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________________ तरह समझ लिया था कि यदि उसे भारत में अपना राज्य जमाना है, तो सैन्य शक्ति के बल पर साम्राज्य विस्तार करने के साथ-साथ इस देश की बहुसंख्यक मुसलमानेतर जनता का दिल भी जीतना होगा। अत: उसने भारतीय और भारतीयों का बनकर राज्य करने का निश्चय किया और उदारता, समदर्शिता और सर्वधर्म सहिष्णुता की कुशल नीति को अपनाया। अपने राज्य के प्रारम्भिक वर्षों (1560-64 ई.) में ही उसने युद्धबंदियों को गुलाम बनाये जाने की पुरानी प्रथा का अन्त कर दिया, समस्त हिन्दू और जैन तीर्थों पर पूर्ववर्ती सुलतानों द्वारा लगाये गये यात्री - कर को समाप्त कर दिया तथा समस्त मुसलमानेतर भारतीयों पर लगा हुआ जजिया नामक अपमानजनक कर भी हटा लिया। ___राक्या गोत्रीय, श्रीमाल जातीय जैन रणकाराव सम्राट अकबर की ओर से आबू प्रदेश के शासक नियुक्त थे और श्रीपुरपट्टन से शासनकार्य चलाते थे। उनके पुत्र राजा भारमल्ल को अकबर नेसामर (शाकम्मरी) के सम्पूर्ण इलाके का शासक नियुक्त किया हुआ था। राजा भारमल नागौर में निवास करते थे। स्वर्ण और जवाहरात का व्यापार उनके हाथ में था, उनकी अपनी सेना थी और उनके अपने सिक्के चलते थे। उनकी दैनिक आय एक लाख टका (रूपये) थी और स्वयं सम्राट के कोष में प्रतिदिन वह पचास हजार टका देते थे। सम्राट उनका बहुत सम्मान करते थे और शाहजादा सलीम उनसे भेंट करने बहुधा उनके दरबार में नागौर जाया करता था। राजा भारमल धर्मात्मा, उदार, असाम्प्रदायिक मनोवृत्ति के विद्यारसिक श्रीमान थे। धार्मिक कार्यों और दानादि में वह प्रचुर धन खर्च करते थे। काष्ठासंधी भट्टारकीय विद्वान पाण्डे राजमल्ल ने उनकी प्रेरणा से उनके लिये 'छिन्दोविद्या' नामक महत्वपूर्ण पिंगलशास्त्र की रचना की थी। उसमें विविध छन्दों का निरूपण करते हुए कवि ने अपने आश्रयदाता राजा भारमल्ल के प्रताप, यश, वैभव और उदारता आदि का भी सुन्दर परिचय दिया है। अग्रवाल जैन साह रनबीर सिंह अकबर के समय में एक शाही खजांची और एक शाही टकसाल के अधिकारी थे। उनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर अकबर ने उन्हें वर्तमान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक जागीर प्रदान की थी जिसमें उन्होंने अपने नाम पर ही 'सहारनपुर' नगर बसाया। सहारनपुर में कायम हुई शाही टकसाल के अधीक्षक वही नियुक्त हुए। उनके परिवार द्वारा कई स्थानों पर जैन मंदिर बनवाये गये बताये जाते हैं। ___ भटानियाकोल (अलीगढ़) निवासी गर्ग गोत्रीय अग्रवाल जैन साहू टोडर आगरा की शाही टकसाल के अधीक्षक थे और अकबर के कृपा पात्र थे। शाही सहायता से वह जैन तीर्थ क्षेत्र मथुरा यात्रा संघ लेकर गये थे और वहाँ के प्राचीन जैन स्तूपों का जीर्णोद्धार कराकर सन् 1573 ई. में उन्होंने समारोहपूर्वक उनकी प्रतिष्ठा कराई थी। इसी उपलक्ष्य में उन्होंने उपर्युक्त पाण्डे राजमल्ल से 1575 में संस्कृत भाषा में 'जम्बूस्वामी चरित' की रचना भी कराई थी। साहू टोडर ने आगरा नगर में भी एक भव्य मंदिर बनवाया बताया जाता है। कवि राजमल्ल ने अपने उपर्युक्त ग्रन्थ में बादशाह अकबर की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि 'धर्म के प्रभाव से सम्राट अकबर ने जजिया नामक कर बन्द करके यश का उपार्जन किया, हिंसक वचन उसके मुख से भी नहीं निकलते थे। हिंसा से वह सदा दूर रहता था, अपने धर्मराज्य में उसने द्यूत और मद्यपान का भी निषेध कर दिया था क्योंकि मद्यपान से मनुष्य की बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है और वह कुमार्ग में प्रवृत्ति करता है। सन् 1585 ई. में साहू टोडर ने पाण्डे जिनदास नामक एक अन्य विद्वान से हिन्दी भाषा में भी 'जम्बूस्वामिचरित' लिखवाया था। उस कवि ने भी अकबर के सुराज्य और साह टोडर के धर्म कार्यों की प्रशंसा की है। 54 अर्हत् वचन, 15 (3), 2003 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526559
Book TitleArhat Vachan 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size12 MB
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