वंशों की परंपरा का अस्तित्व और उनका भिन्न-भिन्न रूप में फैलाव अब तक इस दृष्टि से नहीं देखा गया है कि ये इतिहास के लिए आधारभूत सामग्री जुटा सकते हैं। यहाँ वहाँ विद्वानों ने इनका सहारा लेकर कुछ घटनाओं के क्रम को जोड़ा है किन्तु एक विशद दृष्टि से इसके पूर्वा पूर्व को समग्र इतिहास पर नहीं फैला पाये हैं। यतिवृषभ ने भगवान धर्मनाथ को कुरुवंशी माना है। जबकि कुरुवंश का प्रारंभ तो आदिनाथ द्वारा ही कर दिया गया था। सोमप्रभ उसके प्रथम पुरूष थे जो बाहुबली के पुत्र थे। उनसे कुरुवंश 36 अर्हत् वचन, 15 (4), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526560
Book TitleArhat Vachan 2003 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages136
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size11 MB
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