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________________ गहरी हैं कि जरा सी तो मैंने कैमरे में बांध के चरण चिह्न भी हैं। G 90 # विज Fl ה छ ! ● Jain Education International 애 KATA VAPRA (CHANDRAGIRI). THE NEGLECTED 'CROwn INDUS CULTURE Gop ev 12.01.2005 67 01 07 वै H VID प्राप्त 28.02.03 रंगोली बिखेरने पर वे अपने आप बोलने लगती हैं कुछेक को लिया। सभी बहुत स्पष्ट हैं। बीच बीच में समाधिस्थ 'जिनश्रमण' कुछेक तो पास में निर्मित मन्दिरों की नीवों तले दबकर झांक रहे हैं। कुछेक पर अनेक बार चरण चिह्न पुनः बना दिये गये। ऐसे चरणों के पास सर्वप्राचीन लिपि संधव लिपि ही है। बाद की लिपि प्राचीन कन्नड़ या तमिल है जिसे पढ़ा नहीं जा सका है। और फिर हैं उत्तरकालीन शिलालेख जिनमें से कुछ पढ़े जाकर सुरक्षित कर दिये गये हैं। इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि ये सारे चरण और चित्रलिपि उस अज्ञात 'पुरा - इतिहास' का प्रमाण हैं जो कटवप्र अथवा उससे भी पूर्व काल में जानी जाती रही, इस पहाड़ी पर लिखा गया। अधिकांश चरण पूर्वमुखी अथवा उत्तरमुखी हैं मात्र कुछ ही पश्चिम और दक्षिणमुखी हैं जो दर्शात हैं कि उनके काल में उन दिशाओं में स्थित मानव बस्तियों के जिन चैत्यालय रहे होंगे एक सल्लेखी दिगंबरी ही थे। OF M Singer el Do oft! !" eM 07 at 2014 战 @ Don USA UNEX AN 4. A "K MM छ წელი ि हु Wes of my og and + हा ॐ श CANTU 64 A t D, ; संत ७ eHi बाबू ३२.२००३ N 69 Hit H otto Ba दर्शाता है कि चरण के साथ पुरुष लिंग भी उकरित है जो चतुर्दिकावर्णि के संकेत उन सल्लेखियों का जिन श्रमणत्व सिद्ध कर देते हैं। इस प्रकार इस पर्वत के पुरावशेष कटवप्र को प्राच्य भारत की सर्वप्राचीन सैंधव संस्कृति का स्वर्ण कलश और भूलाबिसरा अति महत्वपूर्ण केन्द्र स्थापित कराते हैं जिसके अनुसार हड़प्पा जैसी ही पुरा संस्कृति दक्षिण भारत में भी सुरक्षित और पल्लवित रही। p ها For Private & Personal Use Only * C/o. श्री राजकुमार मलैया मलैया ट्रेडर्स, भगवानगंज, स्टेशन रोड़, सागर अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 www.jainelibrary.org
SR No.526559
Book TitleArhat Vachan 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size12 MB
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