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रहना चाहिये। इसके लिये हमें भविष्य के लिये अपनी प्राकृतिक सम्पदा तथा पर्यावरण को बचाये रखना पड़ेगा। इस प्रकार आर्थिक विकास, मानवीय क्षमता तथा प्राकृतिक सम्पदा और पर्यावरण संरक्षण के समन्वय को विचारक 'सामाजिक विकास' कहने लगे हैं। इसमें शेक्षा तथा स्वास्थ्य महत्वपूर्ण है जिससे मानवीय क्षमताओं में वृद्धि की जा सके। इसके लये विकास को पर्यावरण सम्मत बनाने के लिये जोर दिया जाने लगा है। विकास की इसी नई अवधारणा के कारण विश्व व्यापार संगठन ने विश्व व्यापार में कई पर्यावरणीय तथा सामाजिक शर्तो को जोड़ दिया है। भारत समेत कई विकासशील देशों के लिये अब नेर्यात व्यापार बढ़ाना कठिन हो रहा है। क्योंकि ये पर्यावरणीय तथा सामाजिक शर्तों को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि अब विकास का आंकलन सामाजिक वेकास तथा पर्यावरण संरक्षण के रूप में किया जाने लगा है। इस प्रकार के विकास का सीधा सम्बन्ध शिक्षा तथा स्वास्थ्य से है। विकास मे शिक्षा का महत्व
अर्थशास्त्र में नोबल पुरस्कार विजेता भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. अमृत्य सेन ने इसी आधार पर शिक्षा और स्वास्थ्य को विकास की आवश्यक शर्त माना है। शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं के आधार पर मानवीय पूंजी का निर्माण किया जा सकता है। इस प्रकार की मानवीय पूंजी तकनीकी ज्ञान का विकास करने और उसे ग्रहण करने में अधिक सक्षम होती है। शिक्षित मानवीय सम्पदा अवसरों का उपयोग करने में भी अधिक सजग रहती है। अत: इस प्रकार की मानवीय पूंजी का निर्माण स्वत: ही सतत् तथा आदर्श विकास कर सकेगा। पिछले दशक में हमने तकनीकी तथा ज्ञान आधारित विकास का चमत्कार देखा है। किस प्रकार ज्ञान ने हमारी अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में प्रवेश कर उत्पादन की संरचना को ही बदल दिया है, हम सब उससे परिचित हैं। यह कैसे संभव हुआ? शिक्षा तथा ज्ञान से। इस प्रकार आधुनिक विश्व अर्थ व्यवस्था में शिक्षा तथा ज्ञान विकास के महत्वपूर्ण घटक बन गये हैं। हमें गर्व है कि हमारी प्राचीन संस्कृति में शिक्षा तथा ज्ञान के विकास के लिये स्वाध्याय को तप, कर्म तथा शास्त्रदान से जोड़ कर इसे जीवन के लिये परम आवश्यक बना रखा। इससे न केवल भौतिक जीवन बल्कि आध्यात्मिक जीवन में भी निखार आता है। इसीलिये शिक्षा तथा दीक्षा सभी के लिये आवश्यक है। मर्यादा पुरूषोत्तम राम तो अवतारी पुरूष थे लेकिन राजा दशरथ ने उनको भी गुरू वशिष्ट के पास ज्ञानार्जन के लिये भेजा। माता - पिता जन्म दे सकते हैं लेकिन जीवन निर्माण का कार्य गुरू अर्थात् शिक्षा से ही संभव है। भारतीय संस्कृति
भारतीय संस्कृति की अहम बात यह है कि इसमें विविध किस्मों की महक और उनकी सामाजिक विशेषताये हैं। जन्म, परिणय, गृह निर्माण, वास्तु, विरक्ति, मृत्यु आदि का हमारी संस्कृति में बहुत महत्व है, पवित्र है। परिणय संस्कार के प्रति भी विशिष्ट श्रद्धा व पवित्रता देखी जा सकती है। मंत्र से दो अनजान दिलों को अपनत्व के धागे से जोड़ा जाता है और वे जन्म जन्मों के बंधन में बंध कर एक हो जाते हैं। कितनी पवित्रता है। राखी के बंधन की पवित्रता हमारी संस्कृति की अनुपम कृति है जो इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। कितनी महान तथा आदर्श संस्कृति है जिसमें भौतिकता तथा आध्यात्मिकता का बराबर समावेश है। हम आध्यात्मिकता से ही भौतिकता को सीमित कर पाते हैं। इसीलिये मृत्यु भी हमारे लिये एक महोत्सव है जहाँ मृत्यु आने पर कह सकते हैं कि 'ओ बन्धु मृत्य' मैं तुम्हारा स्वागत करता हूँ। आदर्श धर्म का उद्देश्य व्यक्ति को जीवित रखने के साथ-साथ मरने के प्रति भी तैयार करता है। हमारा अध्यात्म न केवल इस जीवन को वरन आने वाले जीवन को भी निखारता है। इसीलिये इस संस्कृति
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अर्हत् वचन, 15 (3), 2003
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