SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्हत् वचन कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ, इन्दौर, af-15, 3-3, 2003, 53-58 अकबर और जैन धर्म ■ रमा कान्त जैन * सारांश सम्राट अकबर की सर्वधर्म समभाव नीति के कारण वह लोकप्रिय शासक रहा। उसके शासनकाल में जैन धर्म के प्रभावना के अनेक कार्य सम्पन्न हुए। जैनाचार्यों एवं भट्टारकों से सम्राट के मधुर सम्बन्ध रहे। ये जैनाचार्यों एवं भट्टारकों का बहुमान करते थे। प्रस्तुत आलेख में इनका विस्तृत विवरण प्रस्तुत किया गया है। सम्पादक Jain Education International सन् 1540 ई. में कन्नौज के निकट बिहार के पठान सरदार शेरशाह सूरि के साथ हुए भीषण युद्ध में जबरदस्त पराजय प्राप्त कर अपना भारतीय राज्य गँवा मुगल बादशाह नसीरूद्दीन हुमायूँ को जब पलायन करना पड़ा तो उसने पहले सिन्ध की मरूभूमि में शरण ली। वहां अमरकोट नामक स्थान में 1542 ई. में हमीदा बानू बेगम की लेख से उसके बेटे अकबर का जन्म हुआ। सन् 1555 ई. में हुमायूँ ने पुन: पंजाब दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया किन्तु कुछ मास बाद ही 1556 ई. के प्रारं में दिल्ली में अपने पुस्तकालय की सीढ़ी से गिरकर बादशाह हुमायूँ की मृत्यु हो गई। उस समय उसका पुत्र जलालुद्दीन अकबर मात्र 14 वर्ष का बालक था और उसके साम अपने पिता द्वारा विजित दिल्ली और आगरा प्रदेश, जिसे हुमायूँ की मृत्यु होते ही पठान आदिलशाह सूरि के मंत्री एवं सेनापति हेमू ने आक्रमण कर हस्तगत कर लिया था, को पुनः प्राप्त कर लेने तथा भारत में अपने अस्तित्व की रक्षा की कड़ी चुनौतियां थीं। अकबर का राज्याभिषेक पंजाब के जिला गुरूदासपुर में कलानौर गाँव के बाहर बाग में ईंटों के कच्चे चबूतरे पर 14 फरवरी 1556 ई. को हुआ था उस समय उसका राज्याधिकार आसपास के दस बीस गाँवों पर ही रह गया था वह धन जन दोनों से ही हीन था मुट्ठी भर सेना हाथ में थी । बैरमखाँ जैसे इने-गिने विश्वासी, स्वामिभक्त और उत्साही सरदार उसके साथ थे। अपने पिता के संघर्षपूर्ण जीवन के कारण उसकी कोई शिक्षा दीक्षा भी नहीं हो पाई थी। देश की राजनैतिक स्थिति बड़ी विषम थी। दिल्ली के सिंहासन के लिये ही उसके सामने तीन प्रतिद्वन्दी दावेदार हेमू विक्रमादित्य आदिलशाह सूरि और सिकन्दर शाह सूरि थे और उत्तर भारत में उस समय भीषण अकाल पड़ रहा था। ऐसी विषम परिस्थितियों में अकबर के सामने तीन ही मार्ग थे या तो हुमायूँ की भांति भारत छोड़कर भाग जाये, या सब आकाक्षांओं को तिलाञ्जलि देकर सामान्यजन की भांति यहीं बस जाये, अथवा राज्योद्धार का प्रयत्न करें अकबर ने इस तीसरे वीरोचित मार्ग को चुना और शीघ्र ही पानीपत की ऐतिहासिक रणभूमि में 1556 ई. में हेमू को परास्त कर दिल्ली और आगरा पर पुनः अधिकार कर लिया। आदिलशाह और सिकन्दरशाह सूरि ने भी फिर अकबर का कोई विरोध नहीं किया। अकबर की इस ऐतिहासिक विजय ने भारत में मुगल वंश और मुगल साम्राज्य के पैर जमा दिये। अकबर जन्मत: पूर्ण विदेशी और विधर्मी था भारत और भारतवासियों के लिये। वह पढ़ा लिखा भी नहीं था, किन्तु वह बुद्धिमान और दूरदर्शी था उसने यह अच्छी * ज्योति निकुंज, चारबाग, लखनऊ-226004 (उ.प्र.) - - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.526559
Book TitleArhat Vachan 2003 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupam Jain
PublisherKundkund Gyanpith Indore
Publication Year2003
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Arhat Vachan, & India
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy